अंबाला। जिले की आबोहवा रोजाना जहरीली हो रही है। हालांकि प्रशासन ने पराली जलाने पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। इसके बावजूद पराली जलाने के केस खत्म होने का नाम नहीं ले रहे। लिहाजा धुआं अब सांसों में रमने लगा है। हालात यह हैं कि अब लोगों के लिए सांसें लेना भी दुश्वार होने लगा है। नवंबर महीने में स्थिति ज्यादा बिगड़ी है।
आंकड़ों की बात करें तो 30 अक्टूबर को एक्यूआई 119 था लेकिन 31 अक्टूबर को अंबाला का वायु गुणवत्ता सूचकांक 100 दर्ज किया गया था जोकि अच्छी हवा का सूचकांक है। लेकिन एक नंबर को स्थिति बिगड़ गई और वायु गुणवत्ता सूचकांक 169 पर पहुंच गया। दो नवंबर को सारी हदें ही पार हो गई है एक्यूआइ 295 दर्ज किया गया। लगातार वायु गुणवत्ता सूचकांक बढ़ने से सांस और हृदय रोगियों की दिक्कतें बढ़ गई हैं। इसी तरह चर्म रोग और एलर्जी की समस्याएं भी बढ़ गई हैं।
स्थिति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जिला नागरिक अस्पताल में अब ऐसे मरीजों की संख्या करीब 500 से ज्यादा हो गई थी। बता दें कि जिला नागरिक अस्पताल में तीन फिजिशियन, एक कंसल्टेंट कुल चार डाक्टर मेडिसिन ओपीडी में मरीजों को देखते हैं। पांचवीं मेडिसिन ओपीडी शिशु रोग विशेषज्ञ की है। इसी तरह तीन ओपीडी नेत्र रोग विशेषज्ञों की व एक चर्म रोग विशेषज्ञ की होती है। इसके अलावा इमरजेंसी में आने वाले मरीज अलग हैं। शुक्रवार को बरसात के बाद धूलकण और धुंआ गायब होने से लोगों ने राहत की सांसें ली और एक्यूआइ शनिवार शाम करीब 89 दर्ज किया गया।
शनिवार को राहत, कम पहुंचे मरीज
हालत यह हैं कि जिला नागरिक अस्पताल में औसतन 100 बच्चों की ओपीडी होती है। इनमें से अब 40 से 45 बच्चे एलर्जी, खांसी-जुखाम और अस्थमा इत्यादि की शिकायत लेकर अपने अभिभावकों के साथ पहुंच रहे हैं। यही स्थिति मेडिकल ओपीडी और चर्म रोग विशेषज्ञ की ओपीडी की भी हैं। इसी तरह हृदय रोगियों को भी विशेष सावधानी बरतनी पड़ रही हैं क्योंकि हवा में फैला धुआं उन्हें भी टिकने नहीं दे रहा है। हालांकि शनिवार को मरीजों की संख्या कम रही। बाल रोग विशेषज्ञ की ओपीडी के अलावा अन्य ओपीडी में भी आधे भी मरीज नहीं पहुंचे। शनिवार और दीपावली पर्व के चलते मरीजों की संख्या आमदिनों के मुकाबले एक चौथाई ही दर्ज की गई।
नेत्र रोगियों की बढ़ी दिक्कतें
इसी तरह नेत्र रोगियों की संख्या भी ओपीडी में बढ़ गई हैं। आंखों में जलन, खारिश होना व आंखें लाल होना जैसी शिकायत लेकर शहर ओपीडी में रोजाना अब 40-50 मरीज पहुंचते हैं। इन सभी की दिक्कतें इसी धुएं ने बढ़ाई हुई हैं। इससे बचने का केवल एक ही तरीका है कि इस धुएं से बचा जा सके। लेकिन ऐसा तभी संभव है जब घर से बाहर न निकलें। लिहाजा हर किसी के लिए ऐसा करना संभव नहीं हो पाता।
पराली जलाने पर सख्ती लेकिन थम नहीं रहे केस
कृषि विभाग के आंकड़ों पर नजर मारें तो साल 2022 के मुकाबले इस साल पराली जलाने के आंकड़ों में कमी आइ है। साल 2022 में जहां पराली जलाने के करीब 185 मामले सामने आए थे। इस बार दाे नवंबर तक आंकड़ा 185 तक पहुंच गया है। बीते साल जहां कोई केस दर्ज नहीं किया गया थे, वहीं इस बार दो किसानों पर केस भी दर्ज किए गए हैं। एक मामले में तो कृषि विभाग की टीम को बंधक तक बना लिया था। दूसरी ओर साल 2022 में 2.07 लाख रुपये जुर्माना वसूला गया था, वहीं इस साल किसानों से 3.17 लाख रुपये जुर्माना वसूला गया है। इसी प्रकार सन 2021 में 203 मामले सामने आए थे।
40 से 45 फीसदी आ रही हैं शिकायतें
जिला नागरिक अस्पताल के बाल एवं शिशु रोग विशेषज्ञ डा. शुभज्योति प्रकाश ने बताया कि पिछले एक सप्ताह से ओपीडी में अस्थमा, खांसी, जुखाम और एलर्जी की समस्या वाले बच्चे ज्यादा संख्या में पहुंच रहे हैं। स्किन संबंधित समस्याएं भी बच्चों को देखने में मिल रही हैं। निश्चित तौर पर स्माग का इसमें बड़ा रोल है। इससे बचने के लिए मास्क का प्रयोग करें, जरूरत पड़ने पर ही घर से बाहर खुद और बच्चों को निकालें। ओपीडी में आने वाले करीब 40-45 फीसदी बच्चों के अभिभावक अब ऐसी ही शिकायतें लेकर बच्चों को उपचार करवाने पहुंच रहे हैं। हालांकि शनिवार को मरीजों की संख्या ही आधी से भी कम रही है।