ब्यूरो बांदा




बांदा। देश की अर्थव्यवस्था और आम जनता की स्थिति को ध्यान में रखे बिना पेश किए गए बजट पर सवाल उठने लगे हैं। जहां देश की प्रति व्यक्ति आय महज दो लाख रुपए सालाना सरकार द्वारा घोषित की गई है, जबकि वहीं दैनिक जीवन में महंगाई और बेरोजगारी से आम जनता जूझ रही है। ऐसे में 12 लाख रुपए तक की आय पर कर छूट देने की घोषणा से एक खास वर्ग को फायदा पहुंचाने का आरोप लग रहा है।
आम आदमी की अनदेखी
ग्रामीण इलाकों में रोजगार के अवसर सीमित हैं, और युवा बड़ी संख्या में पलायन कर शहरों की ओर जाने को मजबूर हैं। खेती से होने वाली आय घट रही है, छोटे व्यापारियों को पूंजी की कमी से संघर्ष करना पड़ रहा है, और मध्यम वर्ग महंगाई के बोझ तले दबा हुआ है। ऐसे में सरकार की यह कर नीति आम जनता की जरूरतों को नजरअंदाज करती दिख रही है।
अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है भारी असर
आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि आयकर छूट की सीमा 12 लाख तक बढ़ाने से सरकारी राजस्व में भारी कमी आएगी, जिससे विकास योजनाओं पर असर पड़ सकता है। देश की कुल आबादी में से महज एक करोड़ लोग इस कर छूट का लाभ उठा पाएंगे, जबकि बाकी जनता के लिए कोई ठोस राहत नहीं दी गई।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था की अनदेखी
बजट में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए कोई प्रभावी नीति नहीं दिखाई देती। किसानों की आमदनी दोगुनी करने का वादा अब भी अधूरा है, जबकि कृषि क्षेत्र में निवेश और सब्सिडी बढ़ाने की मांग लंबे समय से उठ रही है।
नौकरीपेशा और छोटे व्यापारियों के लिए कोई राहत नहीं
बजट में सरकारी और निजी क्षेत्र में रोजगार बढ़ाने की कोई ठोस योजना सामने नहीं आई है। छोटे व्यापारियों को महंगाई और कर्ज की दोहरी मार झेलनी पड़ रही है, लेकिन उनके लिए कोई विशेष पैकेज घोषित नहीं किया गया।
यह बजट एक विशेष वर्ग को लाभ पहुंचाने वाला प्रतीत हो रहा है, जबकि देश के करोड़ों आम नागरिकों की समस्याओं को नजरअंदाज किया गया है। सरकार को चाहिए कि वह संतुलित आर्थिक नीतियां अपनाए, जिससे देश की पूरी आबादी को समान रूप से लाभ मिल सके और आर्थिक असमानता को दूर किया जा सके।
