इस्लामाबाद: सन् 1947 में भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद अंग्रेजी शासन से आजादी मिली। दोनों देशों को आजाद हुए 76 साल हो चुके हैं। मगर जहां एक देश तरक्की के रास्ते पर है तो दूसरा बर्बादी की तरफ है। जियो पॉलिटिक की एक रिपोर्ट की मानें तो सन् 1947 में गठन के बाद से पाकिस्तान में अब सबसे खराब आर्थिक संकट की शुरुआत हो चुकी है। जियो-पॉलिटिक की रिपोर्ट में देश के सैन्य शासन और सरकार को लेकर भी कई और गंभीर बातें कही गई हैं। जियो न्यूज की तरफ से बताया गया है कि आईएमएफ ने हाल ही में पाकिस्तान के साथ कड़ी वार्ता की है। अगर पाकिस्तान और आईएमएफ नौ फरवरी को किसी सहमति पर पहुंच जाते हैं तो फिर एक स्टाफ लेवल एग्रीमेंट साइन होगा।
इसकी रिपोर्ट में कहा गया है कि देश अब तक अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (IMF) से 14 बार कर्ज ले चुका है लेकिन कोई भी लोन कभी पूरा नहीं हो सका है। इस वजह से पाकिस्तान की क्षमता और उसकी काबिलियत पर भी सवाल उठने लगे हैं कि यह कैसे इस स्थिति से बाहर आएगा जबकि कोई रास्ता ही नहीं बचा है। इसमें लिखा है कि पाकिस्तान एक ऐसे संकट का सामना कर सकता है जिसके बारे में उसने कभी सोचा नहीं होगा। इससे पहले चीन और सऊदी अरब को उसकी मदद करनी पड़ेगा। पाकिस्तान रुपया डॉलर के मुकाबले 250 पर पहुंच गया है। स्थिति में सुधार के लिए रुपए को 12 फीसदी तक बेहतर करना होगा। देश की सरकार ने पेट्रोल और डीजल भी 35 रुपए महंगा कर दिया है।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने 24 जनवरी को कहा था कि सत्ताधारी गठबंधन सरकार देश के लिए अपने राजनीतिक करियर को भी कुर्बान करने के लिए तैयार है। शरीफ ने यह भी कहा कि हालात बेहतर करने के लिए आईएमएफ की कड़ी शर्तों को भी माना जाएगा ताकि कर्ज हासिल हो सके। जियो-पॉलिटक की मानें तो आईएमएफ के अधिकारियों ने वीडियो लिंक के जरिए पाकिस्तान के साथ वार्ता की है। इस रिपोर्ट में इस तरफ इशारा मिलता है कि आईएमएफ ने कर्ज के लिए जरूरी शर्तों को नरम करने की तरफ कोई इच्छा नहीं जताई है। आईएमएफ तब तक कर्ज नहीं जारी करेगा जब तक कि पाकिस्तान की सरकार अपने वादों को पूरा नहीं करती।
पाकिस्तान अगर शर्तों को मानता है तो फिर 1.2 बिलियन डॉलर की रकम हासिल कर सकता है। इसके अलावा उसे सऊदी अरब, यूएई, चीन और दूसरे अंतरराष्ट्रीय लेनदारों से उसे अतिरिक्त फंड हासिल हो सकता है। जियो-पॉलिटिक के मुताबिक पाकिस्तान के लिए चुनौती यह है कि उसका इतिहास आईएमएफ की शर्तों को पूरा करने में काफी शर्मनाक रहा है। उसके सामने अभी जो आर्थिक चुनौतियां हैं, वो पिछले तीन सालों से जारी हैं। साल 2020 में आईएमएफ ने बेलआउट पैकेज को सस्पेंड कर दिया था। इसके बाद जून 2022 में फिर आईएमएफ ने उसे कर्ज देने से मना किया। फिर 2022 में ही जब विनाशकारी बाढ़ आई तो बुरे प्रबंधन की वजह से आर्थिक संकट और गहरा गया।