नई दिल्ली: 26 जनवरी 2023 को दिल्ली के कर्तव्य पथ (Republic Day celebrations) पर दुनिया भारत की ताकत देखेगी। जंगी बेड़े में शामिल कई हथियार पहली बार देखने को मिल सकते हैं। इनमें से एक होगी दुश्मन की रूह कंपा देने वाली आसमान की तरफ मुंह करके तैनात मिसाइल। क्या आप जानते हैं कि भारत कब मिसाइल पावर बना? आज हमारे पास ब्रह्मोस, प्रलय, निर्भय से लेकर अग्नि, के-15 जैसी मिसाइले हैं, लेकिन पहली मिसाइल कौन थी। जब देश आजाद हुआ और राजपथ पर भारत की ताकत का प्रदर्शन होने लगा तब हमारे पास कौन सी मिसाइल थी? भारत में मिसाइलों का इतिहास दुनिया में सबसे पुराना है। एक वक्त था जब दुनिया में मिसाइलें सिर्फ भारत की धरती पर हुआ करती थीं। कुछ याद आया? वो अस्त्र थे। आज हमारे पास 5000 किमी तक मार करने वाली मिसाइलें हैं, जो चीन और पाकिस्तान जैसे दुश्मन मुल्कों को तबाह करने की ताकत रखती हैं। हजारों साल पहले भारत के अस्त्र भी कुछ इसी तरह कहर बनकर टूटते थे।
भारत में मिसाइलों का इतिहास
शायद आपने गौर न किया हो, लेकिन रामायण और महाभारत में जिस ‘अस्त्र’ का जिक्र हम पढ़ते हैं वह मिसाइल ही थी। वैदिक काल से भी भारत में मिसाइलों का इस्तेमाल होता रहा है। भारतीय योद्धा तब ‘अस्त्र’ चलाने में पारंगत थे। ये घातक हथियार हुआ करते थे और भारी तबाही ला देते थे। बताते हैं कि आगे चलकर मानवता की रक्षा के लिए इस हथियार की तकनीक को छिपा दिया गया। तब के राजाओं ने सोचा कि इस तरह के विनाशकारी हथियारों से बड़ी संख्या में लोगों की जान जा सकती है और अस्तित्व पर ही खतरा पैदा हो सकता है। इसे एक तरह से ‘अस्त्र’ को भूल जाने या उसे इस्तेमाल न करने का समझौता समझ लीजिए।
तब मंत्रों से चलती थी मिसाइल
अमेरिका और रूस के हथियार एक्सपर्ट शायद इस बात को कभी न समझ पाएं कि तब भारत में इन घातक अस्त्रों को ‘मंत्रों’ से कंट्रोल किया जाता था। आज सॉफ्टवेयर यह काम करता है। सदियां बीतती गईं और अंग्रेजों की हुकूमत आई। उस दौर में भी दुनिया ने पहली बार भारत की धरती पर पहला रॉकेट देखा। टीपू सुल्तान की सेना ने ब्रिटिश फौज के खिलाफ जंग में इसका भरपूर इस्तेमाल किया था। 1792 की वो लड़ाई अंग्रेजों को आज भी याद होगी। वहां म्यूजियम में भी उसकी निशानी रखी गई है। ऐसी ही एक तस्वीर जब पूर्व राष्ट्रपति और मिसाइल मैन एपीजे अब्दुल कलाम ने देखी थी तो वह गौरव महसूस कर रहे थे। टीपू के समय इस्तेमाल होने वाली ‘मिसाइलों’ में बांस या स्टील का इस्तेमाल होता था। गन पाउडर लोहे के चैंबर में भरे जाते थे और फिर फायर होने पर दुश्मन की टुकड़ी साफ समझिए।
हालांकि 20वीं सदी में मिसाइल का पहली बार इस्तेमाल जर्मनी में हुआ। उसने पहली सफल गाइडेड मिसाइलें वी1 और वी2 विकसित की थीं। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कई देशों ने मिसाइल सिस्टम विकसित कर लिया। भारत प्राचीन काल से मिसाइल टेक्नॉलजी का ‘गुरु’ रहा है लेकिन अंग्रेजों का राज आने के बाद संसाधनों के साथ अनुसंधान और क्षमताओं को भारी नुकसान पहुंचा।
पहले अमेरिका समेत पश्चिमी देश नहीं चाहते थे कि भारत मिसाइल पावर बने, लेकिन 1971 में पाकिस्तान के दो टुकड़े करने के बाद दुनिया को भारत की ताकत का एहसास हुआ। आगे परमाणु परीक्षण ने भारत को न्यूक्लियर वेपन स्टेट की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया। आज भारत दुनिया के गिने चुने देशों में से एक है जिनके पास स्वदेशी मिसाइल सिस्टम है।
राजपथ पर पहली बार कब दिखी मिसाइल
पहली बार 1973 में दिल्ली के राजपथ पर सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल दिखी। दरअसल, 1971 की लड़ाई में पाकिस्तान के दो टुकड़े करने के बाद भारत ने इसी साल से शक्ति प्रदर्शन करना शुरू कर दिया था। भारत की मदद से दुनिया के नक्शे पर बांग्लादेश एक नया मुल्क बनकर उभरा था। राजपथ पर तब बांग्लादेशियों पर हुए जुल्म की कहानी भी दिखाई गई थी।
आजादी के समय की बात करें तो मिसाइल डिजाइन और विकास की नींव 1962 में पड़ी। आगे दो वर्षों के दौरान रक्षा और अंतरिक्ष अनुसंधान के संस्थान डिफेंस रिसर्च एंड डिवेलपमेंट लेबोरेट्री और इंडियन कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च अस्तित्व में आए। 1963 में थुंबा रॉकेट स्टेशन से अमेरिका में बना रॉकेट लॉन्च किया गया था। इसके बाद 1975 तक अमेरिका, फ्रांस, सोवियत संघ और ब्रिटिश रॉकेट लॉन्च किए जाते रहे।
अगली बार मिसाइल का जिक्र आए तो भारत के ग्रंथों में वर्णित सुदर्शन, त्रिशूल, वैष्णवास्त्र, नागपाश और ब्रह्मास्त्र जैसे अस्त्रों को याद कर लीजिएगा। यही वजह है कि भारत में जब मिसाइलें बनीं तो उनके नाम भी वैदिक काल से ही लिए गए। ब्रह्मोस, नाग, अग्नि ये नाम वहीं से लिए गए हैं। अस्त्र मिसाइलों की भी सीरीज हमारे पास है। पुराणों में जिस ब्रह्मास्त्र का जिक्र होता है, उसके बारे में कहा जाता है कि ये चल गया तो फिर रोकना असंभव था। यह दुश्मन के इलाके में भीषण तबाही मचाता था।