घटते जंगल, बढ़ते बाघ और गर्मी में वन्य प्राणियों की प्यास को लेकर मध्यप्रदेश का वन विभाग चिंतित है। दरअसल, टाइगर स्टेट एमपी में बाघों के आपसी वर्चस्व की लड़ाई में मौतों का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। गर्मी से हलाकान बाघ भी प्यास बुझाने कई किलोमीटर का सफर तय करते हैं। लिहाजा बाघों के आपसी संघर्ष की संभावना भी बढ़ जाती है। इससे सतर्क वन विभाग एपमी के जंगलों में 847 नए सोसर (पानी पीने के लिए तालाब नुमा कृत्रिम स्थान) का निर्माण कार्य शुरू कर दिया है।
वन विभाग के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2015 से अब तक 189 बाघों की मौत आपसी संघर्ष से हुई। यदि बाघों के तमाम मौतों के आंकड़ों की बात अन्य राज्यों से यह आंकड़ा 46 प्रतिशत अधिक है। साल 2018 में हुई बाघों की गणना के मुताबिक एमपी में 526 बाघ हैं। वन विभाग के अधिकारियों का अनुमान है कि एमपी में तेजी से बाघों की संख्या में इजाफा हुआ है। इस बार हुई बाघों की गणना की रिपोर्ट भी सामने नहीं आई है। ऐसे में प्यासे बाघ का दूसरे बाघ के वर्चस्व क्षेत्र में जाने से रोकने के लिए नए सोसर के निर्माण की रूपरेखा तैयार की गई।
हर साल से इस बार की अलग तैयारी
वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि हर साल गर्मी के मौसम को देखते हुए वन्य प्राणियों के लिए व्यवस्था की जाती है। पुराने सोसर की सफाई तो नए का निर्माण किया जाता है। भोपाल वन मंडल समेत अन्य वन मंडलों में यह काम शुरू हो गया है। अच्छी बारिश के कारण जंगलों में नेचुरल वाटर बॉडी की स्थिति ठीक बताई जा रही है। लेकिन इस बार उन स्थानों को चिन्हित किया गया है कि जहां बाघों की संख्या अधिक है। यह जानकर भी आपको हैरानी होगी कि मध्यप्रदेश में अमूमन सभी टाइगर रिजर्व, अभ्यारण्य और नेशनल पार्क में क्षमता से अधिक बाघ मौजूद हैं।
यह है बाघों को लेकर एमपी के जंगलों की स्थिति
वन विभाग के आंकड़े बताते हैं कि बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में 124 बाघ की मौजूदगी है। जबकि क्षमता 75 बाघों की है। ऐसा ही हाल देश के जाने-माने कान्हा टाइगर रिजर्व की है। यहां 108 बाघ पनाहगार हैं और क्षमता 70 बाघों की है। पेंच टाइगर रिजर्व में 50 बाघों के मुकाबले 82 बाघ मौजूद हैं। ऐसी ही स्थिति अन्य अभयारण्य समेत संरक्षित जंगलों की है। रही बात भोपाल के अर्बन एरिया कि तो यहां 18 बाघों का मूमेंट दर्ज किया गया। लेकिन बीते एक साल में संख्या 23 तक पहुंची।
बाघों को चाहिए 60 वर्ग किलोमीटर का दायरा
नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) के मुताबिक एक बाघ का वर्चस्व क्षेत्र 40 से 60 वर्ग किलोमीटर के आसपास होता है। अध्ययन में यह भी पाया कि बाघ अपने वर्चस्व क्षेत्र में ही ज्यादा शिकार करना पसंद करते हैं। लेकिन बात जब भूख-प्यास के साथ मेटिंग की हो तो बाघ कई किलोमीटर लंबा सफर तय करने में नहीं हिचकते। यदि बाघ किसी अन्य बाघ के वर्चस्व क्षेत्र में पहुंचे तो आपसी लड़ाई की संभावना भी कई गुना बढ़ जाती हैं। इन्ही कारणों से एमपी में आपसी लड़ाई के चलते मौत के मामले अधिक हैं। अध्ययन में यह भी पाया गया है कि वर्चस्व क्षेत्रों में बाघों की संख्या अत्याधिक हो जाए तो इनके व्यवहार पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है।