नई दिल्ली: हम तो भारत के साथ अपने नाटो पार्टनर जैसा व्यवहार करते हैं। यह कहना है अमेरिकी सरकार के एक बड़े अधिकारी डी रोजमैन केंडलर (D Rozman Kendler) का। बाइडेन प्रशासन के निर्यात विभाग की उप-वाणिज्य मंत्री डी रोजमैन केंडर इन दिनों दिल्ली में हैं। उन्होंने कहा कि जहां तक बात भारत के साथ रक्षा सौदों की है तो हम इस देश को निर्यात कुछ इस तर्ज पर करते हैं जैसे कि यह नाटो का सदस्य हो। नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन (NATO) अमेरिका और यूरोपीय देशों का सबसे बड़ा और सबसे ताकतवर सैन्य संगठन है। भारत इसका सदस्य नहीं है। ऐसे में अमेरिकी प्रशासन की मंत्री का कहना कि उनका देश भारत को नाटो पार्टनर के नजरिए से देखता है, अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत के बढ़ते कद का एक बड़ा सबूत है।
भारत के लिए बेहद मामूली ट्रेड लाइसेंस की जरूरत
अमेरिकी उप-वाणिज्य मंत्री (US Assistant Secretary For Commerce) ने कहा कि एक बड़े रक्षा साझेदार के रूप में भारत को अमेरिका से जो फायदे मिलते हैं, वो औरों को नहीं मिलते। उन्होंने कहा कि भारत को अमेरिका से रक्षा उपकरणों के आयात के लिए बेहद मामूली लाइसेंस की जरूरत होती है। अमेरिका से कई व्यापारिक वस्तुओं की खरीद पर भारत को लाइसेंस से छूट दी गई है। उन्होंने कहा कि व्यापार नियंत्रण के लिए सामरिक व्यापार बातचीत और साझी प्रतिबद्धताओं से दोनों देशों के बीच उच्च तकनीकी सहयोग का मार्ग प्रशस्त होता है। केंडलर ने कहा, ‘भारत के लिए बिल्कुल मामूली लाइसेंस की जरूरत रह गई है। जहां तक बात चुनिंदा वस्तुओं के निर्यात की है तो भारत के साथ हमारा रवैया अपने नाटो पार्टनर की तरह होता है। हमें पता है कि बहुत सी वस्तुएं अमेरिका से भारत भी आसानी से पहुंच सकती हैं।’
25 साल में भारत-अमेरिका के रिश्ते बहुत आगे बढ़ गए
उन्होंने आगे कहा, ‘हमने जिन बातों पर चर्चा की, उनमें एक यह है कि भारत को होने वाले कुछ निर्यातों में भारत को अपवाद के श्रेणी में रखा गया है। इस कारण निर्यात करने वाली अमेरिकी कंपनियों और आयात करने वाली भारतीयो कंपनियों को लाइसेंसिंग की पेचीदा प्रक्रियाओं से नहीं गुजरना होता है। इसलिए हम चाहते हैं कि दोनों देशों की कंपनियों के इसके बारे में अच्छे से पता हो ताकि दोनों देशों के बीच व्यापार और आसान हो जाए।’ अमेरिकी अधिकारी ने कहा, ‘हमारी साझेदारी लंबे समय से है और इस दिशा में हम तेजी से प्रगति भी कर रहे हैं। अगर आप 25 साल पीछे मुड़कर देखेंगे तो उस वक्त 25 प्रतिशत अमेरिकी वस्तुओं की भारत में निर्यात के लिए लाइसेंस की जरूरत पड़ती थी। अब 0.5 प्रतिशत वस्तुओं के लिए ही अमेरिकी सरकार से लाइसेंस लेने की जरूरत होती है। हमने इतनी लंबी दूरी इसलिए तय कि क्योंकि भारत ने सामरिक व्यापार कानून बनाए और नियमों को प्रभावी तरीके से लागू किया। मजबूत सामरिक व्यापार साझेदारी से हम भारत को वो उपकरण देते हैं जो दूसरों को नहीं दे सकते।’ उन्होंने मौजूदा दौर को भारत-अमेरिका के आपसी रिश्तों के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण बताया।
सामरिक महत्व के उपकरणों के व्यापार पर बातचीत
अमेरिकी वाणिज्य मंत्री गीना रैमोंडो (Gina Raimondo) पिछले महीने भारत आई थीं। उस दौरे में हुई बातचीत को आगे बढ़ाने के लिए उनकी सहायक मंत्री केंडलर अभी दिल्ली में हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिका और भारत की सुरक्षा चिंताएं समान हैं, इस कारण दोनों के बीच साझेदारी भी आसान है। पांच दिनों के दौरे पर केंडलर ने दिल्ली में कई सरकारी अधिकारियों और उद्योग जगत के लोगों से मिलीं। उन्होंने अमेरिका-भारत सारिक व्यापार बातचीत (USISTD) के लिए फाइनल प्लानिंग पर भी काम कर रही हैं। यूएसआईएसटीडी की मीटिंग अगले महीने अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन में होने वाली है। उन्होंने कहा कि यूएसआईएसटीडी से अमेरिका के अति महत्वपूर्ण और स्पेशल रक्षा उपकरणों को भारत को देने का रास्ता खुल जाएगा।