बेंगलुरु: कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। कांग्रेस किसे मुख्यमंत्री बनाएगी, इसपर मंथन चल रहा है- डीके शिवकुमार को गद्दी मिलेगी या सिद्धारमैया को। सिद्धारमैया कुरुबा जाति से आते हैं जबकि डीके शिवकुमार वोक्कालिगा हैं। डीके के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने वोक्कालिगा जाति के वोट को जेडीएस से कांग्रेस में ट्रांसफर कराया। तमाम तरह की थ्योरी हमारे और आपके सामने आ रही है कि कांग्रेस की जीत के कारण क्या रहे और बीजेपी की हार के कारण क्या रहे। लेकिन हमारे समाज में सबसे बड़ा सत्य यह है कि अगर आपने जातियों को साध लिया तो आपके लिए जीत आसान हो जाएगी। उस मायने को समझने के लिए आपको बता रहे हैं कि कैसे कांग्रेस ने देवराज के अहिंदा समीकरण को अपनाया, जिसका नतीजा हमने कर्नाटक चुनाव के रिजल्ट के दिन देखा।
कांग्रेस ने 46 लिंगायत कैंडिडेट कर्नाटक चुनाव में उतारे, जिनमें से 37 ने जीत दर्ज की। बीजेपी ने 69 लिंगायत कैंडिडेट उतारे जिनमें से सिर्फ 15 को जीत मिल पाई। अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित 15 सीटों मे बीजेपी एक भी नहीं जीत पाई जबकि इन सीटों पर 2018 के चुनाव में बंपर जीत मिली थी। दूसरी तरफ 36 अनुसूचित जातियों के लिए जो रिजर्व सीट हैं, उसमें से 24 पर बीजेपी को हार मिली।
आइए जरा समझते हैं कि अहिंदा और देवराज उर्स का समीकरण क्या था। ये दो फॉर्म्यूलों ने 1972 से 1977 के बीच कांग्रेस को कर्नाटक में स्थापित किया। हालांकि इसके बाद वीरेंद्र पाटिल ने लिंगायत पर फोकस करके 178 सीटें 1989 के चुनावों में हासिल की थी। लेकिन इस बार की जीत देवराज उर्स के समीकरण की जीत है।
1965 के चुनाव में ‘पिछड़ा पावे 100 में 60’ का नारा लगा था। नारा बुलंद किया था राम मनोहर लोहिया ने जबकि भुनाया उनके चेलों ने। जब चेले रास्ता भटक गए तो बीजेपी ने फायदा उठाया। चाय बेचने वाले नरेंद्र मोदी ने बीजेपी पर ओबीसी की ऐसी छाप छोड़ी कि उनकी पार्टी लोकसभा चुनाव में 300 के पार चली गई और कांग्रेस 50 सीटों पर सिमट गई। उसके बाद एक-एक करके हिंदी पट्टी के राज्यों में भी बीजेपी छा गई। अब बीजेपी से लड़ने के लिए बिहार से लेकर कर्नाटक तक विरोधी पार्टियां ओबीसी पर अपनी रणनीति बदल रही है। बिहार में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की परीक्षा अगले साल लोकसभा चुनाव में होगी। उससे पहले कर्नाटक में ओबीसी फैक्टर ने कर्नाटक में जनादेश तय कर दिया है। जो राम मनोहर लाहिया इंदिरा गांधी और कांग्रेस के खिलाफ ओबीसी की गोलबंदी करते रहे, वही कांग्रेस उन्हीं के हथियार से कर्नाटक में बीजेपी को मात देकर साबित कर दिया कि यह इस नीति से करिश्मा दिखाया जा सकता है।
लोहिया के समकालीन नेता रहे देवराज उर्स। कांग्रेसी होने के बावजूद उर्स लोहिया से बेहद प्रभावित थे। देवराज उर्स कर्नाटक में ओबीसी पॉलिटिक्स के प्रणेता बने। देखते ही देखते देशभर में उनकी गिनती पिछड़ा वर्ग के बड़े नेताओं में होने लगी। उनकी छवि एक समाज सुधारक, एक चिंतक और एक क्रांतिकारी नेता की थी। कर्नाटक चुनाव में देवराज उर्स की रणनीति से ही प्रियंका गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे बीजेपी को बाहर करने की रणनीति पर काम किया।
देवराज उर्स ने AHINDA का फॉर्म्युला दिया। एक ऐसा सामाजिक समीकरण जो सत्ता की सीढ़ी बन गया। यहां AHINDA का मतलब- अल्पसंख्यक, पिछड़ा वर्ग और दलित वर्ग। लगातार 28 साल चुनाव जीतने वाले देवराज उर्स ने उस दौर में सरकार बनाई जब कई राज्यों में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने कांग्रेस को बेदखल कर दिया था। उर्स जैसे ही कांग्रेस से अलग हुए, बीजेपी और जनता दल ने कर्नाटक को हथिया लिया। इस वक्त में एसएम कृष्णा लगभग पांच साल के लिए कर्नाटक के सीएम रहे। जब से बीजेपी ने दक्षिण जाने का द्वार कर्नाटक से खोला, तब से अपने बूते कांग्रेस अपनी सरकार नहीं बना पाई।
इस वजह से कांग्रेस को जनता दल का सहारा लेना पड़ा। इस बार कांग्रेस को मालूम था कि वोक्कालिगा समुदाय जेडीएस को वोट करता है। इसी वजह से AHINDA फॉर्यूला काम आया। इधर लिंगायत समुदाय से आने वाले बीएस येदियुरप्पा के चलते लिंगायत वोटरों के गढ़ पर दबदबा रखने वाली बीजेपी ने AHINDA का मुकाबला HIND से करने की कोशिश, जिसमें सफलता नहीं मिली। बीजेपी के महासचिव सीटी रवि ने हिंद के बारे में समझाया- H का मतलब हिंदुत्व, N का मतलब नेशनललिज्म और D का मतलब डेवलपमेंट।
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