सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को “तलाक-ए-किनाया और तलाक-ए-बाइन” को अवैध घोषित करने वाली एक याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया है। याचिका में “तलाक-ए-किनाया और तलाक-ए-बाइन” सहित मुसलमानों के बीच “एकतरफा और न्यायेतर” तलाक के सभी रूपों को अवैध घोषित करने और असंवैधानिक घोषित करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी। अब इस याचिका पर जस्टिस एस अब्दुल एस नजीर की पीठ ने केंद्र को नोटिस जारी किया। साथ ही कोर्ट ने इसी तरह की अन्य याचिकों को भी एक साथ मिला दिया है। सुनवाई के दौरान जस्टिस नजीर ने कहा, ”यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। इसके बारे में पढ़कर मैं हैरान रह गया।”
न्यायमूर्ति नजीर और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ ने कानून एवं न्याय मंत्रालय, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय और अन्य को नोटिस जारी कर जवाब मांगा। शीर्ष अदालत कर्नाटक स्थित सैयदा अंबरीन द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया था कि प्रथाएं मनमानी और तर्कहीन हैं। ये प्रथाएं समानता, गैर-भेदभाव, जीवन और धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों के विपरीत हैं।
डॉक्टर सैयदा अमरीन अपने पति और ससुरालवालों की तरफ से शारीरिक और मानसिक यातना का शिकार हो चुकी हैं। याचिकाकर्ता का कहना है कि कई इस्लामिक देशों में इन पर बैन है, लेकिन भारत में अभी भी जारी हैं। उन्होंने अपनी याचिका में इस बात पर जोर दिया है कि ऐसी प्रथाएं न केवल महिला की गरिमा के खिलाफ हैं, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25 में दिए गए मूल अधिकारों का भी उल्लंघन करती हैं।
शीर्ष अदालत अब इस मामले को तलाक ए हसन और अहसन को चुनौती देने वाली याचिकाओं के साथ 11 अक्टूबर को सुनवाई करेगा। याचिका के मुताबिक तीन तलाक की ही तर्ज पर तलाक-ए-किनाया/ तलाक-ए-बाइन में भी एक ही बार में (बोलकर/ लिखित रूप में भेजकर) तलाक दिया जाता है।
क्या हैं तलाक-ए-किनाया/तलाक-ए-बाइन?
तलाक-ए-किनाया/तलाक-ए-बाइन के बारे में कहा जाता है कि यह भी तीन तलाक के जैसा ही है। शब्दों के जरिए तलाक-ए-किनाया/तलाक-ए-बाइन दिए जाते हैं। जैसे, “मैं तुम्हें आजाद करता हूं, अब तुम आजाद हो, तुम/यह रिश्ता हराम है, तुम अब मुझसे अलग हो आदि हो सकता है।”