नई दिल्ली: राहुल गांधी ने अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान एक बात बार-बार कहते थे कि वो पुराना राहुल अब मर चुका है। हालांकि, उनकी इस बात भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लोग मजाक बनाते थे। लेकिन लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान राहुल गांधी ने जिस तरह से सत्ता पक्ष के खिलाफ आरोपों की झड़ी लगाई और उनके आरोपों से बीजेपी के सदस्य जिस तरह से तिलमिला रहे थे, वो उनके बदले रूप की तस्दीक तो कर ही रही थी। दिलचस्प ये था कि उनके आरोपों की जद में केवल दो ही शख्स थे। एक पीएम नरेंद्र मोदी और दूसरे गौतम अडानी। राहुल के हमलों से सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सहमी-सहमी और बैकफुट पर दिखी। उनकी रणनीति छितराई नजर आई। दरअसल, जब आप सत्ता पक्ष के सदस्यों की बॉडी लैंग्वेज देखेंगे तो समझ जाएंगे कि राहुल के आरोपों ने उन्हें हिलाकर रख दिया। अपने भाषण के दौरान राहुल ने जो साबित करना चाहते थे उसमें वो बहुत हद तक सफल भी रहे। राहुल ने सदन में तथ्यों के बातें रखी और उसे कोरिलेट कर सीधे-सीधे पीएम मोदी को घेर लिया। खास बात ये भी रही कि अपने भाषण के दौरान राहुल लोगों से कनेक्ट भी कर पा रहे थे। ऐसा पहली बार था कि कांग्रेस के आक्रामक हमले से सत्ता पक्ष का विश्वास डिगा दिख रहा था।
राहुल के हमले से सकपका गए सत्ता पक्ष के नेता
राहुल ने अपने भाषण के दौरान तथ्यों के साथ हमले बोले। अगर आप बॉडी लैंग्वेज की बात करें तो उससे समझ सकते हैं कि कौन किसपर हावी हो रहा था। सत्ता पक्ष में मंत्री अर्जुन मेघवाल, निशिकांत दुबे और रविशंकर प्रसाद बैठे थे। राहुल जैसे-जैसे आरोप लगा रहे थे सत्ता पक्ष के ये नेता रूल बुक की बातें कर रहे थे। प्रसाद तो रूल बुक लेकर महोदय, हुजूर कहते हुए रूल बुक के नियमों का जिक्र करते दिखे। वो कह रहे थे कि राहुल ऐसे आरोप नहीं लगा सकते हैं, अगर ये गंभीर आरोप हैं तो नोटिस देना होगा। ये साफ बताता था कि आप बैकफुट पर हैं। स्पीकर ओम बिरला ने भी अपना धर्म निभाते हुए कभी भी राहुल को टोका नहीं और जो भी नियम के दायरे में था उन्हें बोलने दिया। राहुल ने भी मनोयोग से अपना भाषण पूरा किया।
मोदी, शाह की अनुपस्थिति और वाजपेयी वाला विपक्ष!
राहुल ने लोकसभा में जो तेवर दिखाए वो जोरदार था। राहुल के भाषण के दौरान ऐसा पहली बार लग रहा था कि अटल बिहारी वाजपेयी काल वाला विपक्ष आ गया हो। पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की अनुपस्थिति में बीजेपी बेबस नजर आ रही थी। जो नेता वहां मौजूद थे सत्ता पक्ष में उनमें एक अजीब तरह की बेचैनी दिखी। आम तौर पर होता ये है कि विपक्ष पर ही बीजेपी सत्ता में होने के बावजूद भी हमलावर होती है। आज सीन बदला हुआ था, ये वाजपेयी के काल वाला विपक्ष दिख रहा था। जैसे वाजपेयी कांग्रेस पर हमला करते थे। उसी तरीके से राहुल गांधी और उनके पीछे बैठे कांग्रेस के जो नेता था वे बार-बार सत्ता पक्ष के लिए बेचैनी पैदा कर रहे थे।
बीजेपी राहुल के आरोपों पर छितरा गई
