नई दिल्ली: 1950 में आज ही का दिन था। डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी (Syama Prasad Mukherjee) ने पंडित नेहरू के मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था। वह ऐसा करने वाले पहले मंत्री थे। श्यामा प्रसाद को देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू कभी भी मंत्रिमंडल में शामिल नहीं करना चाहते थे। लेकिन, मजबूरन उन्हें ऐसा करना पड़ा था। इसकी सबसे बड़ी वजह थे महात्मा गांधी और सरदार वल्लभभाई पटेल। इन दोनों ने डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी को आजादी के बाद बने पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल में रखने की पैरवी की थी। वह देश के पहले उद्योग और आपूर्ति मंत्री बने थे। लियाकत-नेहरू पैक्ट से नाराजगी श्यामा प्रसाद के इस्तीफा (Syama Prasad Mukherjee Resignation) देने का कारण बनी थी। उन्हें लगता था कि नेहरू सरकार ने पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में हिंदुओं के अधिकारों को नजरअंदाज किया था। इसके बाद ही उन्होंने भारतीय जनसंघ की नींव रखी थी। यह वही थी जिसके बारे में नेहरू ने एक बार सदन में बहस के दौरान बोला था- ‘आई विल क्रश जनसंघ’। इसके जवाब में मुखर्जी बोले थे – ‘आई विल क्रश दिस क्रशिंग मेंटालिटी’।
आजादी के बाद गांधी जी और पटेल के कहने पर स्वतंत्र भारत के पहले मंत्रिमंडल में पंडित नेहरू ने उन्हें उद्योग मंत्री के तौर पर जगह दी। लेकिन, तत्कालीन स्थितियों को देखकर वह रह नहीं पाए। उन्होंने कुछ साल में ही इस्तीफा दे दिया। नेहरू-लियाकत पैक्ट को मुखर्जी हिंदुओं के साथ धोखा मानते थे। इसी चीज से नाराज होकर आज ही के दिन 1950 में उन्होंने नेहरू के मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया था।
दरअसल, भारत को आजादी की बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी। अंग्रेजों ने इसे दो हिस्सों में बांटा था। भारत और पाकिस्तान। बंटवारे के बाद लाखों लोग बेघर हुए थे। इनका पलायन हुआ था। इस दौरान न जाने कितने लोग हिंदुस्तान से पाकिस्तान और पाकिस्तान से हिंदुस्तान आए। बंटवारे के दर्द ने आजादी की खुशी खत्म कर दी थी। देशभर में इस दौरान दंगे हुए। 1949 में नौबत यह आ गई कि भारत-पाकिस्तान के बीच व्यापारिक संबंध खत्म हो गए। पूर्वी पाकिस्तान (आज बांग्लादेश) से 1950 तक करीब 10 लाख हिंदू सीमा पार करके हिंदुस्तान आ गए थे। ऐसे ही पश्चिम बंगाल से लाखों मुसलमान सीमा पार करके पाकिस्तान चले गए थे।
दोनों देशों में इस दौरान अल्पसंख्यकों के साथ अत्याचार हुए। समस्या का समाधान करने के लिए पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली खान के साथ भारत के पहले पीएम पंडित नेहरू मेज पर बैठे। एक पैक्ट पर हस्ताक्षर हुए। इस पैक्ट को ही नेहरू-लियाकत पैक्ट के नाम से जानते हैं। इस पैक्ट में अल्पसंख्यकों को सुरक्षा देने की बात कही गई थी। वादा किया गया था कि उन्हें बाकी नागरिकों जैसे अधिकार दिए जाएंगे। मुखर्जी को इस बात का एहसास था कि भारत में बेशक इसका पालन होगा। लेकिन, पाकिस्तान इस पर कतई अमल नहीं करेगा।