नई दिल्ली : इतिहास बताता है कि बजट से पहले कारोबार थोड़ा दब जाता है। एक आकलन के मुताबिक, बजट के एक महीने पहले जो औसत गिरावट आती है, वो एक फीसदी की है। 2003 के बाद से ये बात देखी जा रही है। ठीक बजट के दिन की बात करें तो पिछले 10 साल में Sensex और Nifty पांच बार गिरे। बाकी समय वे चढ़कर बंद हुए। बाजार के नजरिये से 2020 में बड़ा उतार-चढ़ाव रहा। तब बजट के दिन शेयर बाजार में 11 बरसों की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई थी। उसके तुरंत बाद कोरोना संकट के कारण बाजार में बड़ी गिरावट आई थी। ये इतनी जबरदस्त रही कि Sensex 23 मार्च, 2020 को 25,981 पर आ गया था। लेकिन हालात बड़ी तेजी से बदले। उसके बाद से अभी तीन साल भी पूरे नहीं हुए और आज Sensex 60 हजार से ऊपर है।
बाजार के लिए पॉजिटिव रहे पिछले 2 बजट
पिछले दो बजट को देखें तो शेयर बाजार के लिए ये काफी पॉजिटिव रहे। इसकी वजह ये है कि सरकार के उपायों की वजह से इकॉनमी को सहारा मिला, जो कोरोना की मार से बदहाल हो गई थी। बजट से पहले हो सकता है कि बाजार में उतार-चढ़ाव बना रहे। जानकार कहते हैं कि किसी भी तरह का पैनिक घाटा पहुंचा सकता है। गलत फैसला लेकर अगर कोई स्टॉक बेचते हैं तो नुकसान काफी ज्यादा हो सकता है।
बजट से क्या चाहते हैं निवेशक?
शेयर बाजार से जुड़े लोगों की कई और डिमांड भी सामने आ रही हैं। ये तबका चाहता है कि सरकार अपना खर्च बढ़ाए। इससे प्राइवेट सेक्टर को भी फायदा होगा और इकॉनमी में डिमांड बढ़ेगी। खास तौर से इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च बढ़ाने से बड़ा फर्क आएगा। इसके साथ ही सरकार अपनी आमदनी और खर्चे के अंतर को जल्दी से जल्दी पाटे। टैक्स सिस्टम में भी कोई बड़ा बदलाव न हो। अगर बजट में किसी तरह की इनकम टैक्स छूट दी जाती है तो इससे महंगाई बढ़ने का खतरा है। महंगाई अगर तेज हुई तो इससे शेयर बाजार के सेंटिमेंट पर असर पड़ सकता है।
टैक्स में मिले राहत
टैक्स की बात चली है तो शेयर बाजार में निवेश करने वाले सबसे ज्यादा परेशान दिखते हैं कैपिटल गेंस टैक्स से। उनकी शिकायत पर गौर कीजिए। आप अक्सर सुनते होंगे फलां शेयर ने निवेशकों को पांच साल में 100 फीसदी या इससे भी ज्यादा रिटर्न दिया है। लेकिन क्या आपको पता है कि शेयर ने जो एक्चुअल रिटर्न दिया है, वह पूरा नहीं मिलता है। उस पर टैक्स लग सकता है। 2018 के बजट में लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स को बहाल किया गया था। इक्विटी यानी शेयरों की बिक्री से होने वाले मुनाफे पर टैक्स नहीं लगता था। कैपिटल गेन्स टैक्स दो तरह के होते हैं- शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म। कौन सा टैक्स लगेगा, यह शेयरों के होल्डिंग पीरियड के अनुसार तय किया जाता है। किसी भी शेयर को 12 महीने से ज्यादा होल्ड करने पर उससे होने वाली आय लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स के तहत आती है यानी वह टैक्सेबल है। इस पर बजट में राहत की उम्मीद की जा रही है।
इन चुनौतियों के लिए रहें तैयार
बजट से पहले निवेशक खुद को कई चुनौतियों के लिए तैयार कर रहे हैं। सरकारी आंकड़े बता रहे हैं कि खुदरा बाजार में महंगाई कम हुई है। औद्योगिक उत्पादन के इंडेक्स में तेजी आई है। विकास दर भी दुनिया के कई बड़े देशों के मुकाबले बेहतर है। पिछले साल भारत के शेयर बाजारों ने ज्यादातर एशियाई और उभरते बाजारों को मात दे दी थी। भारत आज दुनिया के टॉप इन्वेस्टमेंट डेस्टिनेशन के तौर पर देखा जा रहा है। लेकिन अगले एक महीने में कई चुनौतियां हैं।
विदेशी निवेशकों की बिकवाली डरा रही
विकास की गति अपनी ऊंचाई से नीचे उतरती दिख रही है। विदेशी निवेशकों की बिकवाली कई बार उभरने लगती है, जो घरेलू निवेशकों पर भारी पड़ सकती है। चीन ने कोरोना की बंदिशों को कम करने का फैसला किया है। इससे वहां पूंजी उमड़ सकती है। वहां के शेयरों की वैल्यूएशन बहुत कम मानी जा रही है। चीन का बेंचमार्क इंडेक्स शुक्रवार को चार महीने में अपने टॉप लेवल पर बंद हुआ। उन्हें उम्मीद है कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था महामारी के बाद मजबूत रिकवरी करेगी।