नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में कुछ देर में समलैंगिक शादी (Same Sex Marriage Hearing) के मामले पर सुनवाई जारी है। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) के नेतृत्व में 5 जजों की संविधान पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। इससे पहले मंगलवार को हुई सुनवाई में केंद्र सरकार ने दलील दी थी कि ये मामला संसद के अधिकार क्षेत्र में है और इसपर अदालत कोई फैसला नहीं कर सकती है। हालांकि, केंद्र की इस दलील पर चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ नाराज हो गए और उन्होंने कहा कि कोर्ट इसका प्रभारी है और इसपर दलीलों को सुनने के बाद अदालत फैसला सुनाएगी।
समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई LIVE
- मुकुल रोहतगी: जब 1950 में हिंदू कोड बिल लाया गया था तो उसे मानने के लिए संसद तैयार नहीं थी। भीमराव आंबेडकर को इस्तीफा देना पड़ा। लेकिन 1956 में फिर से इस बिल को पेश किया गया। हिंदू मैरिज एक्ट, सक्सेशन एक्ट, अडॉप्शन अलग-अलग लाया गया। ये हिंदू कोड बिल के हिस्से नहीं थे। जो 1950 में संसद ने स्वीकार नहीं किया उसे 1956 और 1958 में संसद ने स्वीकार किया। इसके बाद ये समाज में सामान्य बात हो गई।
- मुकुल रोहतगी: समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटाकर किसी व्यक्ति को सम्मान के साथ जीवन जीने का अधिकार देना बड़ा कदम था। अमेरिका में भी बड़ी संख्या में लोग कंजरवेटिव हैं। आप खजुराहो और अन्य चीजों में देख सकते हैं, इस तरह की चीजों का जिक्र दीवारों पर है। लोदी वंश, मुगल वंश इसके बाद ब्रिटिश आए और उन्होंने अपन कोड और नियम लागू किया।
- मुकुल रोहतगी: रोहतगी ने कहा कि हमारे मुवक्किल के मामले में उनके माता-पिता ने उन्हें स्वीकार कर लिया। वो चाहते हैं कि हम सेटल हो जाएं, हमारा परिवार हो, हम भी बच्चे रखें। हमारे केस में 10 साल पहले हमारे माता-पिता ने रिसेप्शन किया था। उन्होंने हमारी शादी को मान्यता दी थी। प्रस्तावना के मुख्य लक्ष्य को लागू किया जाए।
- मुकुल रोहतगी: शक्ति वाहिनी, साफीन जहां, दीपिका और लक्ष्मी जैसे चार जजमेंट ऐसे हैं जहां जीवन सम्मान से जीने की बात कही गई है। समलैंगिकों को भी समान मनुष्य की तरह ही व्यवहार किया जाना चाहिए। हमारी मांगों को बहुमत के दबाव में खत्म किया जा रहा है। हमें अल्पसंख्यक कहा जाता है। ये कानून नहीं है बल्कि माइंडसेट है। हमें रोज की जिंदगी में इसका सामना करना पड़ता है।
- मुकुल रोहतगी: समलैंगिक विवाह के पक्ष में तर्क देते हुए उन्होंने कहा कि जब हम सार्वजनिक जगहों पर अपने पार्टनर के साथ जाते हैं तो हमें भी सम्मान मिलना चाहिए। हम सभी समान हैं तो हमें शादी में भी समानता मिले। हमें जीवन जीने का पूरे सम्मान के साथ अधिकार मिले
- मुकुल रोहतगी: याचिकाकर्ता के वकील ने दलील के दौरान औपनिवेशिक माइंडसेट का किया जिक्र। उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत ने 5 साल पहले एक बैरियर को खत्म किया था। लेकिन ये माइंडसेट के कारण ग्राउंड लेवल पर मुश्किल होती है। धर्मनिरपेक्ष कानून में जब आप पति-पत्नी की बात करते हैं तो ये जेंडर न्यूट्रल होना चाहिए। पति-पत्नी की जगह स्पाउस का जिक्र होना चाहिए।
- इस बीच, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक नया हलफनामा दाखिल कर समलैंगिक विवाह सुनवाई मामले में राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को भी पार्टी बनाने का आग्रह किया है।
- जस्टिस भट्ट: सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि जब बात पर्सनल लॉ पर आएगी तो वहां भी इसका असर होगा। इस अदालत को इस मामले में कई बार अपनी राय रखनी होगी। मुख्य मुद्दा ये है कि हम मामले को समग्रता में नहीं संक्षिप्त मामले की तरह देख रहे हैं।
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5 सदस्यीट पीठ में जस्टिस एस.के. कौल, जस्टिस एस.आर.भट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पी.एस.नरसिम्हा भी शामिल हैं। इससे पहले शीर्ष अदालत ने कर दिया था कि समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं पर फैसला करते समय वह शादियों से जुड़े ‘पर्सनल लॉ’ पर विचार नहीं करेगा और कहा कि एक पुरुष और एक महिला की धारणा, जैसा कि विशेष विवाह अधिनियम में संदर्भित है, वह ‘लिंग के आधार पर पूर्ण नहीं है। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा, ‘हम प्रभारी हैं’ और प्रारंभिक आपत्ति की प्रकृति और विचारणीयता इस पर निर्भर करेगी कि याचिकाकर्ताओं द्वारा क्या पेश किया जाता है। याचिका से संबंधित मुद्दों को ‘जटिल’ करार देते हुए पीठ ने मामले में पेश हो रहे वकीलों से धार्मिक रूप से तटस्थ कानून ‘विशेष विवाह अधिनियम’ पर दलीलें पेश करने को कहा। विशेष विवाह अधिनियम, 1954 एक ऐसा कानून है, जो विभिन्न धर्मों या जातियों के लोगों के विवाह के लिए एक कानूनी ढांचा प्रदान करता है। यह एक सिविल विवाह को नियंत्रित करता है, जहां राज्य धर्म के बजाय विवाह को मंजूरी देता है।