नई दिल्ली: बाटला हाउस एनकाउंटर मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे आतंकी शहजाद अहमद उर्फ पप्पू की शनिवार को मौत हो गई। आजमगढ़ निवासी शहजाद का दिल्ली के एम्स में इलाज चल रहा था। वह लंबे समय से तिहाड़ जेल में बंद था। आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन (IM) का सक्रिय सदस्य शहजाद 2008 के बाटला हाउस के एनकाउंटर में शामिल था। पुलिस को बाटला हाउस स्थित मकान से शहजाद का पासपोर्ट मिला था। पुलिस ने जब साल 2010 में गिरफ्तार किया तो उसने दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा को गोली मारने की बात स्वीकार की थी। इस मामले में अदालत ने उसे उम्र कैद की सजा सुनाई थी। शहजाद पर अन्य मामलों में भी मुकदमा चल रहा था। इनमें से एक मुकदमा बेंगलुरु में दर्ज हुआ था। साल 2008 में दिल्ली में हुए विस्फोटों से कुछ पहले ही शहजाद दिल्ली आया था। सितंबर 2008 के बाटला हाउस एनकाउंटर पर राजनीति भी खूब हुई। गाहे-बगाहे कुछ नेता एनकाउंटर पर ही सवाल उठाते रहे। पढ़ें, दिल्ली के बाटला हाउस एनकाउंटर की पूरी कहानी।
बाटला हाउस एनकाउंटर से पहले बम धमाकों से दहल उठी थी दिल्ली
13 सितंबर, 2008 को दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में बम धम धमाके हुए। कनॉट प्लेस, ग्रेटर कैलाश, करोलबाग और इंडिया गेट जैसे भीड़भाड़ वाले इलाकों में। धमाकों की जिम्मेदारी इंडियन मुजाहिदीन ने ली। उन धमाकों में 26 लोगों की मौत हुई और 133 घायल हुए। देश के दिल में किए गए इन धमाकों को मार्च 2021 में दिल्ली की एक अदालत ने ‘रेयरेस्ट ऑफ द रेयर’ करार दिया।
19 सितंबर 2008… गोलियों की गूंज से थर्रा गया दिल्ली का जामिया नगर
दिल्ली पुलिस ने बम धमाकों के सिलसिले में पांच मुकदमे दर्ज किए। धमाकों में शामिल अपराधियों की धरपकड़ शुरू हो चुकी थी। एक मोबाइल नंबर की पहचान हुई। उसे ट्रेस पर लगाया गया। एक लोकेशन मिली, जामिया नगर के बाटला हाउस स्थित एक घर की। इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा के नेतृत्व में एक टीम 19 सितंबर 2008 को बाटला हाउस के मकान नंबर L-18 पर पहुंची। फ्लैट में सबसे पहले घुसने वालों में सब-इंस्पेक्टर धर्मेंद्र थे। उन्होंने फॉर्मल शर्ट, टाई और ट्राउजर्स पहन रखी थी। वह एक टेलिकॉम कंपनी का एक्जीक्यूटिव बनकर गए थे। तब एसीपी रहे संजीव यादव उस वक्त L-18 की सीढ़ियां चढ़ रहे थे जब उन्होंने गोलियों की आवाज सुनी। ऊपर गए सात में तीन पुलिसकर्मियों को गोली लगी। यादव ने अपने साथियों को शर्मा व अन्य घायल पुलिसकर्मियों को नीचे लाते देखा।
बुलेटप्रूफ वेस्ट तक नहीं पहने थे पुलिसवाले, क्यों?
जामिया नगर बेहद घनी आबादी वाला इलाका है। पुलिस को जरा भी अंदाजा नहीं था कि गोलियों की बौछार हो जाएगी। पुलिसकर्मी बुलेटप्रूफ वेस्ट्स तक नहीं पहने हुए थे। यादव बताते हैं कि ‘हम जामिया नगर जैसे इलाके में ऐसी गोलीबारी सोचकर नहीं गए थे। पहली टीम के पास तो बुलेटप्रूफ वेस्ट्स तक नहीं थीं। यह एक अनकहा प्रोटोकॉल था कि हम उस इलाके में पुलिस गियर पहनकर नहीं जाते थे… विवाद से बचने के लिए।’
बाटला हाउस एनकाउंटर में मोहम्मद साजिद (छोटा साजिद) और मोहम्मद आतिफ अमीन मारे गए। आरिज खान और शहजाद अहमद फरार हो गए थे। सैफ के खिलाफ पुलिस ने कोई केस नहीं बनाया। एनकाउंटर के दौरान घायल हुए इंस्पेक्टर शर्मा ने बाद में दम तोड़ दिया।
बाटला हाउस एनकाउंटर के कुछ हफ्तों बाद ही आरिज नेपाल पहुंच गया। वहां की नागरिकता लेकर उसने मोहम्मद सलीम के नाम से पासपोर्ट भी बनवा लिया था। पहले उसने ढाबा खोला फिर कुछ स्कूलों में पढ़ाया भी। आईएम के झंडाबरदारों- भटकल बंधुओं के कहने पर बीच में आरिज ऊदी अरब भी गया। आरिज और शहजाद की तलाश में पुलिस टीमें लगी हुई थी। 2010 में यूपी की एंटी टेररिस्ट स्क्वाड (ATS) ने शहजाद को आजमगढ़ से दबोचा। वह अपने दादा के घर रह रहा था। दिल्ली की साकेत अदालत ने उसे 2013 में दोषी करार दिया।