नई दिल्ली: कॉलिजियम सिस्टम पर एक बार फिर खासी चर्चा है। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जस्टिस की नियुक्ति कैसे हो, इसको लेकर दशकों से देश में डिबेट चलता रहा है। नब्बे के दशक में कॉलिजियम सिस्टम आया और उसकी सिफारिश पर सरकार हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस की नियुक्ति करती रही है, लेकिन कॉलिजियम सिस्टम पर सरकार और जूडिशरी के बीच लगातार तल्खी चल रही है। हाल ही में केंद्रीय कानून मंत्री ने कॉलिजियम सिस्टम पर कई बार सवाल उठाए हैं। वहीं कानूनविद और सुप्रीम कोर्ट के कई रिटायर्ड जस्टिस ने कॉलिजियम सिस्टम को सही ठहराया है और कहा कि न्यायिक स्वतंत्रता के लिए यह जरूरी है। कॉलिजियम को लेकर सरकार और न्यायपालिका के बीच चल रहे विवाद का आखिर हल क्या है? क्या इस विवाद का कोई अंत नजर आ रहा है? यह सवाल अभी भी बना हुआ है।
कॉलिजियम सिस्टम से पहले जो नियुक्ति की प्रक्रिया थी उसके तहत लॉ मिनिस्ट्री नामों को रेफर करती थी और फिर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया उस बारे में अपना विचार देते थे। फिर मामले को राष्ट्रपति के पास रेफर कर दिया जाता था। इसके बाद हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति होती थी। सुप्रीम कोर्ट ने 1993 में नौ जजों की बेंच ने आदेश पारित किया और कॉलिजियम सिस्टम की शुरुआत की। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए नाम भेजा जाता है। हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए हाई कोर्ट कॉलिजियम द्वारा नाम भेजा जाता है।
राष्ट्रपति को भेजा जाता है नाम
सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया और चार सीनियर जस्टिस होते हैं। उन नामों पर विचार के बाद सुप्रीम कोर्ट की कॉलिजियम नाम तय करती है और फिर उसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए नाम खुद सुप्रीम कोर्ट की कॉलिजियम तय करती है। इन नामों को सरकार के पास भेजा जाता है और फिर सरकार के संबंधित विभाग से क्लियरेंस के बाद इन नामों को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाता है।
कानून मंत्री के क्या थे सवाल?
कानून मंत्री ने लगातार कॉलिजियम सिस्टम पर सवाल उठाए हैं। कानून मंत्री ने सुप्रीम कोर्ट कॉलिजियम द्वारा जजों की नियुक्ति के लिए नाम दोबारा भेजे जाने के दौरान रॉ और आईबी की रिपोर्ट सार्वजनिक किए जाने पर चिंता जाहिर की है। कानून मंत्री ने कहा कि यह गंभीर विषय है। हाल में चीफ जस्टिस को लिखा था कि कॉलिजियम में एक सरकार द्वारा नॉमिनेट सदस्य होना चाहिए। रिजिजू ने कहा कि NJAC (नैशनल ज्यूडिशियल अपाइंटमेंट कमीशन) को खारिज करने के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने जो सुझाव दिए थे, उसी के अनुसार उनकी कार्रवाई है।
‘विवाद दुखदाई, अंत नजर नहीं आ रहा’
सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे ने इस पूरे विवाद को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया है। उन्होंने कहा कि सरकार के मंत्री जिस तरह से कॉलिजियम सिस्टम पर सवाल उठा रहे हैं वह बेहद दुखद है। केंद्रीय कानून मंत्री का इस मामले में बयान लगातार आ रहा है तो ऐसे में यह बात साफ है कि सरकार का भी यही स्टैंड है क्योंकि इतने विवाद के बाद भी अगर कानून मंत्री के बयान से सरकार सहमत न होती तो टॉप लेवल से इस पर बयान आ चुका होता।
कानून मंत्री के किसी बयान का अगर सरकार के टॉप लेवल से कोई खंडन नहीं है, इसका मतलब साफ है कि कानून मंत्री यूं ही बयान नहीं दे रहे हैं। लेकिन यह सब दुर्भाग्यपूर्ण है और इसका कोई अंत फिलहाल नजर नहीं आ रहा है। सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट से कॉलिजियम सिस्टम काम कर रहा है और यह अभी देश का कानून है और उसे सबको मानना ही पड़ेगा। जब तक कॉलिजियम सिस्टम के बदले जजों की नियुक्ति के लिए कोई नया कानून नहीं बन जाता, तब तक देश का कानून कॉलिजियम सिस्टम ही है।
केंद्र सरकार ने जजों की नियुक्ति के लिए NJAC बनाया था और उस वक्त विपक्ष भी इस मुद्दे पर सरकार के साथ था और आधे से ज्यादा राज्यों से कानून पास हुआ था और दोनों सदन ने बहुमत से कानून पास किया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की स्क्रूटनी में वह कानून टिक नहीं पाया और NJAC खारिज हो गया और कॉलिजियम सिस्टम बहाल रहा।
उन्होंने कहा कि अब जो देश की राजनीतिक परिस्थितियां हैं, उसमें कॉलिजियम के बदले दूसरा कानून संसद से बहुमत से पास हो जाए और इसके लिए संविधान में संशोधन हो जाए यह संभव नहीं लगता है। वैसे ही संसद अगर कोई कानून बनाती है तो सुप्रीम कोर्ट उसका जूडिशल रिव्यू करेगा ही और कानून की संवैधानिकता को सुप्रीम कोर्ट परखेगा।
मामले में सबकी राय ली जाए: जस्टिस सोढ़ी
दिल्ली हाई कोर्ट के रिटायर जस्टिस आर.एस. सोढ़ी ने कहा कि कॉलिजियम सिस्टम पर जिस तरह से सवाल उठे हैं, उसका अब एक ही रास्ता है कि सभी पक्ष बैठकर इस पर विचार करें और कोई वैकल्पिक सिस्टम का निजात करें। संसद के जरिए ही कानून बनाकर इसका विकल्प तैयार हो सकता है और कोई रास्ता नहीं है। वैसे ही कानून बनाना संसद का काम है। अगर चुनी हुई सरकार का कोई नुमाइंदा कॉलिजियम में रहे तो इसमें परेशानी नहीं होनी चाहिए।
जूडिशरी की स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं है कि खुद नियुक्ति और खुद रिटायरमेंट का फैसला किया जाए। अभी भी सरकार ही जजों के रिटायरमेंट की उम्र और सैलरी आदि तय करती है तो क्या उसे भी जूडिशरी ही तय करे? संसद को कानून बनाने की शक्ति मिली हुई है। लेकिन इस मामले में टकराव का हल देखना होगा।