हमीरपुर ब्यूरो :–
मौदहा कस्बे की बड़ी देवी मंदिर प्रांगण में चल रही नौ दिवसीय रामकथा के सातवें दिन काशी धर्मपीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नारायणानंद तीर्थ महाराज ने बताया कि ब्रह्मर्षि विश्वामित्र यज्ञ रक्षणार्थ श्रीराम व लक्ष्मण को लेकर जब वन से प्रस्थान कर रहे थे तब मार्ग में ताड़का राक्षसी मिल गयी। जिसका वध श्रीराम ने किया, क्योंकि ताड़का अविद्या की मूर्ति है। जब तक अविद्या का संघार नहीं होता है और अविद्या का संघार चाहे ईश्वरीय ज्ञान से हो,चाहे शास्त्रीय ज्ञान से हो, चाहे महापुरुषों के उपदेश से हो तब तक धर्म और विश्व मानवता की रक्षा नहीं हो सकती है। विश्व व मानवता की रक्षा में हमेशा आतंकवाद व नक्सलवाद खतरा होता है। विश्व व मानवता की रक्षा के लिए इनका संघार जरूरी होता है।
पूज्य शंकराचार्य जी ने बताया कि जो लोग धर्म का संकीर्ण अर्थ करते हैं वह सेवा नहीं करते। धर्म बहुत व्यापक वस्तु है। जैसे अग्नि की जो दाहकता है वही उसका धर्म है और जल में जो आप्यायन शक्ति है तर कर देने की शक्ति है वही उसका धर्म है। अर्थात वस्तु में उसके वस्तुत्व की रक्षा करने वाला धर्म होता है क्योंकि उस वस्तु की रक्षा उसके धर्म के बगैर नहीं हो सकती। हममें और आपमें धर्म नामक वस्तु नहीं रहेगी तो हम और आप सुरक्षित नहीं रह पायेगें, मनुष्यता व मानवता सुरक्षित नहीं रह पाएगी। इसलिए सम्पूर्ण विश्व सृष्टि में एक धर्म है जिसका नाम है सनातन धर्म। किसी देश में एक काल में एक धर्म पैदा नहीं होता है। जो व्यक्ति मूलक धर्म होता है, परम्परा मूलक धर्म होता है और जो भूगोल मूलक धर्म होता है वो आपस में विषमता पैदा करती है। आज दुनिया के जितने साम्प्रदायिक धर्म हैं वो लड़ाई के केंद्र बिंदु बने हुए हैं। परन्तु सनातन धर्म सब जातियों में एक है, सब सम्प्रदायों में एक है, सब कालों में एक है वही धर्म का मूल है।