नई दिल्ली: बिलकिस बानो गैंगरेप केस में जिन 11 दोषियों को गुजरात सरकार ने रिहा कर दिया था, सोमवार को उनके लिए बुरी खबर आई। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी रिहाई पर बेहद सख्त सिग्नल दिया है। कोर्ट ने कहा कि वह रिहाई के फैसले को तीन कसौटियों पर परखेगा। पहली कसौटी होगी मुंबई के ट्रायल कोर्ट के जज की वह राय, जिसमें उन्होंने छूट का विरोध किया गया था। दूसरी, अपराध की जघन्यता और तीसरी, दोषियों की अप्रत्याशित रिहाई जबकि उम्रकैद की सजा पाए दूसरे दोषी अब भी सालों से सलाखों के पीछे हैं। 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो से सामूहिक बलात्कार हुआ था और उनके घरवालों की हत्या कर दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने इसे भयावह कृत्य कहते हुए गुजरात सरकार से पूछा है कि क्या दोषियों को छोड़ते समय हत्या के दूसरे मामलों में अपनाए जाने वाले मानक अपनाए गए। कोर्ट ने साफ कह दिया है कि वह भावनाओं से प्रभावित हुए बगैर कानून को देखेगा। बिलकिस बानो ने दोषियों को समय से पहले छोड़ने के फैसले को देश की सबसे बड़ी अदालत में चुनौती दी है।
बिलकिस के दोषियों का हो रहा स्वागत
अगस्त 2022 में रिहाई के बाद इन दोषियों को माला पहनाकर सम्मान करने की तस्वीरें सामने आई थीं। गोधरा के एक दफ्तर में इनका भव्य स्वागत किया गया था। ये लोग विश्व हिंदू परिषद के पदाधिकारी बताए गए थे। बिलकिस बानो केस के 11 दोषियों में से एक शैलेश भट्ट ने हाल में 25 मार्च को दाहोद जिले के एक सरकारी समारोह में भाजपा सांसद और विधायक के साथ मंच साझा किया था। दोषी को सांसद जसवंतसिंह भाभोर और विधायक शैलेश भाबोर के साथ देखा गया। इस पर कई विपक्षी नेताओं ने निशाना साधा। अब इन दोषियों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
बिलकिस बानो केस में विशेष आधार क्या है
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इसे थ्री-पॉइंट टेस्ट बताया, जिसके आधार पर वह उम्रकैद की सजा पाए 11 दोषियों को छोड़ने के गुजरात सरकार के फैसले की वैधता को परखेगा। ये लोग गैंगरेप और मर्डर में शामिल थे। जस्टिस केएम जोसेफ ने कहा, ‘उम्रकैद की सजा पाए कई दोषी 20 साल से भी ज्यादा समय से जेलों में बंद हैं। सुप्रीम कोर्ट को संबंधित सरकारों से कहना पड़ा है कि उनकी याचिका पर विचार करे। इस केस में विशेष आधार क्या था?’ गुजरात सरकार ने पिछले साल 10 अगस्त को इन दोषियों को माफी दे दी थी। कोर्ट के आदेश पर इस केस की सुनवाई गुजरात से मुंबई ट्रांसफर की गई थी क्योंकि वे जेल में 15 साल से ज्यादा वक्त काट चुके थे। कथित तौर से जेल में इनका बर्ताव अच्छा था।
जज और सीबीआई भी माफी के खिलाफ
महत्वपूर्ण बात यह है कि मुंबई के ट्रायल कोर्ट के जज और सीबीआई किसी तरह की छूट देने के खिलाफ थे क्योंकि इन लोगों ने जघन्य अपराध किए थे। दोषियों की याचिका को अलग रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बानो की अर्ची को लीड पिटिशन माना है। बेंच ने एक दोषी के वकील ऋषि मल्होत्रा से कहा, ‘क्षेत्राधिकार (गुजरात सरकार का) न होने को लेकर आप क्या कहेंगे? क्या सुप्रीम कोर्ट (अपने 13 मई 2022 के फैसले से) किसी ऐसी बॉडी को निर्देश दे सकता है जिसके पास माफी पर फैसला लेने का अधिकार ही नहीं है?’
मल्होत्रा ने कहा कि बॉम्बे हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी फैसले में कहा था कि छूट देने की दोषियों की अर्जी पर विचार करने के लिए सीआरपीसी की धारा 432 के तहत गुजरात सरकार उपयुक्त है। पिछले साल 13 मई को इसे बरकरार रखा और गुजरात से 1992 की माफी नीति के तहत अर्जियों पर विचार करने को कहा। मल्होत्रा ने आगे कहा कि 13 मई के फैसले पर पुनर्विचार करने की बिलकिस बानो की अर्जी सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी थी। उन्होंने कहा कि बानो के पास रिट पिटिशन नहीं बल्कि क्यूरेटिव पिटिशन का ही विकल्प बचता था।
मैं रिटायर हो रहा हूं…
जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस बीवी नागरत्न की पीठ अब मामले की सुनवाई 18 अप्रैल को करेगी। SC ने कहा कि इसमें कई मुद्दे समाहित हैं और ऐसे में विस्तार से सुनने की आवश्यकता है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, गुजरात सरकार और दोषियों को नोटिस जारी किए हैं। गुजरात सरकार को सजा माफ करने के फैसले से संबंधित दस्तावेज के साथ मौजूद रहने को कहा गया है। जब कुछ दोषियों के वकील ने अलग-अलग याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने के लिए ज्यादा वक्त मांगा तो जस्टिस जोसेफ ने यह कहते हुए कि 18 अप्रैल की तारीख दी कि वह 17 जून को रिटायर हो रहे हैं और गर्मी की छुट्टियां भी होंगी।
वारदात के वक्त बिलकिस बानो 21 साल की थीं। वह 5 महीने की गर्भवती थीं। गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन के एक डिब्बे में आगजनी के बाद दंगे भड़क गए थे। उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था और परिवार के 7 लोगों की हत्या कर दी गई थी। इसमें तीन साल की एक बच्ची भी शामिल थी।