नई दिल्ली: इस साल मॉनसून में काफी कम बारिश और भीषण गर्मी की आशंका जाहिर की जा रही है। जलवायु परिवर्तन की वजह से भारत के कई देशों में गर्मी प्रचंड रूप ले रही है। इस बीच सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (सीपीआर) की नई रिपोर्ट में दावा किया गया है कि देश गर्मी का सामना करने के लिए तैयार नहीं है। हाउ इज इंडिया अडॉप्टिंग टु हीटवेव्स रिपोर्ट में बताया गया है कि देश के 18 राज्यों के 37 हीट ऐक्शन प्लान ठीक नहीं हैं।
हीट ऐक्शन प्लान क्या है?
हीट ऐक्शन प्लान लू और इसके कारण होने वाले आर्थिक नुकसान से निपटने के लिए शुरुआती नीति प्रतिक्रिया है। इसके अंतर्गत लू के प्रभाव को कम करने के लिए राज्य, जिला और शहर के सरकारी विभागों में विभिन्न प्रकार की शुरुआती गतिविधियों, आपदा प्रतिक्रियाओं और लू के बाद उपाय किए जाते हैं। रिपोर्ट में 18 राज्यों के सभी 37 गर्मी से निपटने के हीट ऐक्शन प्लान का विश्लेषण किया गया।
पता चला कि गर्मी से निपटने के लिए बनी अधिकांश योजनाएं स्थानीय आधार पर नहीं बनाई गई हैं। हीट ऐक्शन प्लान (एचएपी) सबसे अधिक प्रभावित होने वाले लोगों की पहचान करने में विफल है। रिपोर्ट में जिन एचएपी का विश्लेषण किया गया, उनमें यह स्पष्ट नहीं था कि कार्रवाई किस हद तक एचएपी में निर्धारित की जा रही थी।
क्या पड़ता है असर?
लू ने 1998, 2002, 2010, 2015 और 2022 में श्रमिकों की काम करने की क्षमता, उत्पादकता को कम किया। साथ ही इसने पानी की उपलब्धता, कृषि और ऊर्जा प्रणालियों को प्रभावित करके बड़े पैमाने पर मृत्यु दर और भारी मात्रा में आर्थिक नुकसान पहुंचाया। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का अनुमान है कि गर्मी के तनाव के कारण 2030 तक काम के घंटों में 5.8 प्रतिशत का नुकसान होगा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि एचएपी में इस बात का पता लगाना बहुत जरूरी है कि गर्मी से किसी शहर, जिले या राज्य में सबसे अधिक प्रभावित होने वाले लोग कहां-कहां हैं। 37 एचएपी में से केवल तीन के लिए धन राशि के स्रोतों की पहचान की गई है और आठ एचएपी कार्यान्वयन विभागों को संसाधनों का स्व-आवंटन करने के लिए कहा गया है। एचएपी के लिए कोई राष्ट्रीय कोष नहीं है। यह भी स्पष्ट नहीं है कि इन एचएपी को समय-समय पर अपडेट किया जा रहा है या नहीं।