आपसी खींचतान, कलह, गुटबाजी और असंतोष ने हाल के वर्षों में कांग्रेस की नाक में दम कर रखा है। अभी कांग्रेस अपने 85वें पूर्ण अधिवेशन की तैयारियों में जुटी है। अधिवेशन से पहले AICC डेलिगेट्स की लिस्ट को लेकर जिस तरह का घमासान दिख रहा है, उसके मद्देनजर सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या इसमें कांग्रेस चुनौतियों से निपटने की कोई राह निकाल पाएगी या उसकी मुसीबतें और बढ़ने जा रही हैं। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में 24 से 26 फरवरी के बीच होने जा रहे इस अधिवेशन को ‘हाथ से जोड़ो हाथ’ नाम दिया गया है। अधिवेशन में जहां कांग्रेस के नव-निर्वाचित अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की नियुक्ति पर मुहर लगेगी, वहीं कांग्रेस की सर्वोच्च नीति निर्धारक इकाई- कांग्रेस वर्किंग कमिटी (CWC) का भी गठन होगा। यह अधिवेशन इसलिए भी अहम होने जा रहा है, क्योंकि 26 साल बाद इसमें CWC के चुनाव होने की प्रबल संभावना जताई जा रही है। ऐसे में अधिवेशन का पूरा फोकस CWC चुनावों पर ही होने जा रहा है। हालांकि वर्किंग कमिटी को लेकर फिलहाल पार्टी में दो राय है। एक खेमा चुनाव के पक्ष में है तो दूसरा उस परंपरा को जारी रखने के पक्ष में, जिसके तहत पार्टी अध्यक्ष अपनी टीम खुद चुनते रहे हैं।
कांग्रेस अधिवेशन के लिए रायपुर में एक अस्थायी गांव बसाया जा रहा है। इसे राज्य के एक मशहूर स्वतंत्रता सेनानी के नाम पर ‘शहीद वीर नारायण सिंह नगर’ कहा गया है। अधिवेशन में तकरीबन 15,000 कांग्रेस प्रतिनिधियों को शामिल होने के लिए बुलाया गया है। इसमें पहले दिन कांग्रेस की संचालन समिति की बैठक होगी, जहां फैसला लिया जाएगा कि CWC के चुनाव हों या नहीं। इसी बैठक में आगामी अधिवेशन का अजेंडा भी तय होगा। आखिर में एक बड़ी रैली के आयोजन की भी योजना है। अधिवेशन में छह विषयों पर सब-ग्रुप बनाए गए हैं, जिन पर आपस में चर्चा कर पार्टी अपनी आगामी रणनीति को अंतिम रूप देगी। इन छह विषयों में राजनीतिक, अंतराष्ट्रीय मामले, आर्थिक, सामाजिक न्याय, किसान, युवा, शिक्षा और रोजगार शामिल हैं। इनके साथ ही पार्टी संविधान को लेकर भी मंथन होगा। बता दें कि 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के अलावा अभी छह राज्यों में भी चुनाव होने हैं। इनमें राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना जैसे राज्य कांग्रेस के लिहाज से बेहद अहम हैं। तेलंगाना को छोड़ बाकी सभी राज्यों में कांग्रेस की सीधी बीजेपी से टक्कर है।
अधिवेशन से पहले कांग्रेस के ही अंदर कई सवाल
कांग्रेस का यह अधिवेशन भले ही तमाम उम्मीदों और संभावनाओं के बीच हो रहा हो, लेकिन इसे लेकर खुद पार्टी के भीतर कई सवाल हैं, जो उसकी चुनौतियां बढ़ाते हैं। सबसे अहम सवाल कि क्या CWC के लिए चुनाव होगा या मल्लिकार्जुन खरगे अपनी टीम खुद चुनेंगे? 26 साल पहले CWC चुनाव 1997 में सीताराम केसरी की अध्यक्षता में कोलकाता अधिवेशन में हुआ था। उससे पहले CWC चुनाव 1992 में पीवी नरसिम्हा राव की अध्यक्षता में तिरुपति अधिवेशन में हुआ था। यह और बात है कि दोनों ही चुनावों में काफी खींचतान और घमासान देखने को मिला था। दरअसल, पिछले कुछ दशकों में CWC चुनावों की नौबत तभी आई, जब कांग्रेस की अध्यक्षता गांधी परिवार से बाहर के किसी शख्स के पास रही। रोचक है कि इन दिनों भी कांग्रेस की कमान गांधी परिवार के बाहर के व्यक्ति के हाथों में है। CWC में कुल 25 सदस्य होते हैं, जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष और कांग्रेस संसदीय दल के नेता की जगह तय है। संसदीय दल की नेता होने के नाते इस लिहाज से सोनिया गांधी को खुद-ब-खुद जगह मिलेगी। बचे हुए 23 सदस्यों में से 12 का फैसला चुनाव से होगा और 11 का मनोनयन अध्यक्ष करेंगे।
अगर चुनाव होते हैं तो लगभग 1300 AICC डेलिगेट्स इस चुनाव में वोट डालेंगे। पूर्व पीएम मनमोहन सिंह और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को मनोनीत किया जाएगा। ऐसे में सवाल उठता है कि प्रियंका गांधी क्या चुनाव लड़कर पहुंचेंगी या फिर उनके लिए मनोनयन की राह निकलेगी? चुनाव पर भी सवाल बना ही हुआ है। राहुल गांधी से लेकर पी चिदंबरम तक CWC चुनाव के पक्ष में हैं। जी-23 भी CWC चुनाव की मांग कर चुका है। लेकिन दूसरी तरफ एक धड़ा इसकी लगातार मुखालफत कर रहा है। यह देखना भी अहम होगा कि क्या पार्टी रायपुर की कवायद में उदयपुर के चिंतन शिविर से निकले संदेशों को आगे बढ़ाने की पहल करेगी, खासकर CWC से लेकर बाकी दूसरी जगह युवाओं, दलितों और महिलाओं को समुचित भागीदारी देने की? और क्या पार्टी ‘एक व्यक्ति-एक पद’ और किसी भी पद पर पांच साल के सिद्धांत पर अमल करने का संकेत देगी? इन सबके बीच देखना होगा कि आगामी अधिवेशन क्या वाकई अपनी परंपरा के अनुसार कांग्रेस को उसका भावी रोडमैप देने में सफल होता है या महज खानापूर्ति बनकर रह जाता है।