नई दिल्ली: देश की राजधानी दिल्ली में इन दिनों कई लोग जुकाम-बुखार यानी इनफ्लूएंजा को झेल रहे हैं। लोगों में बढ़ रहे इनफ्लुएंजा मामलों का कोरोना से कनेक्शन सामने आया है। डॉक्टर्स का कहना है कि ये कोविड के बाद बदली एंटीबॉडीज और वैक्सीन को न अपनाने का असर हो सकता है। डॉक्टर्स ने फ्लू के इलाज के लिए एंटीबायोटिक दवाओं के अंधाधुंध इस्तेमाल और बिना परामर्श के दवा लेने के प्रति अलर्ट किया है।
पीएसआरआई इंस्टीट्यूट ऑफ पल्मोनरी, क्रिटिकल केयर एंड स्लीप मेडिसिन के चेयरमैन डॉ जीसी खिलनानी ने कहा, ‘बेशक पिछले दो महीनों में इनफ्लुएंजा के मामलों में तेजी से इजाफा हुआ है। ये कोरोना काल से पहले के मामलों की तुलना में काफी ज्यादा है।’ उन्होंने बुखार, खांसी, आवाज की कमी और सांस की तकलीफ से पीड़ित मरीजों के बारे में बताते हुए कहा कि घरघराहट के साथ या बिना घरघराहट वाली खांसी इन्फ्लुएंजा का लक्षण थी। इस तरह के मामलों का टेस्ट करने पर अक्सर इन्फ्लुएंजा ए वायरस (H3N2) संक्रमण की पुष्टि होती है।
भारत के साथ-साथ दुनिया के अन्य देशों में भी H3N2 संक्रमण के मामले दर्ज किए जा रहे हैं। अमेरिका में हाल ही में हुई एक स्टडी में पता चला है कि महामारी से पहले इनफ्लूएंजा के सीजन में 20.1 फीसदी परिवार इनफ्लूएंजा-ए से संक्रमित थे। ये डेटा 2021-22 में बढ़कर 50 फीसदी हो गया। अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन के जर्नल में पब्लिश स्टडी में कोरोना महामारी के बाद की अवधि में तेजी से फैलते फ्लू की स्टडी की गई है।
इस बारे में बात करते हुए फोर्टिस एस्कॉर्ट्स के कंसल्टेंट, इंटरनल मेडिसिन, डॉ. प्रदीप कवात्रा ने कहा, ‘कोविड के दौर में हर कोई मास्क का इस्तेमाल कर रहा था, इसलिए उस समय लोग इन्फ्लूएंजा या रेस्पिरेटरी सिंकिटियल वायरस के संपर्क में बहुत कम आए थे। इससे इन वायरस के खिलाफ शरीर में एंटीबॉडीज कम हो गई और अब मास्क के चले जाने से संक्रमण बढ़ गया है।’ हालांकि लोगों में कोरोना वायरस के खिलाफ एंटीबॉडीज मौजूद हैं, लेकिन अन्य वायरल के खिलाफ ये कम हो गई है। फ्लू के टीके भारत जैसे विकासशील देशों में बहुत लोकप्रिय नहीं हैं, लेकिन ये डायबिटीज, ब्लडप्रेशर, अस्थमा और सीओपीडी जैसी कॉमोरबिड स्थितियों वाले लोगों के लिए फायदेमंद हैं।
मैक्स हेल्थकेयर के ग्रुप मेडिकल डायरेक्टर और इंस्टीट्यूट ऑप इंटरनल मेडिसिन के सीनियर डायरेक्टर डॉ. संदीप बुधिराजा का कहना है कि इन्फ्लूएंजा से बचाव के लिए हर साल वैक्सीनेशन होना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘हम इन्फ्लूएंजा के मामलों में तेजी से इजाफा देख रहे हैं। इनमें से ज्यादातर केस H3N2 के हैं। कई मरीज कुछ हफ्तों तक लगातार सूखी खांसी की शिकायत कर रहे हैं। खांसी के दौरे इतने गंभीर हो सकते हैं कि ब्लैकआउट का कारण बन सकते हैं। लंग्स और हार्ट के पेशेंट निमोनिया जैसी गंभीर स्थितियों का सामना कर रहे हैं। इनमें से कई लोगों की स्थिति इतनी गंभीर है कि उन्हें हॉस्पिटल में एडमिट करना पड़ेगा।’
डॉक्टर्स ने चेतावनी दी थी कि फ्लू सीडीसी पेशेंट के लिए बेहद खतरनाक हो सकता है। डॉ खिलनानी ने कहा, ’75 साल से ज्यादा उम्र के बुजुर्ग और अन्य सीडीसी पेशेंट को कमजोर एंटीबॉडीज की वजह से गंभीर लक्षण हो सकते हैं। ऐसे लोगों को आईसीयू में देखभाल की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘बुजुर्गों की अतिसंवेदनशील आबादी और इम्युनोकॉम्प्रोमाइज्ड को भीड़-भाड़ वाली जगहों से बचना चाहिए और समय पर फ्लू का टीका लगवाना चाहिए।’
डॉ. खिलनानी ने आगे कहा, ‘लोग कई बार कोर्स से ज्यादा एंटीबायोटिक्स ले रहे हैं। मेरे हिसाब से एजिथ्रोमाइसिन सबसे ज्यादा बार दुरुपयोग किया जाने वाला एंटीबायोटिक है। इन्फ्लूएंजा के उपचार में इसकी कोई भूमिका नहीं है। H3N2 इन्फ्लूएंजा को H1N1 (स्वाइन फ्लू) के साथ कंफ्यूज नहीं होना चाहिए जो एक संभावित घातक संक्रमण है।’ डॉ कवात्रा ने भी इस बात का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि इन्फ्लूएंजा के उपचार में एंटीबायोटिक दवाओं की कोई भूमिका नहीं है और ऐसी दवाएं लेने से केवल एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति रेजिस्टेंस पैदा होगा। उन्होंने कहा कि केवल कॉमोरबिड पेशेंट को एंटीबायोटिक दवाओं की जरूरत होती है।