थिंपू: भूटान ने दावा किया है कि उसकी सीमा के अंदर चीन ने कोई गांव नहीं बसाया है। भूटानी प्रधानमंत्री लोटे शेरिंग ने कहा कि चीन के पास भी समान अधिकार है कि वो सीमा विवाद का समाधान खोजे। वहीं, भारत का मानना है कि चीन ने इस इलाके में अवैध रूप से कब्जा किया हुआ है। भूटानी पीएम ने कहा कि सीमा विवाद को हल करना अकेले भूटान पर निर्भर नहीं है। हम तीन हैं। कोई बड़ा या छोटा देश नहीं है। तीन समान देश हैं। ऐसे में प्रत्येक का हिस्सा एक तिहाई का है। अभी तक सैटेलाइट तस्वीरों के आधार पर बताया गया था कि चीन ने भूटान की सीमा के अंदर 10 गांव बसा लिए हैं।
भूटान का बयान भारत के लिए झटका क्यों
सीमा विवाद का समाधान खोजने में चीन की हिस्सेदारी का दावा भारत के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। भारत शुरू से डोकलाम में चीनी घुसपैठ का विरोध करता है। डोकलाम रणनीतिक तौर पर अति संवेदनशील सिलीगुड़ी कॉरिडोर के करीब है। यह भूमिका वह संकरा भाग है, जो भारत के पूर्वोत्तर के राज्यों को शेष देश से अलग करता है। चीन की रणनीति युद्ध के समय सिलीगुड़ी कॉरिडोर को बंद कर भारत का संपर्क पूर्वोत्तर से काटना है। ऐसे में चीन डोकलाम के इलाके में ज्यादा से ज्यादा अंदर घुसने की कोशिश कर रहा है। उसने इस इलाके में कई सड़कें भी बना रखी हैं।
भूटान अब डोकलाम पर समझौता करने को तैयार
भूटान के प्रधानमंत्री अब कह रहे हैं कि हम तैयार हैं। जैसे ही अन्य दोनों पक्ष (भारत और चीन) भी तैयार हों, हम चर्चा कर सकते हैं। यह एक संकेत है कि भूटान, चीन और भारत के बीच विवादित क्षेत्र डोकलाम पर बातचीत करने के लिए थिंपू तैयार है। भूटानी पीएम का यह बयान 2019 में उनके बयान के ठीक उलट है, जिसमें उन्होंने कहा था कि किसी भी पक्ष को तीनों देशों के मौजूदा ट्राइजंक्शन पाइंट के पास एकतरफा कुछ भी नहीं करना चाहिए। दशकों से वह ट्राइजंक्शन पाइंट दुनिया के नक्शे में बटांग ला नाम के स्थान पर स्थित है। चीन की चुम्बी घाटी बटांग ला के उत्तर में है। भूटान दक्षिण और पूर्व में और भारत पश्चिम में स्थित है।
डोकलाम भारत के लिए जरूरी क्यों
चीन चाहता है कि ट्राइजंक्शन को बटांग ला से लगभग 7 किलोमीटर दक्षिण में माउंट जिपमोची नाम की चोटी पर स्थानांतरित किया जाए। अगर ऐसा होता है तो पूरा डोकलाम पठार कानूनी रूप से चीन का हिस्सा बन जाएगा, जो भारत को स्वीकार्य नहीं है। 2017 में भारतीय और चीनी सैनिक दो महीनों तक इस इलाके में आमने सामने थे। तब भारतीय सैनिकों ने डोकलाम पठार में चीन को एक सड़क बनाने से रोक दिया था। यह सड़क अवैध रूप से माउंट गिपमोची को एक झम्फेरी नाम की चोटी से जोड़ता था। भारतीय सेना का स्पष्ट मानना है कि चीनी सेना को झम्फेरी पर चढ़ने की अनुमति नहीं दी सा सकती है, क्योंकि इससे उन्हें सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर नजर रखने में सहायता मिलेगी।
भारती सेना बताई थी डोकलाम की अहमियत
2017 में डोकलाम संकट के समय पूर्वी सेना के तत्कालीन कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल प्रवीण बख्शी ने कहा था कि ट्राइजंक्शन के स्थान को दक्षिण में ट्रांसफर करने के लिए चीन का कोई भी प्रयास भारतीय सशस्त्र बलों के लिए अस्वीकार्य होगा। यथास्थिति में एकतरफा तरीके से व्यवधान डालने का चीनी प्रयास एक प्रमुख सुरक्षा चिंता है। इसका भारत की सुरक्षा पर स्पष्ट प्रभाव पड़ने वाला है। 2017 के बाद से जब चीनी डोकलाम में फेस-ऑफ साइट से पीछे हटने के लिए सहमत हुए, तो उन्होंने अमो चू नदी घाटी के साथ भूटानी क्षेत्र में घुसपैठ की थी। यह जगह डोकलाम के नजदीक और सीधे पूर्व में है। यहां चीन ने कई गांवों का निर्माण किया है। उन्होंने इस क्षेत्र को जोड़ने के लिए एक सड़क भी बनाई है, जो शुरू से ही भूटान का हिस्सा रहा है।
क्या भूटान ने अपनी जमीन चीन को सौंप दी?
अब ऐसे संकेत हैं कि भूटान को उस क्षेत्र को चीन को सौंपने के लिए मजबूर किया गया हो सकता है। भूटानी प्रधानमंत्री लोटे त्शेरिंग ने कहा है कि भूटान में चीनी गांवों के निर्माण के बारे में मीडिया में बहुत सी जानकारियां प्रसारित हो रही हैं। हम उनके बारे में बड़ा दावा नहीं कर रहे, क्योंकि वे भूटान में नहीं हैं। हमने इसे स्पष्ट रूप से कहा है कि कोई घुसपैठ नहीं हुई है। यह एख अंतरराष्ट्रीय सीमा है और हम जानते हैं कि वास्तव में हमारा क्या है।