मित्रता मापने का कोई पैमाना नही होता है। यह दिल से आत्मा से जुड़ने वाला रिश्ता है। कुछ रिश्ते जन्म से बनते है, मगर मित्रता का रिश्ता व्यवहार से बनता है। वैभव मे नही अपितु विपति मे सहयोग करने वाला सच्चा मित्र होता है। उक्त बाते वाणी समाज द्वारा आयोजित भागवत कथा के सातवे व अंतिम दिवस की कथा मे रतलाम से पधारे पंडित राम मिलन शास्त्री ने कहे।व्यास पीठ से श्री शास्त्री ने कथा मे श्रीकृष्ण व सुदामा के मिलन के मार्मिक प्रसंग सुनाया तो श्रोता भाव विभोर हो गई। उन्होंने दोनों की मित्रता पर कहा कि इतने वैभव शाली सम्राजय के स्वामी श्री कृष्ण ने विपति मे घिरे अपने मित्र को सीने से लगाकर चरण धोये व उनके चरण की पूजा की व सुदामा को आलिंगन कर खूब रोये। यही सच्ची मित्रता है। उन्होंने कहा की भागवत सेवा मे लगे रहो, जीवन सार्थक हो जायगा। आप श्री ने कहा कि अपना अपना करने की बजाय ठाकुर जी की एक माला *ओम् नमो भगवते वासुदेवाय* की करने मात्र से श्री हरि जीवन को तार देते है। यहाँ अपना कोई नही है, श्री हरि के अलावा सब रिश्ते झूठे है। *मीठे रस से भरोनि राधा *रानी लागे, म्हरानी लागे मने* *प्यारो प्यारो जमुना जी रो पानी*
*लागे*, *अरे द्वारपालो कन्हैया से कह दो दर पर सुदामा गरीब आ गया है… भटकते भटकते न जाने कहा से तुम्हारे महल के आ गया है*। जैसे ही यह भजन पंडाल मे पंडित व भजन मंडली ने गाया तो पुरा पंडाल भाव विभोर हो कर नृत्य करने लगा। प्रसंग को सुनते ही सभी की की आँखे नम हो गई।कथा के अंतिम दिवस 18हजार श्लोक मे समाये 12 स्कन्ध का संक्षिप्त मे सार सुनाया। कथा विश्राम पर कथा के मुख्य यजमान मन्नालाल बालुसा परिवार द्वारा मंत्रोउचार द्वारा विधि विधान से यज्ञ कर पूर्णा हुति की गई। यजमान परिवार की और से महाप्रसादी वितरित की गई। यजमान परिवार के तरुण वाणी, दीपक वाणी, धर्मेंद्र वाणी द्वारा सपत्नीक पूजा अर्चना कर पंडित जी का शाल श्रीफल भेटकर सम्मान किया गया। कथा श्रवण के लिए आलीराजपुर,जोबट,कुक्षी,सहित अनेक स्थानों से भक्त आते थे।विश्राम के अगले दिन पंडित जी की विदाई पर यजमान परिवार भावुक होकर भूलवश हुई गलती की क्षमा याचना की गई। इस अवसर पर सात दिनों तक कथा व्यवस्थापक मे नितिन वाणी, योगेश वाणी, रजनीकांत वाणी, कैलाश चंद वाणी, हरिओम वाणी, पवन वाणी, जितेन्द्र प्रसाद वाणी का सराहनीय सहयोग रहा।