नई दिल्लीः पिछले दिनों आपने एक खबर पढ़ी होगी। केरल में एक मुस्लिम दंपती ने 29 साल बाद दोबारा शादी की। वजह थी कि शरीयत कानून से की गई शादी में उनकी बेटियों को पैतृक हक नहीं मिल पा रहा था। यह शादी उन्होंने स्पेशल मैरिज ऐक्ट के जरिए की। ऐक्ट को समझने से पहले यह जान लीजिए कि पिछले दिनों बॉलीवुड एक्ट्रेस स्वरा भास्कर और फहाद अहमद ने भी इसी कानून के तहत शादी की थी। अभी अपने देश में शादियां हिंदू विवाह अधिनियम 1955, मुस्लिम मैरिज ऐक्ट 1954 या स्पेशल मैरिज ऐक्ट 1954 के तहत होती हैं। न्यायपालिका यह सुनिश्चित करती है कि पति और पत्नी के अधिकारों की रक्षा की जा सके। विशेष विवाह अधिनियम की इन दिनों काफी चर्चा है। संसद ने यह कानून धर्म या जाति से इतर भारतीयों और विदेश में बसे सभी भारतीय नागरिकों की सिविल मैरिज के लिए पारित किया है।
इस कानून के तहत दो अलग-अलग धर्मों के लोग शादी के बंधन में बंध सकते हैं। जब पति या पत्नी दोनों हिंदू, बौद्ध, जैन या सिख नहीं हों तो इस ऐक्ट के तहत शादी का पंजीकरण कराया जा सकता है। इसके तहत कपल को शादी की प्रस्तावित तारीख से 30 दिन पहले मैरिज ऑफिसर को संबंधित दस्तावेज के साथ नोटिस देना होता है। यह प्रक्रिया अब ऑनलाइन https://www.onlinemarriageregistration.com/ शुरू हो गई है। हालांकि विवाह कार्यक्रम के लिए जोड़े को मैरिज अधिकारी के सामने उपस्थित होना होता है।
मां-बाप ने फिर की शादी
कुछ दिन पहले केरल में एक मुस्लिम दंपति ने अपनी बेटियों को उत्तराधिकार का पूरा हक दिलाने के लिए एक बार फिर शादी की। पहले उनकी शादी मुस्लिम यानी शरीयत कानून के तहत हुई थी, इस बार उन्होंने स्पेशल मैरिज ऐक्ट के तहत की। अब उनकी बेटियों को संपत्ति पर पूरा अधिकार मिलेगा। इसके बाद स्पेशल मैरिज ऐक्ट की काफी चर्चा हुई। लोगों को मुस्लिम लॉ की खामियां भी पता चलीं। हालांकि मुस्लिम धर्मगुरु इसे अलग तरह से परिभाषित करते हैं। कुछ लोगों ने इस कपल को धमकी भी देना शुरू कर दिया।
इससे पहले जब स्वरा और फहाद ने बगैर धर्म बदले शादी की, तब भी इस कानून की काफी चर्चा हुई। यह कानून पर्सनल लॉ या धर्म के तहत होने वाली शादियों से इतर स्टेट को विवाह कराने का अधिकार देता है। पर्सनल लॉ में एक बड़ी समस्या यह है कि दूल्हा और दुलहन का धर्म एक ही होना चाहिए। नहीं है, तो धर्म परिवर्तन की बात कही जाती है लेकिन अगर कोई हिंदू या मुस्लिम बिना धर्म बदले शादी करना चाहते हैं तो क्या विकल्प है? ऐसे में इस ऐक्ट की जरूरत महसूस हुई। इसके तहत आप अपनी धार्मिक पहचान के साथ दूसरे धर्म का अपना जीवनसाथी चुन सकते हैं।
धर्म बदलने की टेंशन नहीं
वैसे, देश में सिविल और धार्मिक दोनों तरह के विवाह की स्वीकृति है। सिविल कानून में कुछ शर्तें भी हैं। जैसे, शादी के समय वर या वधू का पहले से जीवनसाथी नहीं होना चाहिए। जोड़े में कोई ऐसा न हो जो शादी के लिए सहमति देने की स्थिति में न हो। मानसिक बीमारी नहीं होनी चाहिए।
वर-वधू पक्ष से नोटिस मिलने के बाद अगले 30 दिन में शादी को लेकर कोई तीसरा शख्स आपत्ति दर्ज करा सकता है। इस दौरान एक पब्लिक नोटिस जारी होता है। एक कॉपी नोटिस बोर्ड पर लगती है और एक-एक कॉपी दोनों पक्षों को रजिस्टर्ड पोस्ट से भेजी जाती है। SDM 30 दिन में आई आपत्तियों को देखते हैं और उसके बाद पंजीकरण होता है। सब कुछ ठीक रहा तो प्रक्रिया आगे बढ़ेगी। दोनों पक्ष ऑफिस में उपस्थित रहते हैं और तीन गवाह हस्ताक्षर करते हैं। इस तरह से मैरिज ऑफिसर विवाह को कानूनी मान्यता दे देते हैं।
अब ऐक्ट में बदलाव की मांग
स्पेशल मैरिज ऐक्ट के तहत लड़का और लड़की दोनों बालिग होने चाहिए। वे किसी भी धर्म के हो सकते हैं। लड़की की उम्र कम से कम 18 साल और लड़के की उम्र कम से कम 21 साल होनी चाहिए। अब सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर स्पेशल मैरिज ऐक्ट को जेंडर न्यूट्रल करने की गुहार लगाई गई है।