सोहित सोनी। ये नाम है एक साधारण कद-काठी, शक्लो-सूरत और बहुत ही आम से दिखने वाले लड़के का। फोटो देखेंगे तो आप पहचान भी जाएंगे। टीवी पर देखा होगा कई बार। कभी तेनाली रामा तो कभी भाबीजी घर पर हैं टीवी सीरियल में। साधारण से दिखने वाले इस कलाकार की कहानी बहुत असाधारण है। दिल्ली के पास फरीदाबाद के एक लोअर मिडिल क्लास परिवार से ताल्लुक रखने वाले सोहित कभी उसी फरीदाबाद की गलियों में बालों में लगाने वाले क्लिप बेचा करते थे।
कारण, परिवार की माली हालत ठीक नहीं थी और कुछ खुद का मन भी पढ़ाई में लगता नहीं था। कभी झोलाछाप डॉक्टर्स के क्लिनिक पर सफाई का काम किया तो कभी मरीजों को सलाइन और इंजेक्शन लगाने का काम। लोगों को हंसाने का हुनर आता था तो सोचा टीवी का रुख किया जाए। शुरुआत में कोई काम नहीं मिला, मूवर्स एंड शेकर्स से लेकर आप की अदालत तक, ऐसे कई प्रोग्राम्स में ऑडियंस में बैठकर ताली बजाने का काम मिलता रहा।
सोहित की कहानी कोई परीकथा जैसी नहीं है, जिसे एकदम से कोई ब्रेक मिला और स्टार हो गए। 5-10 मिनट के रोल और 2-5 हजार रुपए के लिए प्रोडक्शन हाउस के चक्कर लगाना, कास्टिंग डायरेक्टर्स से मिन्नतें करना और हर छोटे काम को हां कह देना। बरसों यही किया। हालांकि आज सोहित, भाबीजी घर पर हैं जैसे सीरियल में 80 से ज्यादा कैरेक्टर प्ले कर चुके हैं। तेनालीरामा शो के लिए 3 साल तक रोज अपना सिर मुंडवाया। अब इनकी झोली में कई सीरियल, एक-दो वेब सीरीज और एक-दो फिल्में भी हैं।
आज स्ट्रगल स्टोरी में पढ़िए, फरीदाबाद के सोहित सोनी की कहानी जिसने अपने सपनों के लिए मायानगरी मुंबई को चुना।
पहले जानते हैं सोहित कौन हैं
सोहित सोनी तेनालीरामा शो में मनी का किरदार निभाकर फेमस हुए हैं। ये भाबीजी घर पर हैं शो में न्यूज एंकर, दादी, सब्जी वाला, वकील जैसे करीब 80 अलग-अलग रोल प्ले कर चुके हैं। मे आइ कम इन मैडम, जीजाजी छत पर हैं में भी इनके कई रोल थे। हप्पू की उलटन पलटन हो या जीजाजी छत पर हैं शो, सब टीवी का ये जाना-माना चेहरा हैं। ये मास्साब, इंस्पेक्टर अविनाश जैसी फिल्मों और सीरीज का भी हिस्सा रहे हैं। ये जल्द ही जी 5 के शो कंट्री माफिया में पनवाड़ी के रोल में नजर आएंगे। सोहित ने भाबीजी घर पर हैं शो से ही टीवी सीरियल्स में जगह बनाई, वहीं उन्हें पहचान तेनाली रामा से मिली।
यहां तक पहुंचने का सफर बेहद मुश्किल रहा। बचपन गरीबी में और फिर काम की तलाश में कई साल बिताए। बचपन से लेकर आज तक के संघर्ष को पढ़ते हैं सोहित की जुबानी-
कहने को सुनार हैं, लेकिन गरीबी में बीता बचपन
हम यूपी के बेचुपरु गांव से हैं। पापा बहुत गरीब थे और वो रोड बनाते थे। हम सोनी हैं, जो सुनार होते हैं। सुनार सुनते ही लोगों को लगता है कि अमीर हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। दादा जी पीतल की अंगूठी बनाया करते थे। खानदानी काम मंदा था तो कुछ रिश्तेदारों ने पिताजी को राशन की दुकान में बैठा दिया। शादी के बाद माता-पिता फरीदाबाद आकर बस गए। सिर्फ पिताजी कमाते थे और घर में खाने वाले 7-8 लोग थे। पिताजी पढ़े-लिखे नहीं थे, तो दूसरे शहर में बसना बहुत मुश्किल था। पहले हम किराए के मकान में रहे, फिर 30 गज का मकान खरीद लिया। ऐसी परिस्थितियों में शौक पूरा करना बहुत मुश्किल था। घर खर्च के लिए पिताजी चक्कों की मरम्मत का काम भी करते थे, जिससे कुछ एक्स्ट्रा कमाई हो सके और किराया दिया जा सके।
