राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु का कहना है कि समाज में महिलाओं को अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए और इसके लिए पुरुषों को भी अपना दायित्व निभाना चाहिए। राष्ट्रपति ने यह बात Times Of India के समीर जैन से एक मुलाकात में कही। बातचीत के क्रम में, महिलाओं की भूमिका, ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना तथा अन्य कई महत्वपूर्ण विषयों पर विचार-विमर्श हुआ।
सामान्यतः राष्ट्रपति से शिष्टाचार भेंट की बातचीत को सार्वजनिक नहीं किया जाता है। लेकिन यह आलेख एक अपवाद है। इसकी वजह है, भेंट के दौरान व्यक्त किए गए राष्ट्रपति के सार-गर्भित विचार तथा देश और समाज के लिए उनका गहन चिंतन।
राष्ट्रपति मुर्मु की राय है कि हमें 50-50 का सिद्धांत समझना चाहिए। दो अर्धाकार मिलते हैं तो पूर्ण आकार बनता है। उन्होंने स्त्री और पुरुष के सम्बन्धों की तुलना मानव शरीर से करते हुए यह प्रश्न उठाया कि यदि शरीर का एक हिस्सा निष्क्रिय या निष्प्राण हो जाए तो क्या पूरा शरीर कोई कार्य कर सकेगा? चाहे आर्थिक प्रगति का लक्ष्य हो, सामाजिक कल्याण का उद्देश्य हो, या Climate Change जैसा मुद्दा हो- हर क्षेत्र में प्रभावी कदम उठाने के लिए, स्त्री और पुरुष, दोनों को कदम मिलाकर चलना होगा, कंधे से कंधा मिलाकर लड़ना होगा।
इस सुझाव का राष्ट्रपति मुर्मु ने स्वागत किया और इसका अनुमोदन करते हुए कहा कि महिलाएं आज सीमा पर देश की सुरक्षा के लिए तैनात हैं। वे अपनी बहादुरी और प्रतिभा के बल पर सेना में प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त कर रही हैं। किसी भी क्षेत्र में हमारे देश की महिलाओं की सामर्थ्य तनिक भी कम नहीं है। ऐसे संदर्भ में राष्ट्रपति के अंगरक्षक दल में महिलाओं को शामिल करने का सुझाव बहुत अच्छा है। इस सुझाव पर आगे विचार और कार्य किया जाएगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि मैं आज राष्ट्रपति हूं तो यहां राष्ट्रपति भवन में हूं। लेकिन यह मेरा नहीं है। यहां से तो कुछ समय बाद जाना ही है, लेकिन यह देश तो मेरा ही है। जब तक मैं हूं, तब तक मेरा रहेगा। हमेशा रहेगा। इसलिए पहले देश-प्रेम का भाव होना चाहिए। अपने और परिवार के हित की एक सीमा हो सकती है। उसके आगे ‘कुछ मेरा नहीं, सब तेरा है’ का भाव होना चाहिए। जिस दिन हम स्वार्थ को त्याग देंगे, उस दिन हम आगे बढ़ जाएंगे।
उन्होंने कहा कि देश की रक्षा करना हमारा कर्त्तव्य है। सभी देश अपने-अपने दायरे में रहेंगे तो सामंजस्य बना रहेगा। लेकिन अगर कोई दुश्मनी करता है, आक्रमण करता है तो हमें उसका सामना करना पड़ेगा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग भी महत्वपूर्ण है और भारत इसमें अग्रणी भूमिका निभा रहा है। जब कोई देश किसी परेशानी में पड़े हैं, हम उनकी मदद करते रहे हैं। ऐसे में, भारत सरकार हमेशा आगे आई है और उन देशों के साथ सहयोग किया है।
कई चीजें एक देश में उपलब्ध होती हैं लेकिन दूसरे देशों में नहीं, इसलिए सभी देशों के बीच ‘सहयोग के धर्म’ और ‘संपर्क की भावना’ को मजबूत बनाना महत्वपूर्ण है।
महिलाओं की भूमिका और ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ जैसे विषयों से होते हुए यह बातचीत अध्यात्म की दिशा में मुड़ी। समीर जैन ने याद दिलाया कि राष्ट्रपति ने शिव और शक्ति का बहुत अच्छा उदाहरण देकर महिलाओं और पुरुषों के सामंजस्य को समझाया। राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि जिस तरह एक विषय अलग-अलग लोगों को दिया जाए तो वे उसे अलग-अलग तरह से समझेंगे, लेकिन सभी का लक्ष्य एक ही होगा, इसी तरह धर्म और अध्यात्म में शैलियां भिन्न-भिन्न होती हैं, लेकिन लक्ष्य एक ही होता है।
राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि कुछ ज्वलंत मुद्दों पर समाज में चर्चा की जरूरत है ताकि बदलाव आए। इनमें सबसे बड़ा विषय दहेज की कुप्रथा है, जो एक विकराल रूप ले चुकी है। इसके कारण, अनेक परिवार बर्बाद हो जाते हैं। अच्छा भला कमाने वाले भी दहेज देने के लिए मजबूर करते हैं। पढ़े-लिखे परिवारों में भी यह सब चल रहा है। इसका एक नतीजा, बाल विवाह के रूप में सामने आता है क्योंकि लोगों को लगता है कि बेटी पढ़-लिख जाएगी तो बाद में ज्यादा दहेज की मांग होने लगेगी। दहेज के डर से ही लोग भ्रूण-हत्या तक करने लगते हैं। दहेज के खिलाफ समाज में अभियान चलना चाहिए और महिलाओं को भी दहेज-विरोध के लिए आगे आना चाहिए।