बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, होली का त्योहार। कहा जाता है कि, होली की आग में असुर तत्वों का विनाश होता है। ऐसी ही कहानी है, मुस्लिम धार्मिक स्थल सैलानी दरगाह की, जो कि मध्यप्रदेश के खंडवा में है। यहां भूत-प्रेत और जादू-टाेने से पीड़ित लोगों का होली के दिन मेला लगता है। लाखों की संख्या में लोग आते है। पहले तो बाबा की दरगाह पर भूतों की पेशी होती है, फिर होली की आग में बतौर सजा-ए-मौत होती है। हम अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देते, लेकिन दैनिक भास्कर से बातचीत में पीड़ितों ने ऐसा दावा किया है।
खंडवा के सैलानी सरकार, जिनकी दरगाह पर भूत-प्रेत, जादू-टोना के साये में जकड़ चुके हजारों लोग अर्जियां लगाते है। समाधि पर परकोटे की जाली को पकड़ते ही बाबा के दरबार में हाजिरी लगती है। इस समय भूत-प्रेत आत्माएं फड़फड़ाने लगती है। शरीर से रूह कंपा देने वाली आवाज का शोर गूंजता है। यही शैतानी ताकतों की सजा होती है। प्रेत आत्मा का जिन्न होली की आग में निकलता है। होली से रंगपंचमी तक यहां मेला लगता है। बाबा के मुरीद मत्था टेकते, चादर पेश करते तो मन्नत में बकरे, मुर्गे की कुर्बानी देते है।
जल्लाद बाबा की दरगाह पर होता होलिका दहन सैलानी दरगाह के पास स्थित जामली सैय्यद गांव में एक ओर दरगाह है, बाबा जल्लाद की। जल्लाद बाबा दरगाह की देखरेख सैलानी दरगाह कमेटी ही करती है। यहां छोटा सा मजारनुमा छोटा सा मकबरा है। इसी दरगाह के पास सालों से होलिका दहन होता है। जिसकी आग में प्रेत-आत्माओं का विनाश होता है। सरपंच प्रतिनिधि विक्रम चौहान बताते है कि, 100 साल से ज्यादा हो गए है, भूत-प्रेत से पीड़ित लोग आते है। होली से रंगपंचमी तक लाखों की संख्या में भीड़ जुटती है। इस दरगाह पर साल में सिर्फ होली पर्व पर ही भीड़ लगती है। बाकी, सैलानी दरगाह पर प्रत्येक गुरूवार हजारों लोग आते है।
मुजावर बताते हैं इस दरगाह को सैलानी सरकार का दर्जा
दैनिक भास्कर से बातचीत में मुजावर ईस्माइल खान बताते है कि, करीब 80 साल पुरानी इस दरगाह की पहचान बाबा सैलानी के नाम से है। यहां सिर्फ प्रेत-आत्माओं का इलाज है। यह दरगाह उनके पूर्वज रहे अब्दुल रहमान की है। इस दरगाह को महाराष्ट्र के बुलढ़ाणा जिले में स्थित चिकली की सैलानी दरगाह का दर्जा है। चिकली में फकीर मकदूम शाह की मूल समाधि है। मान्यता है कि, जिन पर भूत-प्रेत का साया होता है, वे लोग साल में हजारों की संख्या में दरगाह पर आते है।
अंधविश्वास के सवाल पर मुजावर कहते है कि, यहां किसी प्रकार की तांत्रिक क्रियाएं नहीं होती है। ना ही दरगाह पर कोई झाड़-फूंक करके प्रेत आत्मा को भगाने का काम करता है। किसी तरह कोई पाखंड नही है, जो कुछ करते है, मालिक स्वयं करते है। हम लोग तो सिर्फ बाबा की खिदमत करते है। दरगाह पर केवल बाबा की समाधि है, पीड़ित व्यक्ति समाधि पर मत्था टेकता और दुआ लगाकर चले जाता है। ज्यादा ग्रसित लोग जाली पकड़कर महीनों, सालों तक हाजिरी भी लगाते है। बाकी तो सामान्य व्यक्ति नौकरी, शादी और संतान सुख जैसी मन्नते लेकर भी आते है। स्वयं की इच्छा से बाबा की समाधि पर इत्र, लोभान के साथ चादर चढ़ाते है।
हाजिरी से पेशी होती, नींबू, पानी और लोभान से भी फायदा
