नई दिल्ली: भारत की तमाम अदालतों में कई केस सालों से फैसले का इंतजार कर रहे हैं। लंबे समय से लंबित मामलों में महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों और विकलांगों के खिलाफ मामलों में तेजी लाने के लिए स्थापित की गई फास्ट ट्रैक सामान्य कोर्ट की तरह लेट लतीफी की शिकार हो रही हैं। पिछले तीन सालों में पेंडिंग मामलों में 40 फीसदी का इजाफा हो गया है। साल 2020 में ये मामले 10.7 लाख थे, लेकिन अब ये बढ़कर 15 लाख से ज्यादा हो गए हैं।
फास्ट ट्रैक कोर्ट यानी एफटीसी की स्थापना देशभर में मामलों के जल्दी निपटान के लिए की गई। रेप केस और पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज मामलों की सुनवाई के लिए फास्ट-ट्रैक स्पेशल कोर्ट शुरू किए गए। इन एफटीएससी कोर्ट में रेप और पॉक्सो के मामलों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है। अदालतों में इस तरह के दो लाख से ज्यादा मामले पेंडिंग हैं।
केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने पिछले सप्ताह संसद में कुछ डेटा पेश किया। इसके अनुसार, 411 विशेष पॉक्सो अदालतों सहित 764 एफटीएससी 28 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में काम कर रही हैं। इन एफटीएससी ने 1 लाख 44 हजार से ज्यादा मामलों का निपटारा किया है जबकि 1 लाख 98 हजार 563 केस लंबित हैं।
2015-2020 के दौरान 14वें वित्त आयोग की सिफारिश के अनुसार राज्यों द्वारा लगभग 1,800 फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित करने की योजना बनाई गई थी, जिससे गंभीर मामलों की जल्दी सुनवाई हो सके। इनमें पांच साल से ज्यादा समय से लंबित संपत्ति संबंधी मामले भी शामिल हैं। फिलहाल देशभर में 843 फास्ट ट्रैक अदालतें काम कर रही हैं।
2018 में निर्भया कांड और आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम के बाद केंद्र सरकार ने रेप और पॉक्सो एक्ट से संबंधित मामलों के त्वरित निपटान के लिए 389 विशेष पॉक्सो अदालतों सहित 1,023 स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित करने के लिए योजना बनाई थी। शुरुआत में 2021 तक एक साल तक और अब इस योजना को इस साल मार्च तक बढ़ा दिया गया है। इस प्रोजेक्ट की कुल लागत 767 करोड़ रुपये होने का अनुमान है, जिसमें से 474 करोड़ रुपये निर्भया फंड का हिस्सा है।