चंडीगढ़। पंजाब में पिछले एक सप्ताह से हवा की रफ्तार 1.1 किलोमीटर प्रति घंटा है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) के मौसम विभाग के विज्ञानियों का दावा है कि हवा की इतनी कम गति में पराली का प्रदूषण किसी अन्य राज्य तक पहुंचना मुश्किल है। दूर तक प्रदूषण पहुंचने के लिए कम से कम छह किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार की आवश्यकता होती है।
पीएयू मौसम विभाग की प्रमुख डा. पवनीत किंगरा ने कहा कि पंजाब से दिल्ली करीब तीन सौ किमी दूर है। पंजाब में पराली के धुएं से पैदा हुए प्रदूषण को वहां पहुंचने के लिए छह किलोमीटर प्रति घंटा से अधिक हवा की रफ्तार और इसकी दिशा उत्तर पश्चिम की ओर होनी चाहिए।
हवा दिल्ली में प्रदूषण को बढ़ा सकती है
अभी हवा की गति न होने की वजह से पराली का प्रदूषण तो पंजाब में ही रहा, इसलिए यहां के शहरों का भी एक्यूआइ का स्तर बढ़ रहा है। हालांकि उन्होंने यह अवश्य कहा कि उत्तर-पश्चिम की हवा दिल्ली में प्रदूषण को बढ़ा सकती है, लेकिन प्रदूषक कणों को वहां तक ले जाने के लिए हवा की पर्याप्त गति होनी चाहिए।
उल्लेखनीय है कि अक्टूबर व नवंबर के दौरान तापमान में गिरावट आने और हवा न चलने से प्रदूषण के कण ट्रैवल नहीं कर पाते। इसके कारण एक स्थिर वातावरण बन जाता है। इसमें हवा का थोड़ा प्रसार ऊपर की तरफ चला जाता है। धान की पराली जलाने व प्रदूषण के और स्त्रोतों के कारण वातावरण में शामिल धूल व धुएं के कण जमा हो जाते हैं। आम भाषा में इसे बंद कमरे की स्थिति कहा जा सकता है।
इसमें कोई भी चीज न बाहर से आती है और न बाहर जा सकती है। यह स्थिति तब तक बनी रहती है, जब तक एक कम दबाव वाला क्षेत्र यानी वेस्टर्न डिस्टर्बेंस नहीं होते, इसलिए पूरे उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में खासकर धान उगाने वाले राज्य अपने प्रदूषण के लिए खुद जिम्मेदार हैं।