रूपी सोरेन और हेमंत सोरेन
मेरी मां रूपी सोरेन ने संघर्ष का जीवन बिताकर मुझे और मेरे भाई–बहनों को बहुत कठिनाइयों में पाला है। एक समय ऐसा भी था, जब हमारे पिता शिबू सोरेन महीनों घर से बाहर रहकर आंदोलन करते थे। उस समय गरीबी ऐसी थी कि दूध मांगने पर मां हमारा मन रखने के लिए कलेजे पर पत्थर रखकर आटा घोलकर यह कहकर पिला देती थीं कि बेटा यह दूध है। हम भाई–बहन उसे खुशी से पी भी लेते थे। अप्रैल 2022 में जब मां बीमार पड़ी तो मैं उन्हें हैदराबाद ले गया था। भले ही आज मैं सीएम हूं लेकिन जब भी चुनौतियां दस्तक देती हैं तो मैं मां–बाबा के पास बैठ जाता हूं। हमेशा सुकून और सुरक्षा का अहसास मिलता है।
शीला देवी और अनुराग ठाकुर
ममता, करुणा और त्याग की प्रतिमूर्ति मेरी जननी, मेरी मां के बारे में मैं जितने भी शब्दों का प्रयोग करूं कम है। बचपन से लेकर सार्वजनिक एवं राजनीतिक जीवन के जिस भी पायदान पर रहा हूं, हर उस पायदान का सम्मान करना और आत्मीयता से ज़मीन से जुड़ कर उसका सामना करना मेरी मां ने ही मुझे सिखाया है। मां ने हमेशा कहा, ‘बेटा अनुराग, तुम कहीं भी चले जाओ, कुछ भी बन जाओ लेकिन अपनी जड़ों और ज़मीन को हमेशा याद रखना और मानवता को सर्वोपरि मानते हुए जनसेवा करना। नेकी करना और भूल जाना।‘ अपनी मां दिए इसी संस्कार और मंतव्य को निभान की कोशिश में जुटा हूं।
शिबानी बागची और स्मृति इरानी
बिना विचलित हुए किसी भी मुसीबत से बाहर निकलना मैंने अपनी मां से सीखा है। मां मेरे लिए सबसे बड़ी मेंटर रही है। मेरी सीख का संस्थान रही है। मैंने मां को देखा है कि उस वक्त भी उनके चेहरे पर चिंता की लकीर नहीं होती थी जब अगले महीने देने के लिए मकान के किराए का इंतजाम नहीं होता था। वह हर ऐसी प्रतिकूल परिस्थिति में खुद को और हम सबको बाहर निकालती थी। जीवन की ऐसी सीख के बीच मां ने मुझे बड़ा किया। मैंने संघर्ष के एक–एक पल को देखा है। मां से मिली इसी सीख ने मुझे इतना मजबूत किया कि आज कोई चुनौती या संषर्ष मुझे हमेशा आगे ही जाने को प्रेरित करता है।
सरिता फडनवीस और देवेंद्र फडनवीस
मेरी माताजी ने राजनीति और समाज को बहुत करीब से देखा है। पिताजी विधान परिषद के सदस्य थे इसलिए नेताओं और समाजसेवकों का घर पर आना–जाना हमेशा लगा रहता था। हालांकि, पिता जी का निधन बहुत जल्दी हो गया था फिर भी माताजी ने मुझे कभी राजनीति, सामाजिक क्षेत्र में काम करने से रोका नहीं, बल्कि हमेशा प्रोत्साहन देती रही। बचपन में ही मैं एबीवीपी के लिए पूरी तरह से समर्पित हो गया था। राजनीति में आज मैं जो कुछ भी हूं उसमें मेरी मां की बहुत बड़ी भूमिका है।
ललिता तिवारी और मनोज तिवारी
मैं 12 साल का था, जब मेरे पिता चंद्र देव तिवारी का निधन हो गया। मां ललिता देवी (86) ने ही हम 5 भाई–बहनों को पाल पोसकर बड़ा किया। यह 1995 की बात है, जब मैं दो–ढाई साल से गा रहा था। लेकिन सफलता नहीं मिल रही थी। उन्होंने मुझे गांवों में पारंपरिक पूजा–अर्चना के दौरान गाए जानेवाले माता के भक्ति गीत ‘निमिया के डाल मैया’ गाने की सलाह दी। उस गाने से मैं रातोंरात स्टार बन गया। जब मैं राजनीति में आया, तब भी मां के विचार मेरे बहुत काम आए। उन्होंने मुझे सामाजिक मर्यादा का पालन करने, सबको साथ लेकर चलने, ईमानदारी से काम करने, सकारात्मक सोच रखने और बेईमानी से दूर रहने की जो सीख दी।
सीमा गंभीर और गौतम गंभीर
