नई दिल्ली: राहुल गांधी ने शुक्रवार को सदस्यता रद्द होने के कुछ घंटे बाद अपनी पहली प्रतिक्रिया सोशल मीडिया पर दी। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि मैं भारत की आवाज के लिए लड़ रहा हूं। मैं हर कीमत चुकाने को तैयार हूं। यह ट्वीट उनकी प्रतिक्रिया से अधिक उनके सामने मौजूद सीमित विकल्पों को जाहिर कर रहा था।पिछले 24 घंटे में जिस तेजी से घटनाक्रम बदले और उसका जो प्रतिफल हुआ, उसके बाद राहुल गांधी के डेढ़ दशक से अधिक सियासी सफर में यह मेक या ब्रेक मोमेंट आ गया है। जानकारों के अनुसार राहुल गांधी के लिए आगे आने वाला समय बेहद चुनौतीपूर्ण है, लेकिन इसी में उनके पास खुद को विपक्षी खेमे में एक चैलेंजर के रूप में स्थापित होने का बड़ा मौका भी छिपा है। ऐसे में उनके सियासी सफर के लिए अगले कुछ दिन बेहद निर्णायक हो सकते हैं।
राहुल के एक करीबी नेता ने इस फैसले के बाद एनबीटी को बताया कि मोदी सरकार ने राहुल को वह सियासी जमीन दे दी, जिसका इंतजार उन्हें था। कहीं न कहीं राहुल गांधी के लिए अब बड़ा मौका आ गया है। उन्होंने संकेत दिया कि अगले कुछ दिनों में राहुल का काउंटर सामने आ जाएगा। उन्होंने संकेत दिया कि एक बड़ा कैंपेन राहुल के इर्द-गिर्द चलाया जा सकता है। भारत जोड़ो पदयात्रा का दूसरा चरण पहले से प्रस्तावित है। कांग्रेस को लगता है कि राहुल के लिए कानूनी जंग जरूर कठिन है, लेकिन सियासी तौर पर पार्टी और राहुल दोनों को नुकसान से अधिक लाभ देगा।
हालांकि मौके को भुनाना इतना भी आसान नहीं। अब तक राहुल गांधी की इसी बात के लिए आलोचना होती रही है कि वे मिले हुए मौकों को भुना नहीं पाते थे। भट्टा परसौल से भारत जोड़ा पदयात्रा के पहले चरण के अंत तक, उनके आलोचकों के अनुसार वह किसी मुद्दे पर शुरुआत तो करते हैं, लेकिन निरंतरता नहीं रख पाते। हालांकि राहुल ने पिछले कुछ दिनों से इस धारणा को बदलने की दिशा में मेहनत की है। भारत जोड़ा यात्रा की समाप्ति के बाद दूसरे चरण का ऐलान किया है। वह लगातार सक्रिय भी रहे। बीच में विदेश गए, तब भी वह वहां से खबरों में रहे। तो ऐसे में अब इस मुद्दे के बाद राहुल किस तीव्रता और निरंतरता से लोगों से कनेक्ट करते हैं, यह उनकी आगे की दिशा तय करेगी।
यही कारण है कि कांग्रेस को ब्रैंड राहुल पर मंथन और उन्हें देश की सबसे मुखर विपक्षी आवाज के रूप में भी स्थापित करने का मौका मिल रहा है। विपक्षी स्पेस में क्षेत्रीय दल राहुल की निरंतरता को लेकर सवाल उठाते हुए उनके नेतृत्व को खारिज करते रहे हैं। दो दिन पहले ही ममता बनर्जी ने ऐसा ही सवाल उठाया था। ऐसे में राहुल के करीबियों का मानना है कि अगर राहुल इस जंग को सियासी तौर पर लोगों तक ले जाने में सफल रहे तो यह बहस भी समाप्त हो जाएगी। इस मामले में राहुल गांधी को तमाम विपक्षी दलों के नेताओं का भी समर्थन मिला है। राहुल के करीबी नेता मिसाल देते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी जब गुजरात दंगे के बाद चारों ओर से घिरे हुए थे, तब उन्होंने इसके बीच से ही खुद को और मजबूत बनाकर निकाला। जिस पहलू को लेकर उन पर चौतरफा हमला हो रहा था, उसे उन्होंने अपना सबसे बड़ा सियासी हथियार बना लिया और यूपीए सरकार के सामने सबसे मजबूत चैलेंजर के रूप में उभरे। उन्होंने कहा कि इस बार फिर इतिहास दोहराया जाएगा और यह उनके पक्ष में जाएगा।
इस मुद्दे को अपने पक्ष में मोड़ना आसान नहीं– सियासी तौर पर दोषसिद्धी और अयोग्यता के मुद्दे को अपने पक्ष में कर लेना राहुल के लिए इतना भी आसान नहीं। इसके पीछे पहला कारण है कि अभी भी उनका मुकाबला ब्रैंड मोदी से है जो अभी भी मजबूत है। ऐसे में इस स्थिति को इंदिरा गांधी वाली घटना से जोड़ना उतना तार्किक भी नहीं लगता है। तब तात्कालिक सरकार के खिलाफ नाराजगी शुरू हो चुकी थी।
– दूसरा कारण यह है कि सियासी तौर पर यह भले राहुल के लिए एक लॉन्चिंग पैड हो सकता है, लेकिन सियासी मुकाबला आम जन से जुड़े मुद्दों पर ही होगा। इस मुद्दे पर राहुल गांधी खुद को किस तरह विकल्प के रूप में पेश करते हैं और उनके मुद्दे क्या होते हैं, वह भी आगे की दिशा तय करेगा।
– अंत में सबसे बड़ी बात होगी कि खुद राहुल कितनी ताकत से उतरेंगे और इसे अपने लिए अवसर मानेंगे। जैसा कि राहुल के एक करीबी नेता ने कहा, अंत में राहुल अधिकतर चीजें खुद तय करते हैं।
– दिलचस्प बात है कि जिस कानून के तहत राहुल की लोकसभा सदस्यता गई है, वह कानून राहुल गांधी के हस्तक्षेप के बाद ही 2013 में बना था, जब उन्होंने इससे राहत दिलाने से संबंधित यूपीए सरकार के ऑर्डिनेंस को सार्वजनिक मंच से फाड़कर अपनी असहमति दिखाई थी।
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