नई दिल्ली: अब आप दुनिया के किसी भी कोने में मलिहाबादी दशहरी मंगाएंगे तो यह भी पता लगा सकेंगे कि यह आम किस बाग का है और बाग का मालिक कौन है। इसके लिए सिर्फ आम की पेटी पर बना क्यूआर कोड स्कैन करना होगा और पूरा ब्योरा आ जाएगा। दशहरी आम प्रदेश के दूसरे कई जिलों में भी होता है, लेकिन सबसे ज्यादा डिमांड मलिहाबादी दशहरी की होती है। वजह यही है कि इसी इलाके से देश और प्रदेश के कुछ हिस्सों और पाकिस्तान तक दशहरी गया। इस कारण मलिहाबादी दशहरी को भारत सरकार से जियोग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) मिला है। अभी तक इन आमों को जीआई टैग लगाकर दूसरे राज्यों और देशों में निर्यात किया जाता है। इससे विश्वसनीयता बढ़ती है और आम के बेहतर दाम मिलते हैं।
सामान्य तौर पर आम की पेटी पर जीआई टैग तो लगा दिया जाता है। फिर भी आशंका रहती है कि क्या पता कहीं और का आम इसमें भर दिया हो। यह आशंका दूर करने के लिए अब आम के पेड़ों की जियो टैगिंग की जाएगी। इस बार मंडी परिषद ने मलिहाबाद स्थित मैंगो पैक हाउस एक निजी कंपनी को किराए पर दिया है। इस कंपनी को रहमानखेड़ा स्थित केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान (सीआईएसएच) ने निर्यात की तकनीक दी है। यह कंपनी खुद ही पेड़ों की जियो टैगिंग करवा रही है। इसके साथ आम पर कवर भी लगाए जा रहे हैं, ताकि उनमें दाग-धब्बे न लगें। इससे आम की क्वॉलिटी भी अच्छी रहेगी।
कंपनी के संस्थापक अकरम बेग के मुताबिक, करीब 200 बागबानों से बात हुई है। सीआईएसएच में 10 मई को भी किसानों के साथ बैठक होगी। जियो टैगिंग के लिए किसानों को प्रति पेटी 60 पैसा देना होगा। इस तरह प्रति आम सिर्फ 5 पैसे का खर्च आएगा। वहीं, सीआईएसएच के वैज्ञानिक डॉ. मनीष मिश्र बताते हैं कि इस तकनीक से खाने वाले को यह संतुष्टि मिलेगी कि वह खालिस मलिहाबादी दशहरी आम खा रहा है। इसके साथ किसानों और व्यापारियों को निर्यात में आसानी होगी।
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