नई दिल्ली: हाल ही में फार्मा कंपनी मैनकाइंड फार्मा (Mankind Pharma) का आईपीओ (IPO) खुला है। लोगों के पास कंपनी के आईपीओ में निवेश का मौका है। हम में से अधिकांश लोग मैनकाइंड को एक कंडोम बनाने वाली कंपनी के तौर पर जानते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। 43000 करोड़ रुपये की ये कंपनी फार्मा सेक्टर की टॉप कंपनियों में शामिल है। जितना बड़ा इस कंपनी का कारोबार है, उतनी ही दिलचस्प इसकी कहानी भी है। कभी यूपी रोडवेज की बसों में धक्के खाने वाले एक एमआर यानी मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव ने अपनी सोच और लगन के साथ इस कंपनी की शुरुआत की।
मैनकाइंड फार्मा की कहानी
मेरठ के रहने वाले रमेश जुनेजा (Ramesh Juneja) एक एमआर थे। साल 1974 में उन्होंने अपने करियर की शुरुआत बतौर मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव के तौर पर की थी। कंपनी की दवाईयां बेचने के लिए वो यूपी रोडवेज की बसों से सफर करते थे। मेरठ से पुरकाजी तक का सफर रोज रोडवेज बसों से करते थे। लोगों को अपनी कंपनी की दवाईयों के बारे में बताते थे। उस इलाके के डॉक्टरों से मिलने के लिए उन्हें कई-कई घंटों तक का इंतजार करना पड़ता था। साल 1975 में उन्होंने लूपिन फार्मा ज्वाइंन कर लिया। 8 सालों तक वहां काम करने के बाद उन्होंने 1983 में इस कंपनी से रिजाइन कर दिया। जब तक वो कंपनी के साथ रहे, उसे बढ़ाने के लिए जी-जान लगा दी। एमआर की नौकरी से उन्हें मेडिकल सेक्टर को समझने और सीखने का मौका मिल रहा था।
जब गहने लेकर दवा खरीदने आया शख्स
एक बार जब मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव के तौर पर वो एक केमिस्ट की दुकान पर खड़े होकर उसे अपनी कंपनी की दवाईयां बेचने के लिए राजी कर रहे थे, उसी वक्त दुकान पर एक व्यक्ति आया। उस शख्स को दवा चाहिए थी, लेकिन उसके पास पैसे नहीं थे। बिल चुकाने के लिए वो अपने साथ चांदी के गहने लेकर आया था। उसने दवा के बदले गहने देने की बात कही, जिसे देखकर रमेश जुनेजा का दिल पिघल गया। उन्होंने उसी वक्त ठान लिया कि वो ऐसी दवाईयां बनाएंगे, जो आम लोगों तक पहुंचे। उनके बजट में हो। दवा खरीदने के लिए किसी को अपने गहने बेचने की नौबत नहीं आई। कम कीमत और बेहतरीन क्वालिटी की सोच के साथ उन्होंने अपनी फार्मा कंपनी खोलने की सोची।
पहली बार में हो गए फेल
रमेश ने अपने दोस्त के साथ मिलकर बेस्टोकेम नाम की फार्मा कंपनी खोली, लेकिन वो सफल नहीं हो सके। साल 1994 में उन्हें बेस्टोकम छोड़ना पड़ा। इसी के बाद उन्होंने अपने भाई के साथ मिलकर मैनकाइंड फार्मा की शुरुआत की। रमेश पहली बार में असफल रहे, लेकिन उन्होंने इससे काफी कुछ सीखा। उन्हें अपनी गलतियां समझ आ गई थी। साल 1995 में उन्होंने अपने भाई के साथ मिलकर Mankind फार्मा की नींव रखी। दोनों भाईयों ने 50 लाख रुपये का निवेश किया। कंपनी के शुरुआती दौर में उन्होंने 25 मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव को अपने साथ जोड़ा। पहले ही साल में कंपनी ने कमाल कर दिया। कंपनी की वैल्युएशन 4 करोड़ रुपये पर पहुंच गई।
कंडोम को लेकर बदल दी सोच
रमेश और उनके भाई की रणनीति हिट रही। कंडोम और कॉन्ट्रासेप्टिव प्रोडक्ट्स बनाने में ये कंपनी टॉप पर है। उन्होंने अपनी बिजनेस स्ट्रेटेजी में भी लगातार नई चीजें शामिल की। उन्होंने कंडोम और कॉन्ट्रासेप्टिव प्रोडक्ट्स को बेडरूम से निकालकर प्राइम टीवी और अखबारों तक पहुंचा दिया। उन्होंने विज्ञापन को अपना बड़ा हथियार बनाया। मैनकाइंड ने साल 2007 में कंडोम का ऐसा विज्ञापन टीवी पर दिखाया, जिसने उसे पॉपुलर कर दिया । इस विज्ञापन का ऐसा असर दिखा कि कंडोम का मतलब मैनफॉर्स हो गया। साल 2021-13 में कंपनी ने 20 फीसदी का सालाना ग्रोथ दर्ज किया। कंपनी कंडोम और कॉन्ट्रासेप्टिव प्रोडक्ट्स के अलावा डायबिटीज, हाइपरटेंशन ड्रग्स बनाती है। आज कंपनी मैनकाइंड फार्मा 43264 करोड़ की बन गई है।