अफगानिस्तान की तालिबान सरकार द्वारा महिलाओं पर लगाए जा रहे प्रतिबंधों से लोगों की मुश्किल और ज्यादा बढ़ेगी। स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय सहायता संगठनों में महिलाओं के काम करने पर रोक के नए फैसले से अरबों रुपए की मदद खतरे में पड़ सकती है। इस मदद के कारण ही अफगानिस्तान भुखमरी से बचा हुआ है।
सरकार ने चेतावनी दी है कि फैसले का पालन न करने वाले संगठनों के लाइसेंस रद्द कर दिए जाएंगे। हालांकि, स्पष्ट नहीं है कि पाबंदी संयुक्त राष्ट्र की सहायता एजेंसियों और सभी महिलाओं या केवल अफगान महिलाओं पर लागू होगी।
अफगानिस्तान में 2 करोड़ लोगों के पास खाने की कमी
पिछले साल अमेरिका समर्थित सरकार का पतन होने के बाद अफगान अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है। लाखों लोगों की नौकरी चली गई है। खाने की चीजों के दाम आसमान पर हैं। संयुक्त राष्ट्र के एक विश्लेषण के अनुसार लगभग दो करोड़ व्यक्तियों के पास खाने की कमी है। 60 लाख अन्य व्यक्ति भुखमरी का सामना कर रहे हैं। लाखों बच्चे कुपोषण से प्रभावित हैं। पिछले एक साल से मानवीय सहायता संगठनों की अरबों रुपए की मदद के बूते लाखों परिवारों को मुफ्त भोजन और दवाइयां दी जा रही हैं।
कई संगठन और एनजीओ मानते हैं कि महिला स्टाफ पर तालिबान की बंदिश से देश में उनका काम रुक सकता है। कुछ दानदाता महिलाओं से खुले भेदभाव पर जरूर ध्यान देंगे। संगठनों का काम बंद होने से अफगानिस्तान में सहायता अभियान बुरी तरह प्रभावित होगा।
महिलाओं की गैरमौजूदगी से लोगों की मदद कम होगी
अगले वर्ष तक दो करोड़ 83 लोगों को किसी तरह की मदद की जरूरत पड़ेगी। अफगानिस्तान में जो संगठन बच जाएंगे उन्हें भी महिलाओं की गैरमौजूदगी से काम करने में मुश्किल होगी। देश के कई भागों में महिलाएं केवल अपने परिवार के पुरुषों से ही संपर्क रखती हैं।
महिलाओं पर रोक का फैसला आने के बाद कुछ अंतरराष्ट्रीय सहायता संगठनों ने फौरन अपना काम स्थगित करने पर विचार शुरू कर दिया है। डेनमार्क के एक एनजीओ डीएसीएएआर के डायरेक्टर जॉन मोर्स ने कहा, वे अपने सीनियर साथियों से पाबंदी के नतीजों पर चर्चा करेंगे।
तालिबान ने लड़कियों की यूनिवर्सिटी की पढ़ाई पर बैन लगाया
एनजीओ में महिलाओं के काम पर प्रतिबंध से कुछ दिन पहले अफगान सरकार ने महिलाओं की निजी और सरकारी यूनिवर्सिटीज मेंं पढ़ने पर रोक लगाई थी। मार्च में नई सरकार लड़कियों को सरकारी हाई स्कूलों में जाने की इजाजत देने के वादे से पीछे हट गई थी।
एनजीओ में काम करने वाली अफगान महिलाएं देश में 20 साल से महिला अधिकारों के लिए चल रहे संघर्ष का प्रतीक भी हैं। इसके अलावा आर्थिक संकट के बीच उनकी आय उनके परिवारों के लिए सहारा है। उत्तर अफगानिस्तान के कारोबारी केंद्र कुंदुज में डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स में काम करने वाली मगफिर अहमदी कहती हैं, मैं स्तब्ध हूं। पिछले साल तालिबान के सत्तारूढ़ होने के बाद अहमदी अपने परिवार में पैसा कमाने वाली अकेली सदस्य हैं।
महिलाओं की शिक्षा पर पूरी रोक लगाने की तैयारी
महिलाओं में भय पैदा करने के लिए राजधानी काबुल में इस हफ्ते सुरक्षा बलों ने स्कूलों के प्रिंसिपल, शिक्षकों और प्राइवेट स्कूलों के प्रबंधकों के साथ बैठकें की। उन्हें निर्देश दिए कि प्रायमरी स्कूलों सहित सभी लड़कियों के लिए सर्दियों के कोर्स बंद कर दिए जाएं। महिला शिक्षकों को उनके घर भेज दिया जाए।
इस समय स्कूलों में ठंड की छुट्टी चल रही है, लेकिन कई छात्र प्राइवेट स्कूलों और सेंटर्स में अतिरिक्त कोर्स की पढ़ाई करते हैं। वैसे सरकारी प्रवक्ता ने प्रायमरी स्कूलों में लड़कियों पर पाबंदी की खबरों से इनकार किया है। फिर भी, बैठकों से इन आशंकाओं को बल मिला है कि अफगान सरकार अगले साल लड़कियों की शिक्षा रोकने की तैयारी कर रही है।