नई दिल्ली : पूर्व कानून मंत्री और मशहूर वकील शांति भूषण का 97 साल की उम्र में मंगलवार को निधन हो गया। शांति भूषण मोरारजी देसाई सरकार में 1977 से 1979 तक कानून मंत्री रहे। वकील के रूप में शांति भूषण का करियर शानदार रहा। शांति भूषण ने तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी के खिलाफ राजनारायण के मामले की इलाहाबाद हाईकोर्ट में पैरवी की थी। शांति भूषण की काबिलियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनकी दलीलों के सामने इंदिरा गांधी केस हार गईं। इतना ही नहीं कोर्ट के फैसले के कारण इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री का पद भी छोड़ना पड़ा। शांति भूषण का भ्रष्टाचार के प्रति रवैया भी काफी सख्त रहा।
वकालत के पेशे से जुड़े होने के बावजूद उन्होंने उस मुद्दे को उठाया जिस पर लोग खुलकर कुछ भी कहने से बचते हैं। न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के लेकर दबी जुबान में बातें तो खूब होती हैं लेकिन कोई कुछ कहने का साहस नहीं जुटा पाता है। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने साफ तौर पर न्यायपालिका में भ्रष्टाचार की बात कही थी। यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। साल 2010 में मामले की सुनवाई के दौरान बेंच ने इस मामले में शांति भूषण से अवमानना को लेकर माफी मांगने को कहा। इस पर शांति भूषण न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के अपने आरोप को लेकर अड़े रहे थे।
शांति भूषण ने कोर्ट में कहा कि माफी मांगने का सवाल ही नहीं उठता है। मैं अवमानना के लिए जेल जाने को तैयार हूं। मामले की सुनवाई तीन जजों की बेंच कर रही थी। बेंच में जस्टिस अल्तमस कबीर, सी. जोसफ और एचएल दत्तू शामिल थे। बयान को लेकर जब इनसे स्पष्टीकरण को कहा गया तो उन्होंने कहा था कि मैं पूर्व कानून मंत्री हूं। मेरा दृढ़ विश्वास है कि न्यायपालिका में बहुत भ्रष्टाचार है। मैं माफी मांगने नहीं जा रहा हूं। पूर्व कानून मंत्री ने कहा था कि ना तो मैं और ना ही मेरा बेटा (एडवोकेट प्रशांत भूषण) इसको लेकर माफी मांगेगे।
इंटरव्यू में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को भ्रष्ट बताया गया था। बयान में कहा गया था कि भारत के 16 मुख्य न्यायाधीशों में से 8 ‘निश्चित रूप से भ्रष्ट’ थे। 6 ‘निश्चित रूप से ईमानदार’ थे। इनमें से सिर्फ दो के लिए ‘एक निश्चित राय व्यक्त नहीं की जा सकती थी।’ इस मामले में ही एडवोकेट प्रशांत भूषण और एक मैगजीन के मैनेजिंग एडिटर खिलाफ अवमानना याचिका दायर की गई थी।