राहुल के भाषण में एक बात तो साबित हुई कि बीजेपी की रणनीति सदन में कमजोर दिखी। न तो बीजेपी की रणनीति आक्रामक थी और न ही उनकी दलील। आम तौर पर बीजेपी ही विपक्षी दलों पर हमलावर रहती रही है। हालांकि, बजट के बाद जैसे ही सारा फोकस अडानी पर आ गया उसके बाद से ही मामले ने अलग रुख ले लिया था। सबसे बड़ा सवाल तो ये है कि अगर अडानी ने कुछ गलत नहीं किया या फिर सरकार ने एयरपोर्ट के ठेके देने में कोई गलती नहीं की तो सरकार ये बातें खुलकर क्यों नहीं कह रही है? ठेका तो उसी कंपनी को मिलता है जो उस क्राइटेरिया पर फिट होती है, सबसे सस्ता, मजबूत और टिकाऊ प्रस्ताव देती है। लेकिन बीजेपी के गले अडानी न तो निगलते बन रहे थे और न उगलते। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बोल चुकी हैं कि अडानी मामले से सरकार का कोई लेना देना नहीं है। तो बीजेपी के सदस्य बच भी रहे थे और हल्का-फुल्का प्रतिरोध भी कर रहे थे। बहरहाल, अब पीएम मोदी के जवाब का भी इंतजार रहेगा।
राहुल ने दिखा दिया वो रूप
राहुल ने अपने भाषण के दौरान दावा किया था कि पुराना राहुल गांधी मर गया है। जाहिर तौर पर उनके भाषण में उसकी झलक भी दिखी। राहुल ने अपने भाषण का पूरा फोकस अडानी पर रखा। जैसे 2019 में उन्होंने राफेल पर रखा था। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद अडानी समूह चर्चा में हैं। अडानी और पीएम मोदी के रिश्तों को लेकर तमाम तरह की चर्चाएं चल रही हैं। इसमें राहुल गांधी ने मसाला लगाया। उन्होंने क्रोनोलॉजी का इस्तेमाल किया। राहुल ने ये बताया कि पीएम कहां गए थे, और उसके बाद अडानी वहां क्यों गए थे। मोदी के साथ अडानी क्यों गए। जब विदेश यात्रा की समाप्ति हुई तो अडानी के लिए उस देश से क्या ठेके मिले। राहुल ने बताया कि मेरे कुछ सवाल भी हैं, जिसका जवाब मोदी को देना चाहिए। जब मोदी जब जवाब देंगे तो उनकी स्टाइल से हम सब वाकिफ हैं, वो कड़क जवाब ही होगा।
अडानी के कॉन्ट्रैक्ट की क्रोनोलॉजी भी समझाई
राहुल ने अपने भाषण के दौरान अडानी को मिले कॉन्ट्रैक्ट की क्रोनोलॉजी भी समझाई। उन्होंने कहा कि पीएम इजरायल गए वहां अडानी जी नजर आए और फिर उनको डिफेंस का कॉन्ट्रैक्ट मिला, जिसका उन्हें कोई अनुभव नहीं है। फिर राहुल ने एयरपोर्ट मैनेजमेंट का जिक्र किया और कहा कि इस कंपनी के पास कभी एयरपोर्ट मैंनेजमेंट का अनुभव नहीं था। राहुल में आज उस नेता की छवि दिखी जो अपने भाषण में कनेक्ट कर पा रहे थे। उन्होंने कहा कि जो उनके सारे सवाल थे वो नहीं पूछ रहे हैं बल्कि यात्रा के दौरान युवाओं ने उनसे ये सवाल पूछे। राहुल ने कहा कि पीएम बांग्लादेश गए उनकी यात्रा में पावर डील हुई, कुछ दिनों बाद अडानी को 1500 मेगावाट पावर डील मिल गई। यहां एक बात आपको बता दूं कि जिस निशिकांत दुबे मंगलवार को सदन में गुस्से में दिखे, अडानी का पावर प्रोजेक्ट झारखंड के गोड्डा जिले में बनकर तैयार है, ये दुबे का संसदीय इलाका भी है।
बजट पर भी मोदी सरकार को लपेट लिया
उन्होंने कहा कि बजट अडानी को ध्यान में रखकर बनाया गया। हालांकि राहुल गांधी की दादी, पिताजी या फिर नाना जवाहर लाल नेहरू के समय में भी उनपर किसी खास कारोबारी को बजट का पेपर दिखाकर पेश करने के आरोप लगते रहे हैं। खैर, ये तो अलग बात हुई। राहुल ने कहा कि इस बार के बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ग्रीन हाइड्रोजन एनर्जी के लिए बजट में 19,800 करोड़ रुपये का प्रावधान किया। ये संयोग ही है कि अडानी पावर ने पिछले साल ही दावा किया था कि वो दुनिया में सबसे बड़ी ग्रीन एनर्जी कंपनी बनेगी। राहुल की बातों में कुछ चीजें सिंक नहीं हो रही थीं। कोई घटना जो आगे हुई थी उसको पीछे बता रहे थे, लेकिन जो तथ्य थे वो अकाट्य तथ्य थे और जो जोड़ने वाले कोरिलेशन था, वो कांग्रेस के समर्थक को जरूर अच्छी लगी होगी।
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