इस दरगाह पर कोई जीवित व्यक्ति नही बल्कि समाधि ले चुके अब्दुल रहमान यानी बाबा सैलानी स्वयं ही भूत-प्रेत को सजा देते है। खासकर, होली से रंगपंचमी तक भूतों की पेशी होती है। इसलिए अधिकांश मरीज यहां सालभर हाजिरी लगाते है। बताते है कि होली की आग में भूत-पिशाच जैसी शैतानी ताकतों को भस्म कर दिया जाता है।
अधिकांश मरीजों की बाहर बाधा तो पानी, नींबू और धूनी से दूर हो जाती है। लोग घर से या फिर कुएं, नल का पानी बर्तन या बोतल में भरकर लाते है। बाबा की समाधि से टच करके उसे पी जाते है, इससे भी शरीर के भीतर मौजूद शैतानी ताकत भस्म हो जाती है। इसी तरह नींबू को काटकर टच कर दो और उसे चूस लो। यहां लोभान की धूनी जलती है, धूनी लेने से भी बीमारी खत्म हो जाती है।
सालों से रूके है लोग, झोपड्डी में निवास, मजदूरी कर गुजारा
भूत-प्रेत के साये में जकड़ चुके कई परिवार झोपडियां बनाकर निवासरत है। एक-दो नही, ऐसे सैकड़ों संपन्न परिवार के लोग है। जो दरगाह के आसपास सरकारी जमीन पर झोपड़ी बना लेते है। गोबर, मिट्टी से आंगन को लेपकर उस झोपड़ी को आशियाना बना लेते है। ठीक होने पर वो घर जाते है तो फिर से शैतानी ताकते उन्हें घेर लेती है। इसलिए बाबा की शरण में रहकर आसपास खेतों में मजदूरी करते है।
चादर और पूजा सामग्री से करोड़ों का टर्नओवर
सैलानी दरगाह के लिए खंडवा-मूंदी रोड से 18 किलाेमीटर दूर तलवड़िया गांव जाना होता है। तलवड़िया से 4 किलोमीटर दूर बाबा सैलानी की दरगाह है। दरगाह का इतिहास सालों पुराना है लेकिन अर्थशास्त्र की बात करें तो चादर और पूजा सामग्री की 25 से ज्यादा दुकानें है। इन दुकानों का व्यापार-व्यवसाय सामान्य दिनों में तो मंदा रहता है। खासकर, प्रति गुरूवार और होली के मेले में खूब ग्राहकी होती है। इन दुकानों का सालभर में एक करोड़ रूपए से ज्यादा का टर्नओवर है।
लोग बोले- हम जादू-टोना हुआ, डॉक्टरी इलाज से फायदा नहीं
1.खरगोन के लिए पिपलिया बुजुर्ग निवासी सुनिल नाथ का कहना है कि, उनकी पत्नी को समस्या है। वो हमेशा बीमार सी रहती है, काफी समय तक डाॅक्टरी इलाज कराया लेकिन कहीं कोई फायदा नहीं हुआ। पता चला कि, उसे बाहर बाधा है। सैलानी दरगाह के मालूम हुआ कि, यहां होली के दिन बाहर बाधाएं दूर हो जाती है। इसीलिए पिछले पांच साल से यहां आ रहा हूं।
2. बुरहानपुर के डोईफोडिया की जशोदा बताती है कि, वो 18 साल की थी, तब से उस पर जादू-टोना करके भूत-प्रेत का साया डाल दिया गया। उसके मामा भी इस परेशानी से जूझ रहे थे, उनकी तकलीफ बाबा सैलानी ने दूर की। इसलिए वह भी पांच साल पहले बुरहानपुर से सैलानी आ गई। घर जाती है तो वापस दिक्कत होती है।
3. इंदौर की सुमनबाई अपने पति व बेटे राजेश के साथ रहते है। होली के तीन महीने पहले से यहां है। पति और बेटा यहीं पर मजदूरी करने लग गए। इनके अलावा होशंगाबाद जिले के सिवनी-मालवा निवासी राजेश मोरे है, वे कहते है, बेटे पर किसी ने जादू टोना कर दिया। 4 महीने से यहां रूके है, अब रंगपंचमी के बाद ही जाएंगे।
4. हरदा जिले के टिमरनी (पोखरनी) से एक बुजुर्ग दंपत्ति तो सालों से यहां आ रहे है। 60 वर्षीय जेबुनबी बताती है कि, उनके पति अहमद नूर को सालों पुरानी समस्या है, वे यहां 40 साल से आ रही है। परहेज के रूप में गमी की रोटी बंद है। मेरे पति ने गमी की रोटी खाली। इसलिए भूत-प्रेत वापस पीछे पड़ गए।