नई दिल्ली: रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर रहे रघुराम राजन को जानते होंगे। वह केंद्रीय वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार भी रह चुके हैं। उन्होंने कहा है कि भारत एक बार फिर से ‘हिन्दू रेट ऑफ ग्रोथ’ के करीब खतरनाक ढंग से पहुंच रहा है। उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में जो ‘हिन्दू रेट ऑफ ग्रोथ’ को उद्धरण दिया है, उसका मतलब आप जानते हैं?
क्या है ‘हिन्दू रेट ऑफ ग्रोथ’
आप समझ रहे होंगे कि यहां हिन्दू धर्म की बात हो रही है। दरअसल, ‘हिन्दू रेट ऑफ ग्रोथ’ इकोनोमिक्स की एक थ्योरी है। इसका आशय कहीं से भी धर्म से नहीं है। आर्थिक मंचों पर अक्सर इस शब्दावली का उपयोग होता है। बात आजादी के बाद की है। सन 1947 में देश आजाद हुआ तो उस समय भारत की आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं थी। अधिकतर लोग खेती पर आश्रित थे। समाज में भयंकर गरीबी थी। इंफ्रास्ट्रक्चर के नाम पर सिर्फ रेलवे था। सड़कों का अभाव था। लेकिन देश इन चीजों का निर्माण धीरे-धीरे होने लगा। इसलिए आजादी के बाद तीन दशकों (1950 से 1980) तक देश का ग्रोथ रेट बेहद कम रहा। इस अवधि में देश की औसत वार्षिक आर्थिक वृद्धि दर महज 3.5 फीसदी के आस-पास थी। इसी धीमी विकास दर को जाने माने अर्थशास्त्री प्रोफेसर राज कृष्ण 1978 में ‘हिन्दू रेट ऑफ ग्रोथ’ का नाम दिया। तब से यह जुमला आर्थिक जगत में चल निकला।
क्यों आई थी यह शब्दावली
प्रोफेसर राज कृष्ण उस समय कहा करते थे कि हम कुछ भी कर लें, हमारी विकास दर इतनी ही रहती है। वास्तव में उस समय भारतीय अर्थव्यवस्था घरेलू बचत के बल पर चल रही थी। इकोनॉमी में निवेश का स्तर बेहद कम था। जनसंख्या बढ़ने की रफ्तार प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि से कहीं ज्यादा थी। इसलिए विकास दर भी चार फीसदी के आसपास थी। प्रति व्यक्ति आय बढ़ने की गति भी कम थी। दरअसल, प्रोफेसर राज कृष्ण हंसमुख स्वभाव के व्यक्ति थे। उन्होंने हंसी-मजाक के माहौल में यह बात कही थी। लेकिन बाद में यह एक इकोनोमिक थ्योरी का रूप ले लिया और अंतरराष्ट्रीय इकोनोमिक जगत में यह थ्योरी खूब उद्धृत की जाने लगी। अभी भी उनकी इस शब्दावली का व्यापक तौर पर इस्तेमाल हो रहा है।
अभी क्या कहा रघुराम राजन ने
रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर राजन ने कहा कि अभी प्राइवेट सेक्टर का इनवेस्टमेंट कम subdued private sector investment है। ब्याज दरें बढ़ रही high interest rates है। साथ ही वैश्विक स्तर पर विकास दर slowing global growth स्लो हो रही है। उल्लेखनीय है कि पिछले साल तीसरी तिमाही में विकास दर घट कर 4.4 फीसदी पर आ गई है। इससे पहले मतलब कि दूसरी तिमाही में विकास दर 6.3 फीसदी थी और पहली तिमाही में 13.2 फीसदी।
विकास दर कब बढ़ी
भारत में सन 1991 में आर्थिक सुधार का दौर शुरू हुआ। नरसिंह राव की सरकार ने उदारीकरण की शुरुआत की। उसके बाद से ही देश की विकास दर ‘हिन्दू रेट ऑफ ग्रोथ’ की धीमी चाल को छोड़कर तेजी से बढ़ी। खास कर साल 2003 से 2008 के बीच देश की विकास दर औसतन 9 फीसदी के आस-पास रही।