सोनभद्र.(आनंद कुमार )
नया साल का तीसरा दिन भारत का इतिहास में काफी यादगार है. इस दिन भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले का जन्म इसी दिन हुआ था. सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के एक गांव में हुआ था. इसके साथ ही वह भारत के पहले बालिका विद्यालय की पहले प्रधानाचार्या और पहले किस स्कूल के संस्थापिका थी. बता दें कि सावित्रीबाई फुले अपना पूरा जीवन एक मिशन की तहत व्यतीत किया. उनको समाजसेवी, का नारी मुक्ति आंदोलन में हिस्सा लेने वाली और देश की पहली अध्यापिका के रूप में जाना जाता है. दर्शअल 19वीं साड़ी में महिलाओं को पढ़ने का अधिकार नहीं था. सिर्फ ऊंची जाति के पुरुष ही पढ़ाई करते थे. सावित्रीबाई भी शादी के समय तक स्कूल नहीं गई थी. उनके पति तीसरी कक्षा तक पढ़े थे. इसके बाद सावित्रीबाई फुले ने अपने पति से ही शिक्षा ली और महिलाओं के अधिकार, शिक्षा, छुआछूत, सती प्रथा,बाल विवाह और विधवा विवाह को लेकर समाज में चेतना फैलाई थी. उन्होंने अंधविश्वास, रूहिवादी धारणा ओं को तोड़ने के लिए लंबा संघर्ष किया. उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोलें. साल 1848 में उन्होंने पुणे में देश के पहले बालिका स्कूल की शुरुआत की थी. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के कुलपति शांति श्री धुलीपूड़ी पंडित ने पिछले साल केंद्र सरकार से अनुरोध किया था कि समाज सुधारक सावित्रीबाई फुले की जयंती 3 जनवरी को 8 मार्च के साथ महिला दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए विश्वविद्यालय की पहली महिला कुलपति पंडित ने कहा था कि फुले के कार्यों और योगदान की वजह से मैं यहाँ पहुँच सकी हूँ, जहाँ आज मैं हूँ,उन्होंने कहा था कि सावित्री बाई फुले के वजह से समाज ने प्रगति की है. 8 मार्च को महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है लेकिन हमें फुले की जयंती को भी महिला दिवस के रूप में मनाना चाहिए.