नई दिल्ली: आम बजट (Union Budget 2023) पेश होने में अब कुछ ही देर बाकी है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण कुछ ही देर में आम बजट पेश करने वाली हैं। इस बार बजट से सभी सेक्टरों को काफी उम्मीदें हैं। देश का हर वर्ग इस बार बजट से काफी उम्मीदें लगाए हुए है। डिफेंस सेक्टर (Budget Expectation for Defence Sector) को भी बजट से काफी उम्मीदें हैं। जिस तरह से पिछले महीनों में चीन और भारतीय सेना के बीच तनातनी की खबरें सामने आई हैं। इस बार उम्मीद की जा रही है कि सरकार डिफेंस का बजट और बढ़ा सकती है। डिफेंस सेक्टर में सरकार कई ऐलान कर सकती है। इस बार भी आम बजट पेपरलेस होगा। पिछले दो वर्षों से आम बजट पेपरलेस रहा है। डिफेंस सेक्टर में पिछले साल सरकार ने जो आवंटन पेश किया था वह करीब 5.25 लाख करोड़ रुपये का था। डिफेंस सेक्टर पर सरकार का हमेशा से ही फोकस ज्यादा रहा है। ऐसी उम्मीद की जा रही है कि इस बार बजट में 10 से 15 फीसदी तक का एलोकेशन बढ़ सकता है। इस बार रक्षा बजट बढ़कर साढ़े छह लाख रुपये तक किए जाने की उम्मीद है। आइए आपको बताते इस बार डिफेंस सेक्टर को सरकार से क्या उम्मीदें हैं।
डिफेंस बजट में बढ़ोतरी की मांग
डिफेंस बजट (Defence Budget) में भारतीय सेना लंबे समय से बढ़ोतरी की मांग कर रही है। इसकी वजह यह है कि भारत को पूर्वी और पश्चिमी सीमा पर लगातार चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। चीन के साथ लंबे समय से सीमा पर तनातनी चल रही है। सेना को दो मोर्चों पर एक साल निपटने के लिए अपनी तैयारी करनी पड़ रही है। लेकिन उसमें बजट की कमी लगातार आड़े आ रही है। दूसरी ओर पाकिस्तान और चीन लगातार अपने डिफेंस बजट में इजाफा कर रहे हैं। पिछले साल के आम बजट में डिफेंस के लिए 5.2 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था। इसमें से सबसे ज्यादा 1.9 लाख करोड़ रुपये आर्मी के लिए आवंटित किए गए थे, लेकिन इसका 83 फीसदी हिस्सा सैलरी और रोजाना के खर्चों में चला जाता है। केवल 17 फीसदी हिस्सा ही सेना के आधुनिकीकरण के लिए बच जाता है।
सेना के पास इन सामानों की कमी
आपको बता दें कि कुल डिफेंस बजट में से 1.2 लाख करोड़ रुपये 33 लाख से अधिक पूर्व सैनिकों और डिफेंस सिविलियन के पेंशन में चला जाता है। इससे सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण के लिए पर्याप्त रकम नहीं बचती है। सेना के पास अभी काफी सामान ऐसे हैं जिनकी कमी चल रही है। सेना के पास मॉडर्न इंफेंट्री वेपन्स, हेलीकॉप्टर्स, ड्रोन, हॉवित्जर्स, रात में लड़ने में सक्षम क्षमताओं, एंटी टैंक गाइडेड मिसाइलों और साजो-सामान की भारी कमी बनी हुई है। इसी के साथ ही लेफ्टिनेंट कर्नल और उससे नीचे के फाइटिंग रैंक के अधिकारियों की भी कमी है। इसकी वजह है कि सैलरी और पेंशन पर खर्च बढ़ने के कारण सेना को अपने आधुनिकीकरण के लिए बहुत कम बच पाता है जिससे अत्याधुनिक तकनीकों को शामिल किया जा सके।
डिफेंस बजट में लगातार हुआ है इजाफा
सरकार ने वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान डिफेंस के लिए 5.25 लाख करोड़ से ज्यादा का बजट रखा था। ये सरकार के कुल व्यय के 13.3 फीसदी के बराबर है। विश्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि साल 2000 से लेकर अब तक भारत का डिफेंस एक्सपेंडीचर हमारी जीडीपी के 2.5 से 3.1 फीसदी के बीच बना रहा है। साल 2001 में भारत का कुल रक्षा बजट 14.6 अरब डॉलर था। यह साल 2011 तक 339 फीसदी यानी करीब साढ़े तीन गुना बढ़कर 49.63 अरब डॉलर पर पहुंच गया। इसके बाद के सालों में इसमें काफी धीमी गति से इजाफा हुआ। साल 2020 की बात करें तो सरकार ने डिफेंस पर 72.94 अरब डॉलर यानी जीडीपी के 2.9% के बराबर रकम खर्च की थी। इधर चीन की बात करें तो वह अपनी सुरक्षा पर भारत से करीब 4 गुना ज्यादा खर्च किया है। चीन और भारत के रक्षा व्यय का अंतर पिछले 10-12 साल में तेजी से बढ़ा है। साल 2019 में चीन का मिलिट्री एक्सपेंडीचर बढ़कर 240.33 अरब डॉलर हो चुका था, जबकि उस साल भारत के लिए यह आंकड़ा 71.47 अरब डॉलर तक ही पहुंच पाया था। साल 2010 से 2021 के दौरान भारत ने अपने रक्षा व्यय में जिस रफ्तार से इजाफा किया, उससे कहीं ज्यादा तेजी से चीन ने अपना मिलिट्री एक्सपेंडीचर बढ़ाया है।