देश में गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के साथ ही दिल्ली नगर निगम (MCD) चुनाव खूब चर्चा में हैं। इन चुनावों के दौरान कच्चे तेल की कीमतों में बड़ी गिरावट देखने को मिली। ऐसे में आम आदमी को पेट्रोल-डीजल के दाम कम होने की उम्मीद थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। गुजरात, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली में पेट्रोल-डीजल के दामों की बात करें तो ये गुजरात में इनके दाम सबसे कम हैं।
टैक्स के बाद दोगुने हो जाते हैं पेट्रोल-डीजल के दाम
पेट्रोल-डीजल
का बेस प्राइज पर जो अभी 57.16 रुपए है, इस पर केंद्र सरकार 19.90 रुपए
एक्साइज ड्यूटी वसूल रही है। इसके बाद राज्य सरकारें इस पर अपने हिसाब से
वैट और सेस वसूलती हैं, जिसके बाद इनका दाम बेस प्राइज से 2 गुना तक बढ़
जाते हैं। गुजरात, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली में पेट्रोल-डीजल से वैट और सेस
वसूलने में दिल्ली सबसे आगे है। यहां पेट्रोल पर 19.40% और डीजल पर 16.75%
वैट वसूला जाता है।
देश में सबसे सस्ते पेट्रोल-डीजल अंडमान-निकोबार में
देश
में सबसे सस्ते पेट्रोल-डीजल अंडमान और निकोबार के पोर्ट ब्लेयर में बिक
रहे हैं। यहां पेट्रोल 84.10 रुपए प्रति लीटर और डीजल 79.74 रुपए मिल रहा
है। वहीं राजस्थान के श्रीगंगानगर में ये सबसे महंगे हैं। यहां पेट्रोल
113.48 और डीजल 98.24 रुपए लीटर बिक रहा है।
राज्य के अलग-अलग शहरों में कीमत में अंतर क्यों?
जब
पेट्रोल-डीजल किसी पेट्रोल पंप पर पहुंचता है तो वो पेट्रोल पंप किसी ऑयल
डिपो से कितना दूर है, उसके हिसाब से उस पर किराया लगता है। इसके कारण शहर
बदलने के साथ-साथ किराया बढ़ता-घटता है। जिससे अलग-अलग शहरों में भी कीमत
में अंतर आ जाता है।
भारत में कैसे तय होती हैं पेट्रोल-डीजल की कीमतें?
जून
2010 तक सरकार पेट्रोल की कीमत निर्धारित करती थी और हर 15 दिन में इसे
बदला जाता था। 26 जून 2010 के बाद सरकार ने पेट्रोल की कीमतों का निर्धारण
ऑयल कंपनियों के ऊपर छोड़ दिया। इसी तरह अक्टूबर 2014 तक डीजल की कीमत भी
सरकार निर्धारित करती थी।
19 अक्टूबर 2014 से सरकार ने ये काम भी ऑयल कंपनियों को सौंप दिया। अभी ऑयल कंपनियां अंतरराष्ट्रीय मार्केट में कच्चे तेल की कीमत, एक्सचेंज रेट, टैक्स, पेट्रोल-डीजल के ट्रांसपोर्टेशन का खर्च और बाकी कई चीजों को ध्यान में रखते हुए रोजाना पेट्रोल-डीजल की कीमत निर्धारित करती हैं।
चुनाव में लग जाता है पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर ब्रेक
एक्सपर्ट्स
के अनुसार सरकार भले ही पेट्रोल-डीजल की कीमत निर्धारित करने में अपनी
भूमिका से इनकार करती हो, लेकिन बीते सालों में ऐसा देखा गया है कि चुनाव
के दौरान सरकार जनता को खुश करने के लिए पेट्रोल-डीजल के दाम नहीं बढ़ाती
है। पिछले सालों का ट्रेंड बता रहा है कि चुनावी मौसम में जनता को
पेट्रोल-डीजल की बढ़ी कीमतों से राहत मिली है।