वॉशिंगटन: जापान से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक दादागिरी दिखा रहे चीनी ड्रैगन को करारा जवाब देने के लिए अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन ने कमर कस ली है। ऑकस डील के तहत ऑस्ट्रेलिया अमेरिका और ब्रिटेन की मदद से 8 सबमरीन खरीदने जा रहा है। इसके लिए ऑस्ट्रेलिया अगले तीन दशक में 368 अरब डॉलर खर्च करने जा रहा है। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रिषि सुनक ने मंगलवार को ऐलान किया कि परमाणु ऊर्जा से चलने वाली ये सभी सबमरीन ऑस्ट्रेलिया के एडिलेड में बनाई जाएंगी। इस डील के बाद ऑस्ट्रेलिया दुनिया का ऐसा सातवां देश बन जाएगा जो परमाणु पनडुब्बियां संचालित करता है। आइए जानते हैं कि ऑस्ट्रेलिया क्यों इस तरह की महाडील करने जा रहा है…
समुद्र में वर्षों तक छिपी रह सकती है पनडुब्बी
चीन ने कहा है कि वह इस परमाणु पनडुब्बी डील का पुरजोर तरीके से विरोध करता है। चीन ने कहा कि ऑकस में शामिल ये तीनों ही देश ‘शीत युद्ध की मानसिकता’ को बढ़ावा दे रहे हैं जिससे क्षेत्र में खतरा और ज्यादा बढ़ने जा रहा है। वहीं ऑस्ट्रेलिया ने कहा कि उसकी पनडुब्बी परमाणु ऊर्जा से जरूर चलेगी लेकिन इसका मतलब यह नहीं हैं कि वे परमाणु बम लेकर मिशन पर निकलेंगी। सबमरीन या तो डीजल-इलेक्ट्रिक हो या फिर परमाणु ऊर्जा से चलने वाली, इनसे परमाणु हथियारों को लॉन्च किया जा सकता है। हालांकि बाइडन ने सोमवार को जोर देकर कहा था कि ऑस्ट्रेलिया की सबमरीन में कोई भी परमाणु बम नहीं होगा।
ब्रिटेन से ज्यादा घातक होगी ऑस्ट्रेलियाई पनडुब्बी
अमेरिकी पनडुब्बियों में तो इतनी ऊर्जा होती है कि उन्हें वर्षों तक फिर से ऊर्जा भरने की जरूरत नहीं होती है। इन सबमरीन में एक परमाणु रिएक्टर लगा होता है। इसकी वजह से यह पनडुब्बी बहुत लंबे समय तक आसानी से पानी के अंदर छिपी रहती है और पकड़ में नहीं आती है। इस दौरान चालक दल को केवल खाना और पानी की ही जरूरत होगी। यही नहीं प्लान के मुताबिक अमेरिका खासतौर पर ऑस्ट्रेलिया की पनडुब्बियों को ऐसी तकनीक से लैस करने जा रहा है जिससे वे ज्यादा मिसाइलें दाग सकेंगी। इस तरह से अमेरिका ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, जापान की मदद से हिंद महासागर में चीन को चौतरफा घेरने की तैयारी में जुट गया है।