राज्यपाल मंगुभाई पटेल ने कहा है कि जनजातीय नायकों के स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान की जीवन गाथाओं को घर-घर तक पहुँचाने के प्रयास किए जाएँ। उन्होंने कहा कि जनजातीय वीर-वीरांगनाओं की जीवन गाथाओं से राष्ट्र की बलिवेदी पर हँसते-हँसते प्राणों की आहूति देने की प्रेरणा मिलेगी। स्वराज और स्वाभिमान की रक्षा का साहस और शौर्य उत्पन्न होगा। राष्ट्र निर्माण में अपना प्रखर योगदान देने, पारस्परिक सहयोग और सह-अस्तित्व के साथ जीवन जीने की दिशा का दर्शन होगा।
राज्यपाल पटेल राष्ट्रीय विधि संस्थान विश्वविद्यालय के जे.एस. वर्मा मेमोरियल कन्वेंशन सेंटर में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग और अखिल भारतीय वनवासी आश्रम के सहयोग से हुई संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। संगोष्ठी स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति नायकों के योगदान विषय पर थी। पद्मश्रीमती दुर्गाबाई व्योम भी मौजूद थीं।राज्यपाल पटेल ने राष्ट्रीय जनजाति आयोग की देश के विभिन्न स्थानों पर संगोष्ठी के द्वारा वैचारिक चिंतन को समसामयिक पहल बताते हुए प्रशंसा की। उन्होंने कहा जिस मातृभूमि ने हमारा लालन-पालन किया। हमें समर्थ और सक्षम बनाया। उसके प्रति हमारे कर्त्तव्यों के बोध के लिए जनजातीय नायकों के जीवन की जानकारी दिया जाना सार्थक प्रयास है। इससे वर्तमान पीढ़ी में राष्ट्रीयता की भावना जागृत होगी। मातृभूमि के लिए प्राणों का उत्सर्ग करने की प्रेरणा मिलेगी। उन्होंने कहा कि व्यापारी के रूप में आए अंग्रेजों ने राणा सांगा जैसे योद्धाओं, दूध दही की नदियाँ बहने वाली आर्थिक समृद्धता और तक्षशिला नालंदा जैसे शिक्षा के केंद्रों वाले देश को राष्ट्रीयता की भावना के अभाव और आपसी ईर्ष्या का लाभ उठाते हुए परतंत्रता की बेड़ियाँ पहना दी थी। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अमृत महोत्सव से भूले-बिसरे जन-नायकों के सम्मान के द्वारा राष्ट्र और राष्ट्रीयता के नवजागरण का प्रकल्प प्रारम्भ किया है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जनजाति समाज के उत्थान के प्रयासों से समाज की तस्वीर और तकदीर बदल रही है। राज्यपाल पटेल ने प्रधानमंत्री के नेतृत्व में गुजरात के कार्य अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि जनजातीय कल्याण और विकास की अनेक योजनाएँ सीधे उनके दिल से निकली हैं। वन बंधु योजना का जिक्र करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के गुजरात में मुख्यमंत्री बनने पर पूर्व की अवधि में जनजातीय विकास पर कुल व्यय राशि से करीब चार गुना अधिक राशि मात्र 5 वर्षों में गुजरात में व्यय की गई।