अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस को अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस, अंतरराष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक दिवस, विश्व प्रौढ़ दिवस, अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस भी कह सकते हैं। यह प्रतिवर्ष 1 अक्टूबर को मनाया जाता है। देश में बुजुर्गों की आबादी साल 1961 से लगातार बढ़ रही है। 1991 में 60 वर्ष से अधिक आयु के 5 करोड़ 60 लाख व्यक्ति थे, जो 2007 में बढ़कर 8 करोड़ 40 लाख हो गए। आंकड़ों के मुताबिक साल 2021 में बुजुर्गों की संख्या 13.8 करोड़ पर पहुंच गयी है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) की एक स्टडी में ये आंकड़े सामने आए हैं।
कब से और क्यों मनाया जाता है : संयुक्त राष्ट्र ने विश्व में वृद्धों के प्रति हो रहे दुर्व्यवहार और अन्याय के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए 14 दिसम्बर, 1990 को यह निर्णय लिया कि हर साल ‘1 अक्टूबर’ को ‘अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस’ के रूप में मनाया जाए। इस दिवस के माध्यम से बुजुर्गों को सम्मान और अधिकार दिलाने का प्रयास किया जाएगा। इसके बाद 1 अक्टूबर, 1991 को पहली बार ‘अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस’ मनाया गया। तभी से यह क्रम जारी है।
1. संयुक्त परिवार की भावना के बिखराव के बाद विश्व में बुजुर्गों की हालत बहुत ही दयनीय हो चली है।
2. करोड़ों बजुर्गों को कई कारणों से आज अकेला रहना पड़ रहा है।
3. लोगों की अपने बुजुर्गों के प्रति यह मानसिकता बन गई है कि इनका बोझ ढोना निप्रयोजन ही है।
4. आज की युवा पीढ़ी अपने में ही व्यस्त है। वह अपने बुजुर्गों से कुछ भी सीखना नहीं चाहती है और न ही उनसे किसी भी प्रकार का संवाद रखना चाहती है।
5. युवा पीढ़ी यह नहीं समझती है कि एक दिन वे भी बुजुर्ग हो जाएंगे तब उनके व्यवहार को देखकर उनके बच्चे भी उनकी अवहेलना ही करेंगे। हम अपने बच्चों को क्या प्रेरणा दे रहे हैं?
6. आज की तथाकथित युवा तथा उच्च शिक्षा प्राप्त पीढ़ी अपने पिता या दादा को बूढ़ा कहकर वृद्धाश्रम में छोड़ देती है या उन्हें वृद्धाश्रम में जाने के लिए मजबूर कर देती हैं, क्योंकि ये तथाकथित युवा पीढ़ी आजादी से जीना चाहती और वह अपनी जिम्मेदारी से भागना चाहती है।
7. आलीशान या कहें या कि अमीर लोगों की पार्टी में आपने कभी बड़े-बुढ़े लोगों को शायद ही देखा होगा क्योंकि लोग अपने बजुर्गों को वहां नहीं ले जाते हैं। इसलिए नहीं ले जाते हैं कि वे उनकी सुंदर लोगों की पार्टी में काले धब्बे की तरह दिखाई देंगे और वहां उनकी इज्जत है। उच्च वर्ग की इसी सोच को मध्यम वर्ग भी फॉलो करता है। यही कारण है कि बूढ़े घर के किसी कोने में अकेले ही पड़े रहते हैं घर की रखवाली के लिए।
8. यदि किसी वृद्ध को अच्छी खासी पेंशन मिल रही है तो उसकी घर में थोड़ी बहुत इज्जत होती है या उस पर ध्यान दिया जाता है। कई घरों में तो बूढ़े लोग अपनी पेंशन का खुद ही उपयोग नहीं कर पाते हैं। पेंशन आते ही पुत्र, पुत्रवधु या पोता उस पर कब्जा कर लेता है। उनके हाथ में कुछ भी नहीं रहता है।
9. वृद्ध होने के बाद इंसान को कई रोगों का सामना करना पड़ता है। चलने फिरने में भी दिक्कत होती है। ऐसे बूढ़ों का जीवन तो और भी भी दुर्भर हो जाता है। वे किसी वृद्धाश्रम, अस्पताल या घर के किसी कोने में अकेले ही जीवन की अंतिम सांसे गिन रहे होते हैं।
10. जिन माता पिता ने बच्चों अपने अथक प्रयासों से पाल पोसकर बड़ा किया और अब वे ही बच्चे अपने माता पिता को छोड़कर कहीं और बसेरा बनाकर रहते हैं। बस मोबाइल और वाट्सएप पर ही उनके हालचाल पूछकर इतिश्री कर लेते हैं। बीमार होने पर उनके लिए नर्स रख देते हैं या किसी अन्य के माध्यम से अस्पताल में भर्ती करके बीमा कंपनी को इनफार्म कर देते हैं।