किंग डॉलर की बादशाहत को चुनौती दी जा रही है। दुनिया की कुछ बड़ी अर्थव्यवस्थाएं अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अमेरिकी करेंसी के इस्तेमाल का विकल्प तलाश रही हैं। रूस, चीन, भारत और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश इनमें शामिल हैं।
इसके अलावा बांग्लादेश जैसे कम-से-कम दर्जन भर छोटे एशियाई देश भी डॉलर की जगह स्थानीय करेंसी में आपसी व्यापार का प्रयोग कर रहे हैं।
रूस और चीन पहले ही लोकल करेंसी को दे रहे बढ़ावा
डॉलर की मजबूती को चुनौती देने में कॉरपोरेट्स भी पीछे नहीं हैं। दुनियाभर की कंपनियां लोन का बड़ा हिस्सा स्थानीय करेंसी में चुका रही हैं। रूस और चीन ने पहले से इंटरनेशनल पेमेंट्स के लिए लोकल करेंसी के इस्तेमाल को बढ़ावा दे रहे हैं। ये दोनों देश इसके लिए ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी का भी इस्तेमाल कर रहे हैं।
भारत भी रुपए के अंतरराष्ट्रीयकरण के लिए लगा रहा जोर
अब बांग्लादेश, कजाकिस्तान और लाओस भी युआन के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए चीन के साथ बातचीत कर रहे हैं। इन सबके बीच भारत ने रुपए के अंतरराष्ट्रीयकरण के बारे में जोर-शोर से बात करना शुरू कर दिया है। संयुक्त अरब अमीरात के साथ द्विपक्षीय पेमेंट मेकैनिज्म के साथ इसकी शुरुआत भी कर दी गई है।
अमेरिका ने डॉलर और ग्लोबल पेमेंट सिस्टम हथियार बनाने में की गलती
मिलेनियम वेब एडवाइजर्स के निवेश रणनीतिकार और प्रेसिडेंट जॉन मॉल्डिन ने एक नोट में लिखा- "बाइडेन प्रशासन ने अमेरिकी डॉलर और ग्लोबल पेमेंट सिस्टम को हथियार बनाने में गलती की। इससे गैर-अमेरिकी निवेशक और अन्य देश अमेरिका के पारंपरिक सुरक्षित ठिकाने के बाहर अपनी होल्डिंग में विविधता लाने के लिए मजबूर होंगे।"
अमेरिका और यूरोप की नीतियों के विरोध का तरीका
असल में अमेरिकी नीतियों की वजह से डॉलर का इस्तेमाल कम करने की रणनीति अपनाई जा रही है। अमेरिका ने यूरोप के साथ मिलकर ग्लोबल फाइनेंशियल मैसेजिंग सिस्टम स्विफ्ट से रूस को अलग कर दिया।
कुछ देशों और कॉरपोरेट्स ने इसे ‘वित्तीय परमाणु हथियार’ के तौर पर देखा। विरोध में जितना संभव हो सके डॉलर के विकल्पों का इस्तेमाल करने लगे। वैसे रूस के साथ अचानक व्यापार बंद करना यूरोप के लिए भी व्यवहारिक नहीं है।