नई दिल्ली: जैसे-जैसे 2024 का लोकसभा चुनाव करीब आ रहा है, भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों की मोर्चेबंदी को लेकर हलचल तेज होती जा रही है। हालांकि यह एकजुटता किस करवट बैठेगी, कौन लीड करेगा, कांग्रेस की अगुआई में क्या सभी विपक्षी दल एकसाथ आएंगे? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिस पर पड़ी धूल अब तक नहीं हटी है। हाल में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कुछ विपक्षी दल तो खुलकर साथ दिखे लेकिन कई क्षेत्रीय क्षत्रपों ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। नीतीश कुमार ने बिहार की राजधानी पटना से कांग्रेस के लिए जो माहौल बनाया, उस पर बहुत कुछ किया जाना अभी बाकी है। ममता बनर्जी, केसीआर, अरविंद केजरीवाल जैसे नेता कुछ महीने पहले ऐंटी-बीजेपी, ऐंटी-कांग्रेस खेमे में खड़े होते दिखाई दे रहे थे। अब नीतीश की बात को दोहराते हुए उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस के लिए ‘बैंटिंग’ की है। जी हां, उद्धव गुट के मुखपत्र ‘सामना’ के संपादकीय में कहा गया है कि विपक्षी दलों को लोकतंत्र बचाने के लिए एकजुट होकर भाजपा से मुकाबला करने की जरूरत है। हालांकि इन सबके बावजूद कांग्रेस किसी जल्दी में नहीं दिखती। शायद वह रायपुर अधिवेशन का इंतजार कर रही है।
एक तरह से उद्धव गुट ने कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी एकजुटता की जमीन तैयार करने की कोशिश की है। मुखपत्र ‘सामना’ में लिखा गया कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तेलंगाना के सीएम के. चंद्रशेखर राव अपने-अपने राज्य में भाजपा से लड़ रहे हैं। आगे यह सवाल किया गया, ‘कांग्रेस से नफरत करके आप (विपक्षी दल) भाजपा से कैसे लड़ेंगे।’ उद्धव गुट ने विपक्ष को संदेश दिया है कि मिशन 2024 के लिए सभी दलों को जल्द से जल्द एकजुट होकर रणनीति बनानी होगी। ‘सामना’ में कहा गया कि विपक्ष की तरफ से पीएम पद का उम्मीदवार कौन होगा, यह मुद्दा बाद में भी सुलझाया जा सकता है। बीजेपी विरोधी राजनीतिक ताकतों को जल्द से जल्द टेबल पर आना चाहिए। दरअसल, उद्धव गुट कांग्रेस का सहयोगी है। महाराष्ट्र में मिलकर सरकार भी बनाई गई थी। हाल में पार्टी का नाम, चुनाव चिन्ह खोने के बाद उद्धव गुट अब 2024 के लिए मोर्चेबंदी की कोशिशों में जुट गया है।
हालांकि मेघालय जाकर राहुल गांधी ने ममता बनर्जी पर हमला बोल दिया। उन्होंने कहा कि टीएमसी की परंपराओं, पश्चिम बंगाल में हिंसा और घोटाले से लोग वाकिफ हैं। उन्होंने यहां तक कह दिया कि TMC ने गोवा चुनाव में काफी खर्च किया, वह मेघालय में भी भाजपा को जिताने के लिए यही कर रही है। TMC कहां चुप रहने वाली थी। तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ’ब्रायन ने तस्वीरें साझा करते हुए राहुल पर निशाना साधा। वह बताना चाह रहे थे कि मेघालय में राहुल गांधी की चुनावी रैली में भीड़ नहीं जुटी जबकि ममता बनर्जी की सभा खचाखच भरी थी। आपको याद होगा जब ममता बनर्जी ने बंगाल चुनाव में भाजपा को शिकस्त दी थी, तो उन्हें 2024 के लिहाज से मुख्य दावेदार माना जाने लगा था लेकिन जल्द ही मामला ठंडा पड़ गया।
