नई दिल्ली : जमानत के बाद भी रिहाई में होने वाली देरी को टालने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने गाइडलाइंस जारी किए हैं। जमानत मिलने के बाद भी कैदियों की रिहाई में कई बार जमानत की शर्त पूरा न होने की स्थिति में रिहाई में वक्त लगता है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गाइडलाइंस जारी किए हैं ताकि देरी को टाला जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर स्थानीय जमानती न हो तो कोर्ट ऐसी शर्त नहीं भी लगा सकता है। साथ ही कहा कि आर्थिक स्थिति का आंकलन कर जमानत की शर्त में छूट पर भी विचार हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने जारी किए गाइडलाइंस
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब कोर्ट आरोपी या दोषी को जमानत देती है तो यह जरूरी होगा कि आदेश की सॉफ्ट कॉपी ईमेल के जरिये जेल सुपरिंटेंडेंट को भेजा जाए और उनके जरिये आरोपी को उसी दिन सॉफ्ट कॉपी मुहैया कराया जाए।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर किसी कारण आरोपी जमानत के आदेश के सात दिनों के भीतर रिहा नहीं किया जा सका हो तो जेल सुपरिंटेंडेंट की ड्यूटी है कि वह डीएलएसए के सेक्रेटरी को इस बारे में सूचित करें। फिर डीएलएसए पैरा वॉलंटियर या जेल विजिटिंग एडवोकेट की नियुक्ति करेगा और वह उक्त आरोपी से मिलेगा और कोशिश करेगा कि उसे जमानत की शर्त पूरा करवाकर रिहा कराया जाए।
- सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि एनआईसी इस बात की कोशिश करे कि वह ई प्रिजन के लिए जरूरी फिल्ड तैयार करे जो सॉफ्टवेयर ऐसा होगा कि जब जमानत दी जाए उसके सात दिनों के भीतर अगर रिहाई न हो पाए तो एक ईमेल डीएलएसए को खुद ब खुद चला जाए। साथ ही जमानत की तारीख और रिहाई की तारीख भी उसमें दिखे।
- शीर्ष अदालत ने यह भी कहा है कि डीएलएसए ऐसे मामले में आरोपी की सामाजिक और आर्थिक स्थिति का आंकलन भी करे और उसके लिए प्रोबेशन अधिकारी की मदद ले या फिर पैरा लीगल वॉलंटियर की मदद ले और कोर्ट के सामने रिपोर्ट पेश करे ताकि जमानत की शर्त में छूट दी जा सके।
- साथ ही शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर अंडर ट्रायल या दोषी यह कहता है कि वह जमानत पर रिहा होने के बाद जमानती बॉन्ड और मुचलका पेश कर देगा तो उसे अस्थायी जमानत देने पर कोर्ट विचार कर सकती है ताकि जमानत पर रिहा होने के बाद आरोपी जमानती और बेल बॉन्ड का इंतजाम कर सके।
- सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि अगर बेल बॉन्ड जमानत देने के एक महीने के भीतर पेश नहीं किया जा सका हो तो संबंधित कोर्ट संज्ञान ले सकता है कि क्या जमानत के कंडिशन को आसान किया जा सकता है। सु
- सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि कई बार आरोपी और दोषी की जमानत पर रिहाई में स्थानीय स्योरिटी (स्थानीय जमानती) पेश न होने के कारण देरी होती है ऐसी स्थिति में कोर्ट इस कंडिशन को हटा भी सकती है।
- इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एसके कौल की अगुवाई वाली बेंच के सामने कोर्ट सलाहकार गौरव अग्रवाल, एल. मैथ्यू और देवंश ए मोहता की ओर से सुझाव व रिपोर्ट पेश की गई। इससे पहले कोर्ट सलाहकार ने अडिशनल सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज से विमर्श किया था।
- सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि केंद्र सरकार नालसा (नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी) से बातचीत करे और यह देखे कि क्या ई प्रिजन पोर्टल पर स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी और जिला लीगल सर्विस अथॉरिटी को पहुंच (एक्सेस) दी जा सकती है ताकि बेहतर तालमेल से काम हो। केंद्र सरकार के अडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने कोर्ट से कहा है कि वह अगली सुनवाई में निर्देश लेकर कोर्ट को अगवत कराएंगे। 31 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस एनवी रमना ने उच्च ज्यूडिशियरी से पारित आदेशों को सुरक्षित तौर पर प्रसारित करने के मद्देनजर एक फास्टर सॉफ्टवेयर लांच किया था। इस सॉफ्टवेयर के जरिये बिना किसी तीसरे पक्ष के छेड़छाड़ के फॉस्टर प्रणाली से गणतव्य तक ऑर्डर पहुंचेगा और िससे जमानत मिलने पर कैदियों की रिहाई के लिए आदेश समय पर पहुंच पाएगा और समय पर उसकी रिहाई हो पाएगी।