मेरे जीवन में मेरी मां सीमा गंभीर (62) का बहुत बड़ा योगदान रहा है। मां ने मुझे पूरी ईमानदारी और साफगोई से जीवन जीना सिखाया। स्कूल में जब मेरे अच्छे नंबर नहीं आते थे या क्रिकेट के मैदान पर जब मुझे सफलता नहीं मिल पाती थी, तब उनकी कही एक बात हमेशा मेरा मनोबल बढ़ाती थी। मां कहती थीं कि पहला राउंड कौन जीतता है, यह मायने नहीं रखता है। आखिरी राउंड कौन जीता, वही असल मायने रखता है। उन्होंने मुझे हार को स्वीकार करके आगे बढ़ना और अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए जी–जान से कोशिश करना सिखाया। जब मैं राजनीति में आया तो मां को लगता था कि मेरे जैसा व्यक्ति राजनीति में फिट नहीं हो पाएगा
धनपति देवी और केशव प्रसाद मौर्य
आज मैं जो कुछ भी हूं, जहां मैं हूं अपनी मां के आशीर्वाद से हूं। मेरी मां मेरे साथ हैं तो मैं दुनिया में खुद को सबसे अधिक सौभाग्यशाली मानता हूं। मुझे याद है कि जब मेरा दिल्ली के एक अस्पताल में ऑपरेशन हो रहा था तो मां मुझे देखने आईं। मुझे बेहद पीड़ा में देखकर वह दुखी हुई और मेरे सिर पर हाथ रखा। यकीन मानिए मां का स्पर्श पाते ही मेरा दर्द, मेरी तकलीफ कम हो गई। मां धरती पर साक्षात ईश्वर का रूप होती है जो हमें हमेशा संकट से बचाती हैं।
चंद्रकांता और कैलाश खेर
जब मैं 7-8 साल का था, तब मैंने मां से कह दिया था कि मुझे शास्त्रीय संगीत सीखने के लिए तानपुरा चाहिए। मां ने शायद य़ह बात याद रखी होगी। जब मैं 13-14 की उम्र में घर से भागकर किसी बस्ती–बस्ती में घूम रहा था, तब मां ने मुझे ढूंढा। मेरी मां रो पड़ी कि अपनी हालत कैसी कर ली? उन्होंने तभी तानपुरा खरीदने के लिए 1800 रुपये मुझे दिए। ऐसा करके मां मुझे घर बुलाना चाहती थीं। मुझे लगता है, मां ही एक ऐसा रिश्ता है, जो रिश्तों के कहीं ऊपर है। मां एक धर्म है, जो ऐसा धर्म है, पृथ्वी पर जो सिर्फ और सिर्फ दुख अपने हिस्से में रखती है और सुख अपने बच्चों पर न्योछावर करती है।
उषा त्रिपाठी और अमीश त्रिपाठी
मेरी मां, उषा त्रिपाठी जी ने हम 4 भाई–बहनों के लिए बहुत बलिदान दिए। खुद एक साधारण स्कूल में पढ़ी थीं लेकिन अपने बच्चों को सबसे अच्छे स्कूल में भेजा। हमें सपने देखना सिखाया। हर दम कहती थीं कि हम सभी भाई–बहनों को अपने काम में अव्वल नंबर बनना है ताकि हम अपने मां–बाप के बलिदान को बेकार न जाने दे। अगर बच्चे आगे बढ़ते हैं तो मूल वज़ह यह होती है कि मां–बाप अपने बच्चों पर सब न्यौछावर कर देते हैं।
नीरजा द्विवेदी और मीथिका द्विवेदी
जीवन की शुरुआत ही जिस मां से होती है उसके महत्व को शब्दों में नहीं लिखा जा सकता है। अगर वही न होती तो हम भी न होते। मां है तो हम सब हैं। मां तो हर वक्त मुझे प्रेरणा देती हैं।
कुसुम शर्मा और अनुष्का कौशिक
दुनिया की सबसे बड़ी योद्धा एक मां होती है। बचपन में मुझे टीचर ने डांस करने के लिए कहा और एक कैसेट पकड़ा दी जो पुराने टेप रिकॉर्डर में चलती थीं। तब मम्मी ने पूरे इलाके में घूमकर वैसे टेप रिकॉर्डर का इंतजाम किया ताकि मैं अच्छी तरह परफॉर्म कर सकूं। मेरे जीवन में मां का बड़ा रोल रहा है। वह बेहद साहसी हैं। हमेशा बहुत ज्यादा मोटिवेशन मिला है मुझे उनसे। मैं फिल्म इंडस्ट्री में हूं। मैं सहारनपुर से दिल्ली आई फिर मुंबई पहुंची। मेरी दुनिया बदली लेकिन उनकी दुनिया तो वही रही। उन्होंने हर मुश्किल का सामना करते हुए मुझे बढ़ावा दिया है।