नई दिल्ली: इन दिनों सेम सेक्स में शादी का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिलाने वाली याचिकाओं को अपने पास ट्रांसफर कर लिया है। यह मामला चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था। लेकिन क्या आपको पता है कि सेम सेक्स में शादी को कानून मान्यता दिलाने की पहल गे कपल पार्थ फिरोज मेहरोत्रा और उदय राज आनंद ने शुरू की थी। मेहरोत्रा और आनंद की मुलाकात 17 साल पहले हुई। इसके बाद दोनों में दोस्ती हुई और फिर प्यार। इस कपल ने 2019 में पेरेंट्स बनने का फैसला लिया। हालांकि, कानून उन्हें बच्चों को गोद लेने का अधिकार नहीं देता है, इसीलिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
सेरोगेसी के जरिए बने पेरेंट्स
मेहरोत्रा कहते हैं कि 2020 में जब दुनिया कोरोना महामारी की चपेट में थी, वे सरोगेसी के जरिए दो बच्चों के पिता बने। मेहरोत्रा ने कहा, हम अपने बच्चों को पढ़ाते हैं, उन्हें बिस्तर पर सुलाते हैं, उन्हें गुड नाइट बोलकर प्यार भी करते हैं। यहां तक कि आधी रात में बच्चों की भूख और डायपर बदलने जैसी चीजों का भी ख्याल रखते हैं। लेकिन फिर भी हम तरह के’भूत’ हैं। मेरे होने के बाद भी बच्चों के जीवन में मेरी कमी है, क्योंकि उनके बर्थ सर्टिफिकेट पर मेरा नाम नहीं है। कानूनी तौर पर हमारा कोई संबंध नहीं है।
मेहरोत्रा और आनंद उन चार याचिकाकर्ता कपल्स में से एक हैं, जिन्होंने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। वे कहते हैं, ‘अगर 17 साल का प्यार शादी करने के लिए काफी नहीं है, तो कम से कम माता-पिता होना तो इसकी पर्याप्त कारण होना चाहिए।’ मेहरोत्रा पब्लिकेशन इंडस्ट्री में काम करते हैं। वो स्कूल में एक बिजनेसमैन आनंद से मिले और दोनों गहरे दोस्त बन गए। आनंद अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए बाहर भी रहे। वहीं मेहरोत्रा यहीं रहे। पिछले एक दशक में उनके जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए, जिसमें अलग-अलग देशों के कॉलेजों में पढ़ना और लंबे वक्त तक लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप में रहना शामिल है।
मेहरोत्रा कहते हैं कि कई महीनों की बहस और चर्चा के बाद उन्होंने कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का फैसला लिया। उन्होंने कहा कि आनंद बहादुर है, वो हमेशा इस मामले में अलर्ट रहता है और दोनों कोर्ट जाने के फैसले पर एकमत थे। दोनों जानते हैं कि कानून लड़ाई एक लंबी प्रक्रिया हो सकती है। वो कहते हैं कि इस बात को मैं विरोध के नजरिए से नहीं देखता हूं। मैं एक सामान्य नागरिक की तरह अपनी बात रख रहा हूं। हमसे पहले के लोगों को इससे भी ज्यादा परेशानी और कठिन वक्त से गुजरना पड़ा होगा।