नई दिल्ली: 22 अप्रैल 2006… वह तारीख जिस दिन बीजेपी नेता प्रमोद महाजन को उनके छोटे भाई प्रवीण महाजन ने गोली मार दी। एक दो नहीं तीन गोलियां। प्रमोद महाजन को जब गोली मारी गई तब वह अपने मुंबई के वर्ली स्थित घर पर थे। उन्हें तत्काल हॉस्पिटल पहुंचाया गया लेकिन आखिरकार 3 मई को उनके नहीं रहने की खबर आती है। गोली मारे जाने की ऐसी खबर थी जिस पर किसी को यकीन नहीं हो रहा था। हिंदुजा अस्पताल जहां प्रमोद महाजन को एडमिट कराया गया था वहां राजनीति, बॉलीवुड और कॉरपोरेट जगत से जुड़े लोगों के आने का तांता लग गया। हर कोई प्रमोद महाजन की हालत कैसी है यह जानना चाहता था। बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी और तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह दोनों ने अपनी यात्राओं पर तत्काल विराम लगाया और मुंबई के लिए रवाना हो गए। प्रमोद महाजन बीजेपी के सबसे दिग्गज नेताओं में से एक थे और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से उनकी घनिष्ठता जगजाहिर थी। इस खबर को सुनकर वह परेशान थे। अटल जी उस वक्त पीठ दर्द से पीड़ित थे लेकिन खुद को मुंबई जाने से रोक नहीं सके। प्रमोद महाजन वह शख्स हॉस्पिटल में थे जिन्हें कुछ ही महीने पहले उन्होंने बीजेपी का लक्ष्मण बताया था।
2005 में मुंबई के शिवाजी पार्क में बीजेपी के रजत जयंती समारोह में एक रैली को संबोधित करते हुए अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा कि वह राजनीति से रिटायर होंगे। इस रैली में ही उन्होंने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि पार्टी में आडवाणी और प्रमोद महाजन, राम-लक्ष्मण की जोड़ी है। उन्होंने प्रमोद महाजन को पार्टी का लक्ष्मण बताया था जिसकी काफी चर्चा हुई थी। प्रमोद महाजन की गिनती पार्टी के सबसे हाईप्रोफाइल नेताओं में होती थी। पार्टी के दूसरी पीढ़ी के नेताओं में वह सबसे सक्रिय थे। वह पार्टी का एक ऐसा चेहरा बन गए थे जिसकी पहचान पूरे देश भर में थी।
प्रमोद महाजन की एक वक्त गिनती बीजेपी के सबसे सफल और शक्तिशाली नेताओं के तौर पर होती थी। कोई राजनीतिक आधार न होने के बावजूद उन्होंने राज्य की राजनीति से लेकर पूरे देश में अपनी छवि बनाने कामयाब रहे। आडवाणी की रथयात्रा में भी वह मुख्य सूत्रधार रहे। एक अच्छे वक्ता होने के साथ ही वह केंद्र की राजनीति के भी मुख्य सूत्रधार रहे। पॉलिटिकल मैनेजर शब्द गढ़ा गया तो महाजन के लिए। प्रमोद महाजन भारतीय राजनीति के एक ऐसे किरदार थे जो हर वक्त राजनीति के केंद्र में रहते थे। प्रधानमंत्री रहते अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रमोद महाजन पर काफी भरोसा किया। अटल जी के साथ प्रमोद महाजन की बॉन्डिंग कैसी थी यह सबको पता है। सदन में वह अटल बिहारी वाजपेयी के पीछे बैठते थे और जरूरत पड़ने पर उनके कान में कुछ-कुछ कहते रहते थे।
महाजन देश की राजनीतिक नब्ज को पहचानने वाले नेता थे। वह एक शानदार वक्ता थे जो सुनने वालों को मंत्रमुग्ध कर देते थे। उनके अंदर यह क्षमता थी कि वह पार्टी के कार्यकर्ताओं को लामबंद कर सकें और उनमें जोश भर सकें। वह पार्टी के लिए संकटमोचक थे। 2004 लोकसभा चुनाव में वाजपेयी के नेतृत्व वाले एनडीए की हार होती है। इस चुनाव में प्रचार के केंद्र में प्रमोद महाजन थे। हार के बाद उन्होंने इसकी जिम्मेदारी भी ली।