उधर, मल्लिकार्जुन खरगे का दावा है कि 2024 में कांग्रेस पार्टी सहयोगी दलों के साथ मिलकर ‘सामूहिक रूप से’ सरकार बनाएगी। हाल में वह कई बैठकों और रैली में यह दावा कर चुके हैं कि 2024 में केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व में गठबंधन सरकार बनेगी। खरगे भी विपक्षी एकजुटता के पक्ष में हैं और अब सबकी नजरें रायपुर में होने वाले कांग्रेस के अधिवेशन पर हैं। वहां विपक्षी गठबंधन का फॉर्म्युला तय हो सकता है। दो दिन पहले उन्होंने नगालैंड में कहा था कि केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाला गठबंधन सत्ता में आएगा। हम दूसरी पार्टियों के साथ चर्चा कर रहे हैं।
मंच पर बैठे कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद से नीतीश कुमार ने कहा था कि यह संदेश कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व तक पहुंचा दिया जाए। बाद में खुर्शीद ने वहीं कहा कि हम भी वही चाहते हैं जो आप चाहते हैं, मामला बस इतना है कि पहले आई लव यू कौन बोलेगा। वैसे, नीतीश कांग्रेस के साथ आने की बात तो करते हैं, लेकिन प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार को लेकर राहुल गांधी के नाम पर मुहर नहीं लगाते। नीतीश और उद्धव गुट इस बात को जोरशोर से उठा रहे हैं कि कांग्रेस के बिना और कई क्षेत्रीय दलों के बगैर भाजपा के खिलाफ मेन फ्रंट नहीं बन सकता।
सियासी जानकार मान रहे हैं कि क्षेत्रीय नेताओं की अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं। वे पीएम कैंडिडेट पर स्पष्ट स्थिति चाहते हैं। कांग्रेस के नेतृत्व में कुछ दल शायद इसलिए भी पत्ते न खोल रहे हों क्योंकि वे राहुल गांधी के नाम पर सहमत न हों। वैसे कांग्रेस ने आधिकारिक रूप से पीएम उम्मीदवार घोषित नहीं किया है लेकिन कई बार कांग्रेसी नेता राहुल का नाम उछाल चुके हैं। विपक्षी दल भी जानते हैं कि कांग्रेस की सीटें भले न हों, पर उपस्थिति और जनाधार पूरे देश में है। विचारधारा का मसला है जिस पर विपक्ष बंट सकता है लेकिन उसे मालूम है कि भाजपा को चुनौती देने के लिए एकजुट होना होगा।
ममता बनर्जी के नेता उन्हें पीएम का दावेदार मानते हैं। ममता ने कई राज्यों में पार्टी का विस्तार करना शुरू किया है। उन्हें शायद लगता हो कि अगर ज्यादा राज्यों में टीएमसी का प्रदर्शन अच्छा रहता है तो उनकी दावेदारी मजबूत दिख सकती है। शायद इसीलिए ममता कांग्रेस के साथ आने में देर कर रही हैं। शरद पवार को भी कुछ लोग पीएम कैंडिडेट मानते हैं लेकिन उनका झुकाव कांग्रेस के पक्ष में है। के. चंद्रशेखर राव की गहमागहमी ने भी उनकी महत्वाकांक्षा को लेकर कई सवाल पैदा किए थे। हालांकि उनकी राह आसान नहीं। अखिलेश यादव कांग्रेस के साथ मिलकर यूपी चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन अभी उन्होंने चुप्पी साध रखी है। आम आदमी पार्टी का दिल्ली, पंजाब, गोवा में प्रभाव बढ़ने के बाद से अरविंद केजरीवाल को भी पीएम कैंडिडेट प्रोजेक्ट करने की कोशिशें हुई हैं।
शायद विरोधी दलों की इसी उलझन को भांपते हुए कांग्रेस पीएम कैंडिडेट पर फैसला चुनाव टालना चाहती है। तब सीटों की संख्या के हिसाब से बहुत चीजें अपने आप साफ हो जाएंगी।