ओमप्रकाश अश्क, नई दिल्ली: अब के राजनेताओं की ईमानदारी को लेकर सवाल भले खड़े हो रहे हों, लेकिन पहले के लोगों के साथ ऐसी बात नहीं थी। MLA-MP से लेकर पंचायतों के प्रधान तक कई ऐसे मिल जाएंगे, जिनकी संपत्ति साल दर साल राकेट की गति से आसमान छूती दिखेगी। उनकी पहले और उसके बाद की घोषित आय में आसमानी इजाफा भी किसी से नहीं छिपा है पर देश ने राजनीति का एक दौर ऐसा भी देखा है कि कई लोग पीएम-सीएम रहे, लेकिन अपने लिए एक अदद घर नहीं बनवा सके। परिवार के किसी व्यक्ति को अपने रसूख का लाभ नहीं लेने दिया। परिजनों के लिए राजनीति में ऊपर उठने की सीढ़ी नहीं बने। इनमें ज्यादातर तो अब इस दुनिया में नहीं रहे, लेकिन कुछ अब भी जीवित हैं। आइए, जानते हैं राजनीति के इन रत्नों में से एक गुलजारीलाल नंदा के जीवन के बारे में, जो दो बार देश के कार्यवाहक प्रधानमंत्री रहे। केंद्र में मंत्री रहे। लेखक और शिक्षण से आजीवन जुड़े रहे, लेकिन उनका आखिरी वक्त अभाव में बीता। राजनीति में अब गुलजारीलाल नंदा जैसे लोगों की कमी खलती है।
देश में राजनीति और राजनीतिज्ञों की चर्चा जब भी कहीं चलती है तो आम आदमी उनके प्रति घृणा के भाव से सोचता है। लोगों की नजरों में राजनीति अब कमाई का जरिया बन कर रह गयी है। सेवा, समर्पण, त्याग और ईमानदारी के जो गुण पहले के राजनीतिज्ञों में होते थे, वे अब सिरे से नदारद हैं। आजादी के पूर्व और उसके बाद कई ऐसे नेता भारत में हुए, जो आज के राजनीतिज्ञों के आईकान बन सकते हैं, पर ऐसा नहीं हो रहा। लोकतांत्रिक व्यवस्था में जन प्रतिनिधियों को मिलने वाली सुविधाएं-सहूलियतें लोगों को आकर्षित करती हैं, पर चुनाव जीत पाना आम आदमी के बूते की बात नहीं। विधायकी, सांसदी, एमएलसी या स्थानीय निकायों के चुनाव जीतने के लिए भारी भरकम रकम चाहिए। यह रकम उन्हीं के पास होगी, जिनके पास इसके जायज-नाजायज सोर्स होंगे। चुनाव में टिकटों के बिकने की बात हम सुनते आये हैं। जन प्रतिनिधि बनने से पहले और उसके बाद की घोषित आय में आसमानी इजाफा भी किसी से नहीं छिपा है।