पाटन। दुर्ग जाने के लिए रायपुर से बाहर निकलते हुए जैसे-जैसे राजधानी की सरगर्मी कम होती है, वैसे-वैसे पाटन का चुनावी पारा चढ़ता है। बघेल बनाम बघेल की चुनावी भिड़ंत का गवाह बनी इस सीट पर छत्तीसगढ़ के साथ ही पूरे देश की नजरें अगर लगी हैं तो इसीलिए कि यहां से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कांग्रेस प्रत्याशी हैं और उन्हें चुनौती देने या कहें कि घेरने के लिए भाजपा ने उनके भतीजे और दुर्ग से सांसद विजय बघेल को चुनावी मैदान में उतारा है। विजय बघेल उम्र में भूपेश से दो साल बड़े हैं, लेकिन लगते भतीजे हैं। इसलिए यह सवाल हर किसी की जुबान पर है कि पाटन का क्या होगा नतीजा चाचा या भतीजा।
मोखली में उनके समर्थन के लिए रैली करने आए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने जनसभा में मौजूद लोगों की राजनीतिक समझदारी पर भरोसा करते हुए जब यह कहा कि अगर मौजूदा सांसद को यहां से लड़ने के लिए कहा गया है तो आप इसका संकेत समझ ही गए होंगे। उनकी बात पर देर तक तालियां बजती है, क्योंकि वहां उपस्थित लोगों को भरोसा है कि उनके पास भी मुख्यमंत्री चुनने का मौका है।
पाटन में परिवार की लड़ाई
पाटन वह झलक दिखाता है जो एक मौजूदा मुख्यमंत्री के निर्वाचन स्थल में होनी चाहिए। चकाचक सड़कें, तहसील का विकास, किसानों और आम लोगों की सहूलियत के लिए बने केंद्र आदि, लेकिन जब मामला परिवार की लड़ाई और उनमें से एक को चुनने का हो तो परिदृश्य दिलचस्प हो जाता है।
पाटन में ऐसे घरो की कमी नहीं जहां दोनों प्रत्याशियों के समर्थन का आभास होता है। माहौल में गर्मी कोई भी महसूस कर सकता है। यह गर्मी भूपेश बघेल और विजय बघेल के सार्वजनिक संबोधनों में भी दिखती है। दोनों का दावा है कि चुनाव वे नहीं, बल्कि क्षेत्र की जनता लड़ रही है। वैसे तो इस सीट पर छत्तीसगढ़ जन कांग्रेस के अमित जोगी भी मुकाबले में हैं और इस आधार पर मुकाबला त्रिकोणीय भी कहा जा रहा है।
बघेल बनाम बघेल में कौन जीतेगा?
बघेल बनाम बघेल में कौन जीतेगा, के सवाल पर कोई भी खुलकर नहीं बोलता। कांग्रेस समर्थक पाटन में पिछले साल हुए कामों को गिना रहे हैं तो भाजपा के चाहने वालों को भरोसा है कि लोकसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ में सबसे बड़ी जीत हासिल करने वाले विजय बघेल के लिए पाटन जरा भी मुश्किल नहीं है।
हम सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ते हैं- विजय बघेल
विजय बघेल को 2019 में आम चुनाव में पाटन विधानसभा क्षेत्र में 23 हजार वोटों की बढ़त मिली थी और उस पर भी राजनाथ सिंह की रैली हो चुकी है। राजनाथ सिंह पाटन और विजय बघेल के लिए भाग्यशाली हैं, ऐसा मानने वालों की कोई कमी नहीं है। 2008 में जब विजय बघेल यहां से विधानसभा का चुनाव जीते तब भी राजनाथ सिंह उनका प्रचार करने आए थे और 2019 में लोकसभा चुनाव में जब उन्हें जीत मिली थी तो उसमें भी राजनाथ सिंह की रैली का योगदान था।
जब विजय बघेल से पूछा गया कि पार्टी ने उन्हें सीएम के सामने खड़ा तो कर दिया, लेकिन सीएम का चेहरा क्यों नहीं बनाया तो उनका जवाब था-इसकी जरूरत नहीं। हम सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ते हैं। दूसरी तरफ भूपेश बघेल के लिए ऐसा कोई असमंजस नहीं है। वह और उनकी पार्टी जीती तो वही आगे भी कमान संभालेंगे।
भूपेश है तो भरोसा है
भूपेश है तो भरोसा है
भूपेश है तो भरोसा है..के नारों के बीच फुनईडीह जैसे गांव की महिलाओं की आवाजें भी सुनाई दे रही हैं, जो तमाम बड़ी-बड़ी बातों के बावजूद अपने लिए पीएम आवास योजना के घर नहीं पा सकी हैं। उन्हीं में से एक गंगोत्री वर्मा का खेत बिक गया और वह किसान के बजाय भूमिहीन मजदूर बन गईं, क्योंकि उन्हें पक्की छत की जरूरत थी, जो सरकार की तरफ से पूरी नहीं हुई। गंगोत्री वर्मा कहती हैं कि केंद्र सरकार का राशन बिना नागा मिलता है, हर घर जल का पानी आंगन तक आ गया, लेकिन पंचायत वालों ने न घर दिया और न ही पेंशन। उनकी जैसी महिलाएं शराबबंदी वाला वादा भी पूरा न होने से निराश हैं।
भूपेश यहां से 1993, 1998, 2003, 2013 और 2018 में जीत चुके हैं, जबकि विजय बघेल को 2008 में सफलता मिली थी। पिछली बार उन्होंने भाजपा के मोतीलाल साहू को लगभग 25 हजार वोट से हराया था। छह में से पांच का स्ट्राइक रेट होने के बावजूद अगर इस बार भूपेश बघेल को प्रचार के दौरान आम लोगों के साथ नाई की दुकान में हजामत बनवाने के लिए आना पड़ा है तो लोग अंदाज लगा रहे हैं कि भतीजे के साथ लड़ाई चाचा के लिए इतनी आसान भी नहीं है। यह वह सीट है जो दुर्ग संभाग की बीस सीटों पर भाजपा और कांग्रेस में सीधी भिड़ंत है और पाटन इस क्षेत्र की धुरी है। यहां मतदान तक जो माहौल बनेगा, वह पूरे संभाग के लिए निर्णायक हो सकता है।