घरवाले चाहते थे मैं डॉक्टर बनूं
घर की स्थिति देखकर मेरा लोगों को हंसाने का और दूसरों का मनोरंजन करने का मन होता था। कभी एक्टिंग का नहीं सोचा था, क्योंकि बहुत गरीबी थी। मैं पढ़ाई में भी कमजोर रहा हूं, लेकिन हमेशा कुछ अच्छा करने की कोशिश करता था। घरवाले चाहते थे मैं बड़ा होकर डॉक्टर बनूं। मां को लगता था एक बेटा डॉक्टर बने, एक वकील बन जाए, बहन जज बन जाए। मम्मी के सपने बहुत बड़े थे। हम भी हां-में-हां मिलाते थे। हम चटाई पर सोते थे, लेकिन मैं लकड़ी काटकर कभी सोफा तो कभी पलंग बना देता था, पिताजी मजाक उड़ाते कि तुझे टेंटवाला बना दूंगा।
8वीं क्लास में गलियों में बालों में लगाने के क्लिप बेचे
पढ़ाई में कमजोर था और संगत बिगड़ गई थी, तो पापा बहुत गुस्सा करते थे। एक बार उन्होंने मुझे कुछ लड़कियों की क्लिप लाकर दीं और कहा अब से स्कूल के बाद तू यही बेचेगा। 8वीं में था तब ही पूरी गली में घूमकर क्लिप बेचता था। दिन भर के 150 रुपए तक कमा लेता था। पापा रोज पूछते कि कितने पैसे कमाए आज, मैं 30 रुपए बताता था और बाकी बचा लेता था। 4-5 महीने ऐसा ही चला, फिर मेरा मन उठने लगा। शर्मिंदगी भी होती थी, मुझे वो काम नहीं करना था।
क्लिनिक में रहकर सीखा काम
एक बार मम्मी मुझे एक झोला छाप डॉक्टर के पास ले गईं। इलाज के बाद मां ने डॉक्टर से कहा कि मेरे बेटे को भी दुकान पर बैठा लो, वो मान गया। उस डॉक्टर को खुद कुछ नहीं आता था, तो वो मुझे क्या सिखाता। कुछ दिनों में दूसरे क्लिनिक में नौकरी शुरू कर दी। मुझे क्लिनिक की सफाई करनी होती थी, दवाई जमानी होती थी। कुछ समय बाद मुझे इंजेक्शन और दवाई देना भी आ गया। वहीं से जिज्ञासा बढ़ने लगी। एक वक्त ऐसा आया कि पूरे गली-मोहल्ले के लोग मेरे सुझाव पर ही दवाई लेने लगे थे। फिर नर्सिंग होम में काम शुरू कर दिया। सोचा था कुछ समय बाद क्लिनिक खोल लूंगा।
टीवी पर दिखने की चाह में डेढ़ महीने किया चैनल में कॉल
जब लाफ्टर चैलेंज आया तो मैंने देखा अलग-अलग लोग भी एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में आते हैं। जो पैसे मिलते थे उनसे मैं अमिताभ बच्चन को फोन मिलाता था। एसटीडी पीसीओ वाला कहता था, भाईसाब कोई कंपनी का नंबर बताओ, ऐसे फोन नहीं लगता। मैं बहुत छोटा और मासूम था। फिर मैंने टोटल टीवी न्यूज चैनल को कॉल करना शुरू किया। वो छोटा चैनल था तो किसी ने फोन उठा लिया। मैंने फोन पर कहा सर मुझे भी टीवी पर आना है। उन्होंने जवाब दिया कि ऐसे ही कोई टीवी पर नहीं आ जाता।
मैंने कहा- सर सिक्का खत्म होने वाला है (कॉल कट होने वाला है) जल्दी बता दीजिए कि टीवी पर कैसे आ सकते हैं। मैंने डेढ़ महीने तक उसे परेशान किया। वो मुझसे पूछता था काम क्या करोगे, मैं कहता था न्यूज एंकर के पीछे दिखने वाले गमले ही साफ कर दूंगा, लेकिन काम दे दो। एक दिन उसने तंग आकर मुझसे कहा कि ठीक है तुम एक-दो लड़के और लेकर आ जाओ। मैं पहुंचा, मुझे न्यूज शो में ताली बजाने के लिए बैठाया गया। मैं समझ गया था काम कैसे होता है।