नई दिल्ली: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जो बजट पेश किया है, उसमें 6-7 प्रतिशत की रियल जीडीपी ग्रोथ (GDP Growth) के साथ इंफ्लेशन को 4-5 प्रतिशत के दायरे में लाने की बात है। साथ ही, फिस्कल डेफिसिट को जीडीपी के 6 से 6.5 प्रतिशत तक रखते हुए ग्रोथ बढ़ाने के लिए सरकारी खजाने से बड़े खर्च का प्रस्ताव किया गया है। मेरी नजर में यह दमदार बजट है। सरकारी खर्च की जो क्वॉलिटी है, उसमें भी काफी सुधार दिख रहा है। बजट में टोटल रेवेन्यू एक्सपेंडिचर 35 लाख करोड़ रुपये रखने की बात है। दूसरी ओर, कैपिटल एक्सपेंडिचर में 30 प्रतिशत का उछाल है।
मैक्रो इकॉनमी की समझ रखने वाले अधिकतर विशेषज्ञ कहेंगे कि इस बजट में कैपेक्स साइकल पर सोचा-समझा दांव लगाया गया है। यानी सरकारी कैपिटल एक्सपेंडिचर से प्राइवेट सेक्टर को कैपिटल एक्सपेंडिचर के लिए प्रेरित करना, जिससे रोजगार के ज्यादा मौके बनें और इससे लोगों की आमदनी बढ़े और वे ज्यादा खर्च करें। इससे सरकार का टैक्स रेवेन्यू बढ़ेगा और उसके दम पर सरकार और ज्यादा कैपिटल एक्सपेंडिचर करेगी। इस तरह यह साइकल आगे बढ़ेगा।
इस बार के बजट ने यह तस्वीर बनाए रखी है। अब सवाल आता है निवेशकों को इस बजट को ध्यान में रखते हुए क्या करना चाहिए? मेरा दांव बैंकिंग पर है, खासतौर से प्राइवेट बैंकों पर। अच्छी इकनॉमिक ग्रोथ इस सेक्टर के लिए डबल पॉजिटिव है। यानी कर्ज की मांग बढ़ेगी और क्रेडिट कॉस्ट भी कम होगी। इससे बैंकों का मुनाफा बढ़ेगा। इस बार के बजट में पीएम आवास योजना यानी अफोर्डेबल हाउसिंग के लिए 66 प्रतिशत ज्यादा आवंटन किया गया है। यह सीमेंट सेक्टर के लिए अच्छी बात है। हालांकि सीमेंट सेक्टर में उत्पादन क्षमता काफी है, लिहाजा हो सकता है कि डिमांड बढ़ने का उतना असर न दिखे। सरकार ने कैपिटल एक्सपेंडिचर बढ़ाने की बात की है। कैपिटल गुड्स सेक्टर पर इसका निश्चित रूप से अच्छा असर होगा। हालांकि प्रॉफिटेबिलिटी हो सकता है कि कम रहे क्योंकि सप्लाई साइड इंफ्लेशन अपना असर दिखाएगी। इस तरह देखें तो प्राइवेट बैंकिंग सेक्टर को छोड़कर निवेश के लिहाज से चुनिंदा स्टॉक्स पर फोकस करना चाहिए, बजाय इसके कि किसी पूरे सेक्टर पर दांव लगाया जाए। कुलमिलाकर भारत का अतीत शानदार रहा है और इसका भविष्य भी शानदार रहेगा।