मॉस्को: रूस का पड़ोसी देश फिनलैंड आज नाटो में आधिकारिक रूप से शामिल हो गया है। इसे रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। फिनलैंड को नाटो की सदस्यता का आधिकारिक पत्र रूस के सबसे बड़े दुश्मन अमेरिका ने सौंपा है। नाटो की सदस्यता से संबंधित दस्तावेज अमेरिकी विदेश विभाग के पास रहते हैं। फिनलैंड की सदस्यता के बाद अब नाटो के सदस्य देशों की संख्या 31 तक पहुंच चुकी है। फिनलैंड और रूस 1340 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं। ऐसे में अब नाटो सेना के रूस की उत्तरी सीमा के नजदीक पहुंचने का खतरा बढ़ गया है। हालांकि, नाटो महासचिव जनरल जेन स्टोलटेनबर्ग ने कहा कि फिनलैंड की सहमति के बिना नाटो अपने सैनिकों को नहीं भेजेगा।
फिनलैंड को पहले ही धमकी दे चुका है रूस
रूस शुरू से ही फिनलैंड के नाटो में शामिल होने का विरोध करता रहा है। यूक्रेन पर आक्रमण का कारण भी उसका नाटो में शामिल होना ही था। रूस ने चेतावनी दी है कि फिनलैंड की नाटो सदस्यता से पैदा हुए खतरे से निपटने के लिए उसे प्रतिरोधी उपाय करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। रूस ने यह भी कहा है कि अगर नाटो अपने 31वें सदस्य देशों में सैनिको और हथियारों की तैनाती करता है, तो वह भी फिनलैंड की सीमा के नजदीक अपनी सुरक्षा व्यवस्था को बढ़ाएगा। रूस की सुरक्षा परिषद के उपाध्यक्ष और पूर्व राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव ने भी धमकी देते हुए कहा था कि अगर नाटो का विस्तार हुआ तो उसके नए सदस्यों को अपने घरों के पास परमाणु हथियारों और हाइपरसोनिक मिसाइलों के साथ रहना होगा।
कैसे बढ़ी नाटो की ताकत
नाटो का गठन शीत युद्ध की शुरुआत में 4 अप्रैल 1949 को किया गया था। तब नाटो के सदस्य देशों की संख्या सिर्फ 12 थी। इसके गठन का मुख्य उद्देश्य तत्कालीन सोवियत संघ के खतरे से मित्र देशों की रक्षा करना था। 1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद नाटो की सदस्य संख्या में जबरदस्त बढ़ोतरी देखी गई। कभी सोवियत संघ के सैटेलाइट स्टेट रहे 11 देश और तीन पूर्व सोवियत देश नाटो में शामिल हुए। इससे नाटो के सदस्य देशों की संख्या बढ़कर 26 हो गई। इसके बाद एक-एक कर सदस्य देशों की संख्या बढ़कर 30 हो गई। नाटो में फिनलैंड से पहले 2020 में मैसेडोनिया शामिल हुआ था। वर्तमान में नाटो के 29 सदस्य देश यूरोपीय और दो अमेरिकी महाद्वीप में स्थित हैं।
नाटो के विस्तार को खतरे के रूप में देखता है रूस
रूस नाटो के विस्तार को शुरू से अपने अस्तित्व के खतरे के रूप में देखता है। पुतिन ने नाटो में शामिल होने के कारण ही फरवरी 2022 में यूक्रेन पर आक्रमण का आदेश दिया था। इसी के कारण फिनलैंड ने नाटो में सदस्यता का आवेदन दिया था। ऐसे में फिनलैंड के नाटो में शामिल होना पुतिन के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। फिनलैंड के बाद अब स्वीडन को भी नाटो की सदस्यता मिल सकती है। इससे रूस को बाल्टिक सागर क्षेत्र में दो नए दुश्मनों का मुकाबला करना होगा। स्वीडन के नजदीक ही रूसी नौसेना के उत्तरी फ्लीट का मुख्यालय भी है।
पुतिन की हार है फिनलैंड की नाटो सदस्यता
पुतिन के विरोधी रहे और रूस में विपक्ष के पूर्व नेता सर्गेई बिजिउकिन ने कहा था कि यह रूस की हार का प्रतीक है। सीधे तौर पर कहा जाए तो पुतिन एक बहुत बड़ी जंग हार चुके हैं। बिजिउकिन 2019 में पुतिन के डर से रूस छोड़ देश से फरार हो गए थे। कुछ साल पहले तक सभी सैन्य विशेषज्ञ नाटो को शीत युद्ध के अवशेष के तौर पर देखते थे। उनका मानना था कि नाटो अब खत्म हो चुका है। सिर्फ अमेरिका की जिद के कारण यह सैन्य संगठन जिंदा है। लेकिन, यूक्रेन पर रूस के हमले ने नाटो को ऑक्सीजन प्रदान की और यह संगठन अब दौड़ने लगा है। रूस को अधिकतर यूरोपीय देश अब खतरे के तौर पर देख रहे हैं। यही कारण है कि शीत युद्ध के समय से ही तटस्थ रहा फिनलैंड अब नाटो का सदस्य बन चुका है। अब पुतिन के लिए यह समझाना मुश्किल हो रहा है कि कैसे पूरा यूरोप रूस के खिलाफ इकट्ठा हो गया है।
पुतिन पर खत्म हुआ पड़ोसी देशों का भरोसा
नॉर्वेजियन हेलसिंकी कमेटी के एक वरिष्ठ नीति सलाहकार इवर डेल ने कुछ महीनों पहले कहा था कि फिनलैंड कभी भी रूस की दुश्मनी नहीं चाहता था। यही कारण था कि वह खुद को एक तटस्थ देश के रूप में देखता था। पुतिन हमेशा से यह दावा कर रहे थे कि वे यूक्रेन पर आक्रमण नहीं करेंगे। कई बार तो उन्होंने इसे मिलिट्री एक्सरसाइज भी बताने की कोशिश की। लेकिन, रूसी सेना ने अचानक यूक्रेन पर हमला कर दिया। इस घटना ने पूरे यूरोप में पुतिन की साख को चोट पहुंचाई है। अब कोई भी देश पुतिन पर भरोसा करने को तैयार नहीं है। यही कारण है कि हर देश खुद की सुरक्षा को मजबूत करने में जुटा है। इवर डेल ने यह भी कहा कि व्यवस्थित झूठ बोलना शायद कुछ समय के लिए एक रणनीति के रूप में उपयोगी था, लेकिन यह हमेशा काम नहीं आता है।