‘उस समय ऐसी सत्ता से लड़ाई थी, जिसका सूरज नहीं छिपता था। ऐसी सत्ता से वो नौजवान टकरा गए। आज हम आजाद हैं। उस रास्ते पर अग्रसर हैं, जैसा उन्होंने सपना देखा था, लेकिन वो आजादी पूरी तरह से नहीं मिली है। जैसा समाज वह सृजित करना चाहते थे, वह समाज अभी नहीं बना है। अब फिर से वह संकल्प लेने का दिन है। मगर, हम आज उस समाज की ओर अग्रसर हैं, जिसका सपना भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने देखा था।’ यह कहना है शहीद भगत सिंह के भतीजे किरणजीत सिंह का।
पाकिस्तान में भी लगाए जाते हैं भगत सिंह के नारे
किरण जीत सिंह ने बताया कि भारत-पाकिस्तान का विभाजन बड़ी त्रासदी है। कुछ समय पहले मैं वहां शहीद दिवस यानी आज ही के दिन गया था। वहां अब वह जेल तो नहीं बचीं, मगर वहां आज भी भगत सिंह चौक है। वहां आज ही के दिन जुलूस निकालते हैं। वीर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के नाम के नारे भी लगाए जाते हैं।
मनुआभान टेकरी पर लगेगी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की मूर्तियां
कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान घोषणा की है कि मनुआभान टेकरी पर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की मूर्तियां लगाई जाएंगी। उनका स्मारक भी बनेगा। इसके अलावा, पहली से 12वीं क्लास में इनके बलिदान का पाठ पढ़ाया जाएगा। इसके बाद सीएम ने भगत सिंह का पत्र पढ़कर भी सुनाया।
सुनाया भगत सिंह का एक किस्सा
कार्यक्रम में मनोज मुतंशिर ने कहा कि एक दिन दो अंग्रेज आफिसर रॉबर्ट और बारकर भगत सिंह से मिलने आते हैं। भगत सिंह से कहते हैं कि भगत ब्रिटेन सरकार ने सोचा है कि फांसी माफ कर दी जाए। बस तुम्हें माफीनामा लिखना है। जिसमें तुम्हें लिखना है- तुम आगे से सरकार के खिलाफ कुछ भी नहीं करोगे। भगत सिंह ने कुछ कहा। वह मुस्कुराते हुए दोनों की तरफ देखते रहे।
भगत सिंह ने उस समय एक चिठ्ठी लिखी, जिसमें उन्होंने लिखा कि मेरी फांसी रद्द कर दी जाए, क्योंकि फांसी अपराधियों को दी जाती है, मगर मैं क्रांतिकारी हूं। भारत माता का बेटा हूं। मुझे चौराहे पर गोली से उड़ा दिया जाए। क्योंकि वो मेरी शान होगी। अंग्रेज सरकार ने ऐसा नहीं किया।
इस दौरान, मनोज ने कई शेर भी सुनाए। लोगों में देशभक्ति की लहर दौड़ गई। उन्होंने कहा कि वीर शहीद कैप्टन अनुज नायर का जन्मदिन भी है। उनकी भी उम्र पूरी 23 वर्ष थी, जो फांसी के समय भगत सिंह की थी। जब श्रीराम ने लंका जीती, तो लक्ष्मण ने कहा कि यह सोने की लंका अब आपकी हुई। इसे हमने बल से जीता है। तब श्रीराम ने कहा- यह सोने की लंका मुझे नहीं जंच रही है। मां और मातृभूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊपर है।
कुछ लोग, जिनसे मुझे बार बार परेशानी होती है, जो हर बात का सबूत मांगते हैं, यह वह लोग हैं, जो सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत मांगते हैं। क्या अब हमारी सेना को शौर्य सिद्ध करना पड़ेगा? लानत है! अगर दुनिया में कैप्टन विक्रम बत्रा और अन्य शहीदों को बलिदान और शौर्य को सिद्ध करना पड़े।
शहीदों के परिजनों का सम्मान….
समारोह में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के परिवार के लोगों को सम्मानित किया गया। इसके अलावा, पोस्ट इंडिपेंडेंट इंडिया की विशेष लड़ाइयों में शहीद जवानों में से मनोज पांडे और कैप्टन विक्रम बत्रा के परिवार के लोग भी मौजूद रहे। वहीं, अहमद नगर महाराष्ट्र से राजगुरु के वंशज विलास प्रभाकर, सुखदेव के वंशज अनुज थापर भी सोनीपत से भोपाल पहुंचे थे। परमवीर चक्र विभूषित शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा के पिता गिरधारी लाल बत्रा और परमवीर चक्र विभूषित मनोज पांडे के भाई मनमोहन पांडे मौजूद रहे।
देशभक्ति के गानों से बांधा समा
इस दौरान गायक इशिता विश्वकर्मा और आशीष ने देशभक्ति के गानों से कार्यक्रम का समा बांध दिया। इस दौरान उन्होंने मेरा रंग दे बसंती चोला, तेरी मिट्टी, मेरे तन मन धन बस जन गण मन, ऐ मेरे वतन के लोगो, वंदे मातरम्, दुनिया हम अकेले हैं, जो माटी को मां कहते हैं। आदि जैसे गानों को परफॉर्म किया। बता दें कि इशिता सारेगामा पा, इंडियाज गॉट टैलेंड में आदि में गायन का लोहा मनवा चुकी हैं।
लानत है…अगर हमारी सेना को अपने शौर्य को सिद्ध करना पड़े
मनोज ने कहा कि – मुझे बड़ा दुख होता है जब यहां कुछ बुद्धिजीवी हमसे सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत मांगते हैं। हमारी सेना को अपना शौर्य सिद्ध करना पड़ेगा। अब विक्रम बत्रा, मनोज पांडे के परिवार को यह सिद्ध करना पड़ेगा कि उनके बेटे कितने यशस्वी और वीर थे। लानत है अगर हमें ये सिद्ध करना पड़े। ये बात सोचने वाली है कि ये टेलीविजन चैनल पर बैठकर कहते हैं अगर कोई सिपाही देश के लिए जान देता है इट्स नॉट बिग डील, ही इज जस्ट डूइंग हिज जॉब, ही इज गेटिंग पेड फॉर इट। फौजियों को एक लालच होता है कि भारत मां से प्यार करने वालों की कोई सूची बने, जिनने हिंदुस्तान से टूटकर मोहब्बत की। तो एक नाम उनका भी लिखा जाए। इसके बाद मनोज ने अपने बैंड आशीष भट्टाचार्य और इशिता विश्वकर्मा के साथ तेरी मिट्टी में मिल जावां गीत पर सुर मिलाया और वंदेमातरम् से समापन किया।
दिलेरी के साथ हम्बलनेस भी सीखनी चाहिए
कैप्टन विक्रम बत्रा के पिता गिरधारी लाल बत्रा का कहना है कि विक्रम बत्रा आर्मी में कमीशंड हो चुके थे और उनकी पहली पोस्ट भी मिल चुकी थी। उन्होंने अपनी पहली गाड़ी खरीदी और पालमपुर आए थे। रास्ते में कुछ महिलाओं को जाते हुए देखा, ये महिलाएं उनकी टीचर्स थी। विक्रम ने गाड़ी बैक कर उनके पैर छुए। आज के हमारे बच्चों को उनसे दिलेरी के साथ हम्बलनेस भी सीखनी चाहिए।